मदन मोहन बिजल्वाण
गिर्दा को इस असार संसार से गए बारह वर्ष बीत गए, 22 अगस्त 2010 को गिर्दा जनांदोलनों की विरासत हम सबके लिए छोड़कर कभी न लौटने वाले यात्रा में चले गए। इन तेरह वर्षों में हमें कभी यह महसूस नहीं हुआ कि गिर्दा हमारे बीच नहीं हैं । भले ही उनका शरीर हमारे साथ न हो किन्तु गिर्दा की उपस्थिति हमारी स्मृतियों में हमेशा रहेगी , हमारी सामाजिक एवं सांस्कृतिक चेतना में गिर्दा हमेशा ज़िंदा रहेंगे ।
गिर्दा बहुआयामी व्यक्तित्व की शख्शियत थे । कवि , गद्यकार, नाटककार, रंगकर्मी, अभिनेता , निर्देशक , संगीतकार , लोकगायक और आंदोलनकारी के अलावा वे एक सीधे , सरल , निर्विकार और सच्चे इंसान थे । फकीरी के जिस आलम में गिर्दा रहे एवं जो संसार उन्होंने अपने आस-पास रचा उसके मापदंड इस संसार से परे थे । वे एक जोगी की तरह केवल साधना में लीन रहते थे । उन्हें कभी किसी अन्य व्यक्ति से न कभी कोई भय रहा और न ही ईर्ष्या । उनके अंदर कभी कोई ऐसी भावना ही नहीं रही कि कोई अन्य कलाकार या कवि , गीतकार उन्हें उनके स्थान से खिसका सकता है या उनकी जगह ले सकता है। हालांकि उनकी जगह न कोई तब ले सका और न ही कभी भविष्य में कोई ले सकता है।
गिर्दा का व्यक्तित्व इतना अधिक व्यापक और बहुआयामी है कि उन्हें कुछ पंक्तियों या ग्रंथों में नहीं समेटा जा सकता है। इन्हीं मान्यताओं और मोलतोल की मिट्टी से तो गिर्दा बने थे, जो कविता लिखते- लिखते स्वयं कविता बन गए। वे केवल एक जोगी की तरह साधना का भाव रखते थे । सांसारिक दृष्टि से उन्हें समझना कठिन है , एक आंचल में उन्हें समेटना उनके साथ नाइंसाफी होगी। गिर्दा से मेरा संबंध मन और मस्तिष्क दोनों का था। मैं कई आंदोलनों एवं कार्यक्रमों में उनके साथ रहा। वे हमेशा मेरे दिल में , मस्तिष्क में , चेतना में ज़िंदा थे एवं ज़िंदा रहेंगे । गिर्दा तुम आज से तेरह साल पहले 22 अगस्त 2010 को इस असार और परिवर्तनशील संसार से चल दिए । इन बारह वर्षां में हमें कभी नहीं लगा कि तुम हमारे बीच नहीं हो। तुम हमेशा हमारे बीच मौजूद रहे पहले की तरह और हमेशा रहोगे हमारी सामाजिक, सांस्कृतिक स्मृतियों में, जो हमारे बाद भी बनी रहेगी.
सांस्कृतिक एवं सामाजिक परिवर्तन के लिए जितने मोर्चे उपलब्ध थे गिर्दा उन सबमें सक्रिय रहे । कविता और जनगीत उनमें एक मोर्चा था । हिंदी और कुमाउंनी में लिखे गए उनके जनगीत उत्तराखण्ड आंदोलन के संघर्ष के दौरान राजनीतिक चेतना , प्रतिरोध व परिवर्तन के प्रमुख हथियार बने , यही नहीं अपने जनगीतों के साथ गिर्दा ने बड़ी सिद्दत के साथ आंदोलनों का नेतृत्व भी किया ।
हम सबके प्रिय गिर्दा को उनकी तेरहवीं पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजली एक शत -शत नमन ।