सीमा शर्मा
उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले के जोशीमठ तहसील में स्थित श्री हेमकुंड साहिब में बनने जा रहे हैलीपैड ने बेहतर पर्यावरण की वकालत करने वालों को चिन्तित कर दिया है। इस अत्यधिक संवेदनशील इलाके में हेलीपैड परियोजना के कारण होने वाले सम्भावित नुकसान ने कई प्रश्न खड़े कर दिए हैं। 13,650 फिट की ऊँचाई पर स्थित, सात पर्वत चोटियों और बर्फीली झीलों से घिरे इस मन्दिर के चारों ओर कई सारे ग्लेशियर मौजूद हैं। यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थली, फूलों की घाटी इससे बहुत अधिक दूर नहीं है। यहाँ इतनी ऊँचाई पर दुर्लभ से दुर्लभतम फूलों की प्रजातियां उगती हैं।
सम्भागीय वनाधिकारी नन्दावल्लभ कहते हैं, ‘‘किसी भी स्थिति में फंसे तीर्थयात्रियों या गम्भीर रूप से बीमार लोगों को बचाने के लिए आपात्कालीन अभियान चलाने के लिए हेलीपैड का निर्माण किया जा रहा है।’’
पर्यावरण कार्यकर्ता अतुल सती ने एक अलग दृष्टिकोण देते हैं। उन्होंने ‘न्यूज़क्लिक’ को बताया कि ‘‘श्री हेमकुंड साहिब और फूलों की घाटी (वीओएफ) के लिए गोबिंद घाट पर पहले से ही एक हेलीपैड है, जो मंदिर से लगभग 16 किमी. दूर है। इस हेलीपैड का निर्माण भी आपात्कालीन बचाव अभियान चलाने के नाम पर किया गया था। परन्तु पिछले कुछ वर्षों में, निजी विमानन कंपनियों ने तीर्थयात्रियों को पर्यटन उद्देश्यों के लिए दोनों स्थलों तक ले जाने के लिए यहां से हेलीकाप्टर सेवा शुरू कर दी। यह सब देखते हुए, लगता है कि इस हेलीपैड का भी यही उपयोग होना है।’’ उन्होंने कहा कि ‘‘जब पहले से ही एक हेलीपैड मौजूद था तो संवेदनशील क्षेत्र होने के कारण दूसरा हेलीपैड बनाने की कोई आवश्यकता नहीं थी।
‘‘कोई भी यह अनुमान लगा सकता है कि इस अतिरिक्त बुनियादी ढांचे के कारण इस क्षेत्र में पर्यटन यातायात कितनी तेजी से बढ़ जाएगा। राजस्व अर्जित करने के लिए एक दिन में कई उड़ानें की जाएंगी, जिससे बहुत अधिक ध्वनि और वायु प्रदूषण होगा, जिससे क्षेत्र के वनस्पतियों और जीवों पर बहुत बूरा प्रभाव पड़ेगा।’’
उल्लेखनीय है कि भारतीय वन अधिकारी आकाश वर्मा द्वारा लगभग एक दशक पहले उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्य वन्यजीव वार्डन को संबोधित करते हुए केदारनाथ अभयारण्य में वन्यजीवों पर हेलिकॉप्टरों के गंभीर प्रभाव पर एक रिपोर्ट तैयार कर भेजी गई थी। केदारनाथ घाटी में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए जब उड़ान सेवाएं शुरू की गई थीं, तब केदारनाथ वन्यजीव अभयारण्य के डीएफओ वर्मा ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि कैसे हेलिकॉप्टरों की वजह से हुई गड़बड़ी ने वन्यजीवों को परेशान किया था और जिसके कारण कई जंगली जानवर दिक्कत में आ गए। कस्तूरी मृग, नीली भेड़, काला भालू तथा हिम तेंदुए जैसे लुप्तप्राय श्रेणी के जानवरों ने इस क्षेत्र को छोड़ना शुरू कर दिया था।
क्योंकि उस समय केदारनाथ बाढ़ आपदा के बाद राहत कार्यों पर पूरा ध्यान केंद्रित था, अतः उनकी रिपोर्ट फाइलों के नीचे दब गई। परन्तु जब कुछ साल बाद, रिपोर्ट लीक हो गई और एक स्थानीय हिंदी दैनिक द्वारा प्रकाशित की गई तो हड़कंप मच गया। मामला नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल तक पहुंचा, जिसने भारतीय वन्यजीव संस्थान को अध्ययन करने का निर्देश दिया। डब्ल्यू.आई.आई. ने भी अपनी रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि की है कि हेलिकॉप्टरों के नीचे उड़ने से होने वाला शोर से वन्यजीवों में तनाव पैदा हो रहा है, जिससे उनके व्यवहार और प्रजनन पर असर पड़ रहा है।
