योगेश भट्ट
मोदी सरकार में रमेश पोखरियाल निशंक के मंत्री बनने से उत्तराखंड की ‘ठहरी’ सियासत में हलचल है । बीते कुछ सालों से हाशिये पर खड़े निशंक समर्थकों में ‘प्राण वायु’ मिलने जैसा हर्ष है तो विरोधियों में बेचैनी है । हर्ष और बेचैनी दोनो स्वाभाविक भी है क्योंकि सियासी गलियारों में निशंक को लेकर हमेशा से ही दो अलग अलग मत रहे हैं । एक यह कि ऊर्जा से लबरेज निशंक में सशक्त नेतृत्व क्षमता है और वह परिणाम देने में सक्षम है । दूसरा यह कि निशंक पर कोई नियंत्रण नहीं रहता, वह सियासी दांव पेच में माहिर, दुस्साहसी और प्रपंची है और सियासी ताकत का किसी भी हद तक जाकर इस्तेमाल कर सकते हैं । दो अलग अलग राय होने के बावजूद एक सत्य यह भी है कि निशंक को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता ।
मोदी सरकार में उन्हें मंत्री बनाया जाना और मानव संसाधन विकास जैसे अहम मंत्रालय की जिम्मेदारी मिलना इसका हालिया प्रमाण है । जिस जिम्मेदारी को कभी उत्तराखंड के कद्दावर नेता केसी पंत और मुरली मनोहर जोशी संभाल चुके हों, जिस मंत्रालय की कमान बाद में प्रधानमंत्री रहे दिग्गज नेताओं वीपी सिंह और पीवी नरसिम्हाराव ने संभाली हो । मोदी सरकार में वह जिम्मेदारी निशंक को दिया जाना अपने आप में बेहद महत्वपूर्ण है । निशंक की नयी भूमिका उत्तराखंड के लिए नयी संभावनाओं के द्वार खोल रही है तो वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय राजनीति में उनका कद और सियासी भविष्य भी तय करने जा रही है । सही मायनों में तो निशंक के लिए यह नयी जिम्मेदारी किसी ‘अग्निपरीक्षा’ से कम नहीं है, उन्हें राष्ट्रीय नेतृत्व की उम्मीदों पर भी खरा उतरना है तो उत्तराखंड की अपेक्षाओं को भी पूरा करना है ।
दरअसल उत्तराखंड के लिए मोदी मंत्रिमंडल में निशंक का कैबिनेट मंत्री इतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना कि निशंक को मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नेतृत्व दिया जाना है । संपूर्ण शिक्षा से जुड़ा यह मंत्रालय मानव संसाधन के विकास के लिए जिम्मेदार है । मानव संसाधन विकास मंत्रालय की अहमियत का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि उच्च शिक्षा से जुड़े देश के 46 केंद्रीय विश्वविद्यालय के साथ ही विश्वविद्यालय चयन आयोग (यूजीसी), इंडियन इंस्टीट्यूट आफ एडवांस्ड स्टडीज (आईआईएएस) , भारतीय दर्शन अनुसंधान परिषद (आईसीपीआर), भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद (आईसीएचआर), भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएसएसआर), शिक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (ईआरडीओ) जैसी नामी संस्थाएं इस मंत्रालय के नियंत्रण में हैं ।
तकनीकी शिक्षा से संबंधित संस्था एआईसीटीई के साथ ही देश में स्थित पांच भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, तीन स्कूल आफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर , सात भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान, 23 आईआईटी और 31 राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान सहित अन्य कई राष्ट्रीय संस्थान भी इसके अधीन संचालित हैं। इसके अलावा संस्कृत के तीन डीम्ड विश्वविद्यालय, केंद्रीय हिंदी संस्थान, इग्नू, एनआईओएस, सीबीएसई और केंद्रीय विद्यालय संगठक सहित कई अन्य संस्थाएं मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अंतर्गत हैं । सीधे सीधे शिक्षा नीति, शिक्षण,प्रशिक्षण और शोध से जुड़ा यह मंत्रालय राष्ट्रीय स्तर पर बेहद महत्वपूर्ण है ।
