विनीता यशस्वी
15 अप्रेल 1995 को उत्तरकाशी जिले के भटवाड़ी ब्लॉक में स्थित ग्राम लौंथरू गाँव में जन्मी सविता कंसवाल की पिछले साल 4 अक्टूबर 2022 को द्रौपदी का डांडा चोटी पर एक्सपीडिशन के दौरान अचानक ही हिमस्खलन हो जाने से असमय मृत्यु हो गयी थी। उस समय वो निम में इन्स्ट्रक्टर के रूप में कार्यरत थी। सविता की बहन मनोरमा भी इस समय निम में इन्स्ट्रक्टर के तौर पर अपनी सेवा दे रही हैं। मनोरमा से मैंने सविता के विषय में कुछ बातें की जिसे मैं यहाँ सविता को ‘नैनीताल समाचार’ की ओर से श्रद्धांजलि के तौर पर प्रस्तुत कर रही हूँ।
प्रश्न : सविता की पढ़ाई कहाँ से हुई थी ?
सविता की पढ़ाई गवरमेंट स्कूल से ही हुई है। माउन्टेनियरिंग के प्रति उसका रुझान कक्षा 9 से हुआ जब गढ़वाल मंडल विकास निगम द्वारा 15 दिन का फ्री माउन्टेनियरिंग कोर्स चलाया गया। उसमें सविता ने भी हिस्सा लिया और वहीं से उसे माउन्टेनियरिंग के प्रति लगाव होने लगा। इस कोर्स के बाद ही उसने एनआईएम से कोर्स करने की सोची पर उस समय एनआईएम की फीस पाँच हजार रुपया थी। जब उसने घर में बताया तो किसी को कुछ समझ ही नहीं आया इसलिये उन्होंने रुपये देने से मना कर दिया पर सविता की जिद थी कोर्स उसे करना ही है इसलिये अपने दोस्तों से पैसे उधार मांग के बेसिक कोर्स कर लिया। इसके बाद उसने इसके आगे के भी सारे कोर्स किये। किसी एनजीओ के द्वारा उसे देहरादून भी भेजा गया जहाँ उसने 45 दिन का एडवांस कोर्स भी किया। सविता ने फूड एंड बेवरेज का कोर्स भी किया था और उस दौरान ही उसे ऋषिकेश के एक कैफे में नौकरी मिल गयी जिसे उसने कर लिया। हम बेहद गरीब परिवार से आते हैं इसलिये उसे परिवार से भी सपोर्ट नहीं मिल पाया। उसने स्वयं ही कोशिश की और कठिन संघर्ष किये। अपने सारे कोर्स पूरे करने के बाद उसे एनआईएम में ही गैस्ट इंस्ट्रक्टर बना दिया गया। एनआईएम में जाने के बाद से ही उसने में एक्सपीडिशन शुरू किये। सविता ने उत्तरकाशी से बी.ए. किया था। वो आगे पढ़ाई करना चाहती थी पर वो माउन्टेनियरिंग में इतनी व्यस्त हो गयी कि उसे समय ही नहीं मिला पढ़ाई का।
प्रश्न : सविता ने कहाँ-कहाँ एक्सपीडिशन किये ?
एनआईएम द्वारा उसने कई एक्सपीडिशन किये हैं। जिस हादसे में उसकी जान चली गयी वहाँ भी वो पहले दो-तीन बार जा चुकी थी। इसके अलावा हिमाचल, जम्मू कश्मीर और उत्तराखंड में कई एक्सपीडिशन किये हैं। लगभग 12-13 पीक उसने समिट की हैं जिसमें 2019 में त्रिशूल एक्सपीडिशन भी है। उसके लिये आईएमएफ से पूरे भारत में एक हजार लोगों को चुना गया जिसमें वो भी एक थी। उसके बाद फिर सलेक्शन हुआ और 12 लोगों की टीम बनी जिसमें वो भी एक थी। इसमें 6 लड़के और 6 लड़कियां शामिल थे। वो एक्सपीडिशन एवरेस्ट मैसिव एक्सपीडिशन था। जिसमें एवरेस्ट की चार पीक को क्लाइम्ब करना था। इस दौरान उन्हें कड़ी मेहनत करनी पड़ी। वो लद्ाख समेत कई जगहों पर भी पीक समिट करने गयी। इतनी मेहनत करवाने के बाद देखा गया कि कौन एवरेस्ट मैसिव कर पाने में सक्षम है। एवरेस्ट मैसिव में ही त्रिशूल भी था जो सविता का बड़ा एक्सपीडिशन रहा। त्रिशूल करने के बाद वो एवरेस्ट मैसिव के लिये चुनी गयी। उस समय सविता एवरेस्ट जाना चाहती थी पर उसे लोत्से जाने के लिये चुना गया। सविता ने अपने एक और पार्टनर से साथ लोत्से पीक समिट की और वापस आकर एवरेस्ट के तैयारी की। एवरेस्ट करने के लिये उसे लगभग 30 लाख रुपयों की जरूरत थी जिसे इकट्ठा करने के लिये भी उसे मेहनत करनी पड़ी।
प्रश्न : आपके माता-पिता क्या करते हैं ?
