‘बात बोलेगी’ से साभार
नैनीताल जिले के हल्द्वानी की वनभूलपुरा बस्ती कभी भी तोड़ी जा सकती है। एक झटके में इस बस्ती में वर्षों से रह रहे करीब 50,000 लोगों के सिर से इस कड़कड़ाती ठंड में कभी भी छत हटाई जा सकती है। 28 दिसंबर को इसकी शुरूआत होनी थी, लेकिन वनभूलपुरा के लोगों के साथ आसपास के संवेदनशील लोगों की बड़ी संख्या में वनभूलपुरा पहुंचकर प्रदर्शन किये जाने के कारण कम से कम एक रात के लिए 50,000 लोगों की छत बच गई है। लेकिन, बहुत दिनों ने इन छतों को बच पाना संभव नहीं लगता। हाईकोर्ट से आदेश लिए जा चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट में इन दिनों छुट्टियां हैं और वेकेशन कोर्ट भी नहीं लग रही है। ऐसे में अब अपनी छतों को उजड़ते देखने के अलावा इस बस्ती के लोगों को पास कोई चारा नहीं है।
हल्द्वानी के पत्रकार संजय रावत कहते हैं कि वनभूलपुरा का प्रयोग सफल हो गया तो फिर पूरे देश में इसे दोहराया जाएगा। जहां भी कही नजूल भूमि पर लोग रह रहे हों उस पर विवाद खड़ा करके लोगों को उजाड़ने का क्रम शुरू हो जाएगा। और गाज सबसे ज्यादा अल्पसंख्यकों और गरीबों पर ही गिरेगी। आमतौर पर यह माना जा रहा है कि वनभूलपुरा में अल्पसंख्यक समुदाय को बेघर करने के लिए जमीन का विवाद खड़ा किया गया। इस बस्ती में लगभग सभी परिवार अल्पसंख्यक समुदाय के हैं।
वनभूलपुरा की जिस जमीन पर ये परिवार वर्षों से रह रहे हैं, कहा जा रहा है कि वह नजूल भूमि है। लेकिन, कुछ समय पहले अचानक रेलवे ने इस जमीन पर दावा कर दिया। आरोप है कि रेलवे के पास इस जमीन के उसकी होने का कोई प्रमाण नहीं है और जो परिवार यहां रह रहे हैं, उनके पास तो जमीन के कागज होने का कोई सवाल ही नहीं उठता। मामला हाईकोर्ट पहुंचा। पिछले दिनों हाईकोर्ट में एक हफ्ते का नोटिस देकर बस्ती को उजाड़ने का हुक्मनामा जारी कर दिया। संयोग से हाईकोर्ट का यह फैसला 20 दिसंबर को उस समय आया, जबकि सुप्रीम कोर्ट में शीतकालीन अवकाश घोषित कर दिया गया था और इस वर्ष वेकेशन कोर्ट भी नहीं लग रही है। यानी कि हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का रास्ता बंद था। हालांकि हाईकोर्ट ने इस मामले में सुनवाई पिछले महीने ही पूरी कर ली थी और फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस फैसले में वनभूलपुरा की जमीन रेलवे की मान ली गई है और अखबार में छपवाकर या ड्रम बजाकर लोगों को बस्ती खाली करने के आदेश देने और 7 दिन पर बस्ती को तोड़ दिये जाने के आदेश दिये गये हैं।
बहरहाल 7 दिन बाद आज यानी 28 दिसंबर को बस्ती की तोड़ने की शुरुआत किये जाने की पूरी तैयारियां की जा चुकी थी। प्रशासन के बुल्डोजर बस्ती को नेस्तनाबूत करते इससे पहले ही न सिर्फ पूरा वनभूलपुरा एकजुट हो गया, बल्कि अन्य क्षेत्रों से भी बड़ी संख्या में लोग बस्ती में पहुंच गये। कई संगठन इस विवाद के शुरू होने के लेकर ही बस्ती को बचाने के प्रयास में जुटे हुए हैं। सभी संगठन बस्ती बचाओ संघर्ष समिति के बैनर तले बुधवार को वनभूलपुरा पहुंच गये।
वनभूलपुरा बचाने के लिए सड़क से लेकर कोर्ट तक की लड़ाई लड़ने वाली बस्ती बचाओ संघर्ष समिति ने हाई कोर्ट का फैसला आने के बाद हल्द्वानी में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस भी थी। प्रेस कॉन्फ्रेंस बताया गया था कि वनभूलपुरा में लोग 1834 से बसने शुरू हुए थे। अंग्रेज शासकों ने यहां मंडी में कारोबार करने वालों को इस जगह बसाना शुरू किया था। प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा गया कि रेलवे ने इस जमीन पर दावे के लिए जो नक्शा कोर्ट में पेश किया, जिसके आधार पर हाई कोर्ट का फैसला आया, वह नक्शा 1969 का हैं, जबकि यहां रहने वाले लोगों के पास 1937 की भी लीज है। यानी कि बस्ती के लोगों का दावा रेलवे के दावे से भी पुराना है। दूसरी बात समिति यह कह रही है कि रेलवे ने जो नक्शा दिया वह रेलवे की प्लानिंग का है। केवल प्लानिंग के आधार पर इस जमीन को रेलवे की नहीं माना जा सकता।
यहां सबसे प्रमुख बात जो सामने आई है, वह नजूल भूमि को लेकर है। वनभूलपुरा एक मात्र बस्ती नहीं है, जो नजूल भूमि में बसी है। उत्तराखंड के कई इलाके नजूल भूमि पर काबिज हैं। ऐसे में यदि रेलवे की एक प्लानिंग के आधार पर वनभूलपुरा को उजाड़ दिया गया तो राज्य के कई हिस्सों में अन्य विभागों की भी ऐसी ही किसी पुरानी प्लानिंग के आधार पर लोगों को उजाड़ा जा सकता है।
इस पूरी स्थिति पर नजर रखने वाले लोगों की माने तो यह मामला किसी जमीन के मालिकाना हक को लेकर नहीं है, दरअसल यह मामला राजनीतिक है। जानकारों का कहना है कि एक राजनीतिक दल इस बात को लेकर परेशान रहता है कि हल्द्वानी में उसके उम्मीदवार को कभी जीत हासिल नहीं हुई। इसका कारण इस क्षेत्र की अल्पसंख्यक आबादी को माना जाता है। कहना न होगा कि इस पार्टी की हार में वनभूलपुरा बस्ती का भी योगदान रहता है। यदि वनभूलपुरा बस्ती को तोड़कर यहां रहने वाले करीब 50 हजार लोगों को बेदखल कर दिया जाता है तो आने वाले समय में उक्त पार्टी की राह काफी आसान हो जाएगी।