सोनाली मिश्रा
असम के छोटे से गांव गोलाघाट में जन्मी भारतीय महिला बॉक्सर लवलीना बोर्गोहेन ने टोक्यो ओलंपिक्स में जबरदस्त परफॉर्मेंस देकर ना सिर्फ हम भारतीयों को गौरवान्वित किया है अपितु सभी के लिए प्रेरणा भी बनी हैं ।कुछ समय तक लवलीना ने किक बॉक्सिंग में अपना हाथ आजमाया लेकिन फिर बाद में उन्होंने अपना कैरियर बॉक्सिंग में निर्धारित कर लिया। लवलीना की आर्थिक स्थिति काफी खराब थी लेकिन चीजें तब सही हो गई जब लवलीना ने बॉक्सिंग में अपना नाम कमाया। पिता की 300 रुपये की मासिक आमदनी और मिलों का सफर तय कर के लवलीना ने कांस्य पदक हासिल किया। बचपन में किए संघर्षो व कठिन परिश्रम के बाद उन्हें स्पोर्ट्स एसोशिएशन ऑफ इंडिया ने उनकी प्रतिभा देख कर चयनित किया। परंतु नैनीताल के बॉक्सिंग के हालातों को देख कर यह लगता ही नहीं कि इस स्पोर्ट्स को कोई महत्व दिया जा रहा है । अभी कुछ ही दिन पहिले , नैनीताल के डी.एस.ए मैदान में राष्ट्रीय स्तर के चयन हेतु बॉक्सिंग की प्रतियोगिता आयोजित की गई। उत्तराखन्ड के सभी जिलों से आए बच्चों ने बड़ – चढ़ कर इस प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। बच्चों का उत्साह सराहनीय था परंतु व्यवस्थापकों द्वारा की गई व्यवस्था संतोषजनक नहीं दिखी। प्रारंभ में चयन प्रक्रिया खुले आसमान के नीचे, नैनीताल फ्लैट्स के एकदम किनारे बने बास्केटबॉल कोर्ट में शुरू हुई जिसमें ना बॉक्सिंग रिंग दिखा ना ही पीने के पानी की कोई व्यवस्था। तिस पर वर्षा जो नैनीताल में कभी भी होने लगती है और ऐसा ही हुआ भी और जब वर्षा बाधा बनती दिखी तो अफरा – तफरी मच गई पर भाग्यवश डी.एस.ए मैदान में बना वैक्सीन सेंटर रविवार होने की वजह से खाली था जिसे तुरन्त उपयोग में ले लिया गया । चारों ओर रस्सी का घेरा बना कर रिंग बना लिया गया। बच्चों ने कोरोना का डर भुलाकर इस प्रतियोगिता में हिस्सा लिया क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर चयन होना था, जो उस समय उन्हें कोरोना से अधिक महत्वपूर्ण लगा । वैसे देखा जाए तो यह सेंटर ,बारिश मे किसी सौगात से कम नहीं था परंतु रस्सी का रिंग व जमीन मे पड़ी रोड़ी बहुत ही कष्टप्रद थे। खिलाड़ियों का कहना था कि रोड़ी के फर्श में खेलना तो मुश्किल है ही उस पर नारियल की रस्सियों के घेरे से जिस्म छिलने का डर भी बना रहता है । परन्तु प्रतियोगी बच्चे हर परिस्थिति में इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए विवश थे। इस प्रतियोगिता को देख कर लग रहा था कि जैसे व्यवस्थापकों को पहले से कुछ पता हीनहीं था और अचानक राष्ट्रीय स्तर के इस चयन का आयोजन करना पड़ा। पर बौक्सिंग के लिये जबरदस्त मेहनत करने वाले बच्चे इस आयोजन का आकर्षण थे , उनमें वह पूरी क्षमता थी , जो किसी प्रतियोगी को मैडल दिला सकती है , पर इस तरह की लापरवाही से किये गये आयोजन और सुविधाओं के नाम पर एक अदद बौक्सिंग रिंग तक नहीं यह परिस्थितियां इन प्रतियोगियों को क्या भविष्य देंगी ? यह प्रश्न मुखर्जी निर्वान ,जो कि बौक्सिंग के लिये समर्पित व्यक्तित्व हैं को अत्यधिक दुखी किये हुए था। उन्होंने अपनी यह व्यथा एवं अतिआवश्यक सुविधाएं जैसे बौक्सिंग रिंग आदि पर पूरी चर्चा जिलाधिकारी , नैनीताल के सम्मुख रखी । जिलाधिकारी ने आश्वासन दिया है कि शीघ्र ही एक बौक्सिंग रिंग डी.एस.ए. को उपलब्ध करा दिया जाएगा । इस आश्वासन ने नैनीताल के बौक्सिंग खिलाडियों में एक नई उम्मीद और हौसला जगाया है ।