मेरे पिता गाँव में रहते हैं और पंडिताई करते हैं। इसके साथ वो खेती-बाड़ी करते हैं। मां घर में ही काम करती हैं।
प्रश्न : इस फील्ड में आने की प्रेरणा उसे कैसे मिली ?
9वीं क्लास के दौरान ही उसे माउन्टेनियरिंग के बेसिक्स पता चल गये थे। उस समय वो बचेन्द्री पाल जी से भी मिली और उनसे प्रभावित हो गयी। 2013 में जब केदारनाथ आपदा आई। एनआईएम की टीम हमारे गाँव से होते हुए ही आपदा प्रभावित जगहों को जा रही थी। तब सविता ने कर्नल कोटियाल से पूछा कि आप ये रकसैक लेकर कहाँ जा रहे हैं ? कर्नल कोठियाल ने कहा – तुम ये नाम कैसे जानती हो ? तब सविता ने उनको अपने बेसिक कोर्स के बारे में बताया। कर्नल कोटियाल ने उसे एनआइएम में आकर मिलने को कहा। तब से ही वो कर्नल कोटियाल से भी प्रभावित रही और उन्होंने भी उसे बहुत सपोर्ट किया। वहीं से उसका झुकाव माउन्टेनियरिंग की ओर हो गया।
प्रश्न : पैसों की कमी को लेकर सविता को कितना संघर्ष करना पड़ा और वो इस बारे में क्या कहती थी ?
दरअसल उसे सिर्फ पैसों की ही कमी नहीं रही बल्कि उसे किसी से सपोर्ट भी नहीं मिला। चाहे हमारा घर हो या गाँव। लड़कियों के प्रति लोगों का नजरिया अच्छा नहीं है और अभी तक भी हम लोगों की सोच बदल नहीं पाये हैं। एसे समाज की इस सोच से भी उसे लड़ना पड़ा था। इस फील्ड में सफल होने के बाद तक भी लड़कियों के प्रति समाज का नजरिया बदल नहीं सका। सविता का मानना था कि अगर हम अपनी कमजोरी को अच्छे से इस्तेमाल करें तो वो हमारी ताकत बन जाती है। उसने अकसर ये कहा है कि पैसा, गरीबी और लड़की होना मेरी कमजोरी रही पर मैंने अपनी कमजोरियों को ही अपनी ताकत बनाया है।
प्रश्न : सविता जब गाँव के लोगों से मिलती थी तो कैसे उनको इन बातों के जवाब देती थी ?
वो इस फील्ड के लेकर बेहद जुनूनी थी इसलिये उसने कभी किसी की परवाह नहीं की। शुरूआत में हमारे माता-पिता तक उससे कहा करते थे कि तू ये किस तरह का काम कर रही है ? इसमें क्या भविष्य है ? वो सिर्फ इतना ही कहती – मुझे ये करना है बस। लोग भी जब उससे कुछ कहते थे तो वो किसी को कोई जवाब नहीं देती थी क्योंकि उस समय वो खुद ही संघर्ष कर रही थी पर जब उसने नाम कमाना शुरू किया उसके बाद से वो लोगों को माउन्टेनियरिंग के बारे में समझाती थी। उसकी बातों से लोग प्रेरित भी होते थे।
प्रश्न : सविता की सफलता के बाद क्या आपके गाँव से दूसरी लड़कियों ने भी माउन्टेनियरिंग में आने के बारे में सोचा ?
सविता के साथ जो हादसा हुआ उसके बाद लड़कियों की सोच में थोड़ा कमी आयी है पर हमारी पूरी गंगोत्री घाटी से बहुत सारी लड़कियां सविता से प्रेरित होकर माउन्टेनियरिंग कर रही हैं और छोटे-छोटे एक्सपीडिशन्स में भी हिस्सा ले रही हैं। इस हादसे के बाद मुझे कई लोगों ने फोन करके बताया कि वो सविता से कितना प्रेरित होते थे। सविता ने कभी किसी को ये नहीं कहा कि आप सिर्फ इसी फील्ड में आओ, वो सब से यही कहती थी कि आप जिस भी फील्ड में जाओ पूरी मेहनत से अपना काम करो। माउन्टेनियरिंग करने वालों की वो जितनी मदद कर सकती थी उसने हमेशा की। वो अपने अनुभवों के आधार पर बोलती थी इसलिये लोगों को उसे सुनना अच्छा लगता था।
प्रश्न : सविता अपने भविष्य के लिये क्या सपने देखती थी ?
वो हमारे ऐशिया के सातों महाद्वीप की सबसे ऊँची चोटियों में चढ़ना चाहती थी। उसे पिछले साल अक्टूबर में एल्ब्रुश जाना था पर उससे पहले ही उसके साथ ये हादसा हो गया। अगर वो अभी होती तो शायद काफी चोटियाँ चढ़ भी चुकी होती।
प्रश्नः एक बहन की तरह आप सविता को कैसे देखती हैं ?