हेलिकॉप्टरों द्वारा शोर का स्तर 70 डेसिबल (डीबी) पाया गया। डब्ल्यू.आई.आई. ने वन्यजीव अभ्यारण्यों के ऊपर के क्षेत्रों को साइलेंट जोन के रूप में अधिसूचित करने की सिफारिश की, जहां हेलिकॉप्टरों के शोर का स्तर 50 डीबी की सीमा के भीतर रखा जाना चाहिए। एनजीटी ने कंपनियों को 600 मीटर से ऊपर उड़ान भरने और शोर सीमा का पालन करने का निर्देश दिया गया। पर कई बार यह खबर आई कि ये विमानन कंपनियां अपने ईंधन की बचत के लिए 250 से 350 मीटर नीचे की उड़ान भर कर नियमों की धज्जियां उड़ा रही हैं।
स्थानीय इको-डेवलपमेंट कमेटी (ईडीसी) के प्रमुख और एक जाने-माने फोटोग्राफर चंदर शेखर ने न्यूज़क्लिक को बताया, ‘‘जिस स्थान पर यह नया हेलीपैड बन रहा है, वह दुर्लभ ब्लू पौपी फूल के लिए भी विशिष्ट है। इतनी ऊँचाई पर उगने वाला यह फूल बहुत कम समय के लिए खिलता है। यह फूल पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण है। ब्रह्म कमल, जो इस क्षेत्र में भी उगता है और अपने धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है, पर्यावरण के साथ की जाने वाली छेड़छाड़ से मुरझा सकता है।’’
इन पर्यटन स्थलों को कूड़ा-करकट और यातायात की समस्या से मुक्त रखने के लिए संभागीय वन विभाग द्वारा फूलों की घाटी के निकट स्थित भायंदर गांव के चयनित प्रतिनिधियों के साथ ईडीसी का गठन किया गया था। उन्होंने कहा, ‘‘कोई भी बड़ी पहाड़ी निर्माण गतिविधि के कारण अस्थिर हो सकती है और लुढ़क सकती है और नुकसान पहुंचा सकती है।’’
नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान और फूलों की घाटी जो एक दूसरे के एकदम नजदीक हैं और इनमें जबरदस्त जैव विविधता मौजूद है। इन विविध प्रजातियां में वो प्रजातियां भी शामिल हैं जो वैश्विक स्तर पर दुर्लभ हैं और संकटग्रस्त हैं।
नैनीताल उच्च न्यायालय ने पहले ही नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान के बफर जोन में शिविर स्थल बनाने, जानवरों चराने आदि पर प्रतिबंध लागू कर दिया है। साथ ही नन्दा देवी उद्यान में पर्यटक गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिए गए हैं ताकि और अधिक नुकसान को रोका जा सके।
स्थानीय लोग भी इस परियोजना से खुश नहीं हैं। एक ग्रामीण ने जोर देकर कहा कि जो पर्यटक एक बार अपनी इच्छित जगह पर पहुंचेंगे, तो वे हेलीकाप्टर के माध्यम से वापस जाना पसंद करेंगे। न तो वे अन्य स्थानों पर रुकेंगे और न ही अन्य संस्कृतियों से रूबरू होंगे। उन्होंने शिकायत की कि इस तरह स्थानीय लोग आर्थिक लाभ से वंचित रह जाएंगे। सती ने यह भी बताया कि पूरा भायंदर गांव 2013 में एक बार अचानक आई बाढ़ की आपदा में बह गया था, जो दर्शाता है कि यह हिमालयी क्षेत्र पर्यावरण के प्रति कितना संवेदनशील है। इसलिए, इस तरह की स्थिति में पर्यावरण की कीमत पर्यटकों के आगमन में वृद्धि इसे बर्बाद कर देगा। राज्य सरकार को नए हेलीपैड निर्माण को रोकना चाहिए।
(‘न्यूजक्लिक’ से साभार। भावानुवाद : समाचार डैस्क)