इस मंत्रालय का नेतृत्व खुद में एक बड़ी चुनौती है । मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल का तो याद ही होगा , जब स्मृति ईरानी को इस महकमे की बागडोर सौंपी गयी तो उनकी शैक्षिक योग्यता और डिग्री को लेकर खासा विवाद हुआ । कुछ समय बाद सरकार ने स्मृति ईरानी को हटाकर अनुभवी नेता प्रकाश जावेडकर को इसकी जिम्मेदारी सौंपी । निशंक के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय की रहा बहुत आसान नहीं होगी, यहां भी उन्हें अपनों से मिलने वाली चुनौतियों से निपटना होगा।
खैर, निशंक को इस जिम्मेदारी के लिए चुना गया है तो उसकी ठोस वजह भी रही होगी । देश के मानव संसाधन विकास मंत्री के रूप में वह कितना सफल होते हैं, यह कहना फिलवक्त मुश्किल है लेकिन उत्तर प्रदेश में धर्मस्व संस्कृति मंत्रालय को सुर्खियों में लाने और वित्त मंत्री के तौर घाटे का बजट पेश कर सरप्लस में लाना उनकी उपलब्धियों के रूप में इतिहास में दर्ज है । जहां तक निशंक के अनुभव का सवाल है तो अपने तकरीबन तीन दशक के राजनैतिक सफर में उन्हें मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री के रूप में शासन चलाने का लंबा अनुभव है । अविभाजित उत्तर प्रदेश में पहले पर्वतीय विकास और बाद में वह धर्मस्व एवं संस्कृति विभाग में केबिनेट मंत्री रह चुके हैं । उत्तराखंड की अंतरिम सरकार के वह वित्त मंत्री और दूसरी निर्वाचित सरकार में पहले स्वास्थ्य मंत्री रहे और बाद में मुख्यमंत्री भी रहे ।
राज्य में चल रहे अंदरूनी सत्ता संघर्ष और सत्ता के फैसलों से जुड़े कुछ विवादों के चलते निशंक को कार्यकाल पूरा होने से पहले मुख्यमंत्री पद से हटाया दिया गया था । उस वक्त सरकार के फैसलों से जुड़े कुछ विवादों ने निशंक की छवि को दागदार जरूर बनाया मगर आम जनता के साथ संवाद में बने रहने वाले और अफसरों पर नियंत्रण रखने वाले मुख्यमंत्री के तौर पर उन्हें हमेशा याद किया गया । बीच कार्यकाल में मुख्यमंत्री से हटने के बावजूद निशंक को प्रदेश की राजनीति में नजरअंदाज तो नहीं किया गया, लेकिन वह हरिद्वार से सांसद निर्वाचित होने के बाद भी वह एक तरह से हाशिए पर थे। उनके विरोधियों का तो यहां तक कहना रहा था कि निशंक की सियासत का सूर्य अब अस्त हो चुका है । बहरहाल मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में जिस तरह सियासी संतुलन के तमाम समीकरणों को किनारे रखते हुए उत्तराखंड से निशंक को शामिल किया गया, वह अपने आप में यह बताने के लिए पर्याप्त है कि बीते पांच साल के कार्यकाल में निशंक ने दिल्ली का भरोसा जीता है ।