हम दोनों एक दूसरे से काफी नजदीक थे। हम चार बहनें हैं जिनमें सविता सबसे छोटी थी। दीदी लोग तो अपने परिवार में ज्यादा व्यस्त हो गये इसलिये मैं और सविता एक-दूसरे के ज्यादा करीब थे। उसका ज्यादा समय एक्सपीडिशन के कारण घर से बाहर ही बीतता था और महीनों तक हम एक-दूसरे से बात भी नहीं कर पाते थे।
प्रश्न : क्या वो आपको भी प्रेरित करती थी माउन्टेनियरिंग के लिये ?
मैं इस फील्ड में आना नहीं चाहती थी पर हाँ बेसिक कोर्स तो करना चाहती थी पर उसने मुझे या किसी और को इस फील्ड में आने के लिये नहीं कहा क्योंकि माउन्टेनियर का जीवन बहुत कठिन होता है। पहाड़ों में महीनों तक नहाना संभव नहीं होता। कभी-कभी लम्बे समय तक बर्फ में रहना होता है। कुछ जगहें तो इतनी ठंडी होती हैं कि वहाँ पानी गिरने से पहले ही जम जाता है। मैंने ये सब बातें सविता से सुनी हैं। वो अपने हर जगह के अनुभव मुझसे साझा करती थी।
प्रश्न : माउन्टेनियरिंग के क्या अनुभव आपको सुनाती थी ?
उसने बताया था कि कोर्स के दौरान उसे मैप रीडिंग के लिये रात के 12 बजे जाना था जिसमें एक सविता और दो लड़के थे। उसने बताया कि वो दोनों लड़के इतने डरपोक थे कि वो आगे गये ही नहीं क्योंकि सबसे आगे वाले को बर्फ में रास्ता बनाते हुए चलना पड़ता है जिसमें बहुत ताकत लगती है। ऐसे में सविता अकेले आगे गयी। उसने कहा कि अगर उसके साथ कोई हादसा हो जाता तो किसी को पता भी नहीं चलता। जब मैं काफी दूर तक रास्ता तय कर चुकी थी तब जाकर वो लड़के आये वो भी इसलिये कि अगर इसे कुछ हो गया तो सर लोग हमें डांटेंगे। ऐसा ही एक और अनुभव उसने बताया था कि एवरेस्ट समिट करते समय उसका ऑक्सीजन मास्क खराब हो गया और उसके शेरपा ने उसे अपना मास्क दिया था। उसने कहा कि उस वक्त 5-10 मिनट के लिये लगा कि जैसे अब मैं नहीं बचूँगी। पर मेरे शेरपा को भी हैलूसिनेशन हो रहा था इसलिये वो मास्क मुझे देता और फिर मांग लेता और लगातार ऐसा करता रहा। हम जैसे-तैसे समिट तक पहुँचे वहाँ दूसरे शेरपा ने मुझे अपना ऑक्सीजन मास्क दे दिया। वापसी के समय उस बीमार शेरपा को रैस्क्यू करना पड़ा। सविता वापस तो आ गयी थी पर काफी बीमार हो गयी थी। उसने कहा था कि ये ऐसा ही फील्ड है जिसमें चौबिसों घंटे मौत के मुँह में रहना पड़ता है।
प्रश्न : ऐसा कौन सा खुशनुमा पल है जिसे सविता आपसे साझा करते हुए खुश हो गयी ?
लोत्से करने के बाद उसका नाम लोग जानने लगे थे जिसके बाद वो काफी खुश थी। ऐवरेस्ट की सफलता का आनंद लेने के लिये वो ज्यादा समय तक जीवित नहीं रह पायी। उसने 12 मई 2022 में एवरेस्ट चढ़ने के पंद्रह दिन के भीतर ही 28 मई को माउन्ट मकालू की चोटी पर भी सफलता हासिल की और ऐसा करने वाली वो भारत की पहली पर्वतारोही बन गयी। अक्टूबर में उसके साथ ये हादसा हो गया। जुलाय में वो कई इवेंट्स में व्यस्त रही इसलिये घर आने का मौका उसे अगस्त में मिला और 14 सितम्बर को वो फिर से पहाड़ों पर चली गयी थी। ऐवरेस्ट से वो बहुत खुश थी क्योंकि वो उसका नौंवी क्लास से सपना था।
प्रश्न : लास्ट एक्सपीडिशन में जाने से पहले आपकी सविता से क्या बात हुई थी ?
उसने 18-19 सितम्बर 2022 को फोन पर कहा था कि मैं जल्दी ही वापस लौटूंगी और फिर बैंगलौर जाऊँगी वहाँ से दिल्ली जाऊँगी और फिर एल्ब्रुश के लिये निकलूँगी पर उससे पहले ही वो दुनिया छोड़ के चली गयी।
One Comment
विजया सती
कितना सुंदर संवाद !
स्मृतियों में रहोगी सविता !