अब सवाल निशंक की क्षमताओं का, दलगत राजनीति और व्यक्तिगत पसंद नापसंद से अलग हटकर बात करें तो स्वर्गीय नारायण दत्त तिवारी और हरीश रावत के बाद उत्तराखंड की राजनीति में अगर किसी को मंझा हुआ राजनीतिज्ञ कहा जा सकता है तो निसंदेह वह रमेश पोखरियाल निशंक है । निशंक उत्तराखंड की सियासत का वह नाम है जिसके बिना हर सियासत अधूरी नजर आती है । सियासत के प्रत्येक मंत्र, तंत्र और यंत्र से वह बखूबी वाकिफ हैं । यही कारण है कि प्रदेश की सियासत जब-जब जोड़-घटा और गुणा-भाग के दौर से गुजरी है तो निशंक की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर कोई न कोई भूमिका जरूर रही है ।
एक राजनेता के तौर पर निशंक को भाजपा में भगत सिंह कोश्यारी और भुवन चंद्र खंडूरी और के बाद रखा जाता हो, मगर इसमें कोई दोराय नहीं कि राजनीतिज्ञ, रणनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ और राजनीतिक प्रबंधक के तौर पर वह इन दोनो से कहीं आगे रहे हैं । भाजपा की अंदरूनी राजनीति में भी निशंक अलग ‘ध्रूव’ के रूप में स्थापित हैं, उनके अपने समर्थकों का एक बड़ा वर्ग है । राज्य के वह उन गिनती के नेताओं में शुमार हैं जिनका नौकरशाही दबाव महसूस करती है । विवाद नारायण दत्त तवारी के साथ भी जुड़े रहे तो हरीश रावत का भी विवादों ने पीछा नहीं छोड़ा । सच यह है कि विवादों के साथ सार्वजनिक जीवन में खासकर राजनीति में बने रहना आसान नहीं होता, लेकिन निशंक उन प्रतिभावान नेताओं में हैं जो तमाम विवादों और विषम परिस्थितियों के बावजूद मैदान से बाहर नहीं हुए । नतीजा सामने है उत्तराखंड की सियासत में निशंक एक बार फिर से धुरी बनने जा रहे हैं ।
दिलचस्प यह है कि इस बार निशंक को सियासी ताकत किसी सियासी संतुलन साधने के किसी समीकरण के तहत नहीं मिली बल्कि मेरिट से मिली है । हां, अब सवाल निशंक को सौंपे गए मंत्रालय को लेकर उठ सकते हैं, दबे सुरों में यह क्रम शुरू हो भी गया है । हो सकता है मंत्रालय में जिन परस्थितियों का सामना स्मृति ईरानी को करना पड़ा, कमोवेश् उन्ही का सामना निशंक को भी करना पड़े । मगर निशंक को इसके लिए तैयार रहना होगा, उन्हें यह नहीं भूलना होगा कि उनकी तुलना केसी पंत और मुरली मनोहर जोशी जैसे दिग्गजों से की जाएगी । निशंक को इस चुनौती को गंभीरता से लेना होगा । अपने इर्द गिर्द बने घेरों से सतर्क रहना होगा और नयी जिम्मेदारी में पुरानी गलतियों से सबक लेते हुए बहुत सावधानी से आगे बढ़ना होगा।
सनद रहे कि अब वक्त कोरी सियासत करने का नहीं है । अब वक्त नयी इबारत लिखे जाने और नए सिरे से खुद को साबित करने का है । निशंक के नेतृत्व वाले मानव संसाधन विकास मंत्रालय से उत्तराखंड को भी बड़ी उम्मीदें है, इस मंत्रालय पर उत्तराखंड का बहुत कुछ भविष्य टिका है । यहां एक अकेले एनआईटी का मसला ही नहीं है, बल्कि प्राइमरी से लेकर उच्च शिक्षा तक में उत्तराखंड को व्यापक नियोजन और संसाधनों की आवश्यकता है । इसमें कोई संदेह नहीं कि सियासत से इतर राज्य सरकार और निशंक ने समन्वय से काम किया तो उत्तराखंड में शिक्षा, उच्च शिक्षा और तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में नयी इबारत लिखी जाएगी । उम्मीद की जानी चाहिए कि निशंक की नयी सियासी पारी से उत्तराखंड करवट बदलेगा ।
योगेश भट्ट न्यूज़ पोर्टल ‘Dainik uttarakhand दैनिक उत्तराखंड’ के सम्पादक और डायरेक्टर हैं.