प्रयाग पाण्डे
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीती छह मार्च,2025 उत्तराखंड के हर्षिल में आयोजित जनसभा को संबोधित करते हुए गैर पर्यटक मौसम समझे जाने वाले ठंड के दिनों में उत्तराखंड में “घाम तापो” पर्यटन को बढ़ावा देने की वकालत की है। प्रधानमंत्री के इस कथन को लेकर अगर केंद्र और राज्य की सरकारें गंभीर हों तो “घाम तापो” पर्यटन का यह विचार हकीकत में मूर्त रूप ले सकता है। इस मामले में यदि सरकार व्यावहारिक एवं सुविचारित पर्यटन नीति बनाए तो उत्तराखंड में बारहमासी पर्यटन उद्योग को प्रोत्साहित किए जाने की अपार संभावनाएं हैं।
आधुनिक पर्यटन उद्योग में मौसमीयत का बड़ा महत्व है। वस्तुतः पर्यटन मुख्य रूप से सेवा उद्योग है। सेवा उत्पाद अमूर्त होते हैं। पर्यटन उद्योग में मूर्त से अमूर्त उत्पादों का विपणन कहीं अधिक होता है। नैसर्गिक सौंदर्य के साथ बर्फ, वर्षा, बादल, गर्मियों के दिनों ठंडी हवा की बयार और जाड़ों में गुनगुनी धूप आदि सब पर्यटन उत्पाद हैं।
बर्फ से ढके पहाड़, झील, जंगल, सरपट दौड़ती नदियां, गुनगुनाते झरने, अनुपम घाटियां, ऊँचे-ऊँचे पर्वत, अभयारण्य और कभी समाप्त नहीं होने वाला अदभुत प्राकृतिक सौंदर्य सदैव पर्यटकों को लुभाता है। ये सभी खूबियां उत्तराखंड में मौजूद हैं। यहाँ के प्राकृतिक संसाधनों, विशिष्ट भौगोलिक बनावट एवं मौसमीयत की विविधता में गैर पर्यटन मौसम में भी पर्यटकों को लुभाने का सामर्थ्य है। पर्यटक जाड़ों के मौसम में प्रकृति की गोद में बैठकर चमकते सूरज में “घाम ताप’ सकते हैं। उत्तराखंड लोकप्रिय बारहमासी वैकल्पिक पर्यटन स्थल बन सकता है। अगर ऐसा हुआ तो उत्तराखंड में नए पर्यटक स्थलों का विकास हो सकता है। यहाँ के बेरोजगार नौजवानों को रोजगार के अवसर मिल सकते हैं। धन के फैलाव से उत्तराखंड के आर्थिक विकास को बढ़ावा मिल सकता है।
बेशक पर्यटन उद्योग समृद्धि लाता है। बशर्ते कि एक सुविचारित एवं पर्यावरण हितैषी पर्यटन नीति हो। ऐसा नहीं होने की स्थिति में पर्यटन उद्योग समाज और पर्यावरण के लिए अहितकर सिद्ध हो सकता है। अनियोजित एवं अनियंत्रित पर्यटन न केवल पर्यटन को नष्ट कर देता है, बल्कि ऐसा अनियंत्रित पर्यटन, क्षेत्र की सामाजिक एवं सांस्कृतिक पहचान और मूल्यों के नष्ट होने तथा प्राकृतिक संसाधनों को क्षति पहुँचाने में सहायक भी हो सकता है।
पहाड़ पर्यावरणीय दृष्टि से अति नाजुक हैं। इसलिए यहाँ पर्यटन स्थल की वहन क्षमता के अनुसार पर्यटकों की संख्या का निर्धारण किया जाना आवश्यक है। पर्यटक स्थल की ‘पचाने’ की सामर्थ्य का खयाल किए बिना जरूरत से अधिक पर्यटकों के आगमन से पहाड़ का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। उत्तराखंड में पर्यटन उद्यम को बढावा देने के साथ प्राकृतिक संसाधनों का सामंजस्यपूर्ण एवं व्यवस्थित ढंग से उपयोग और पर्यावरण एवं पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखना आज की आवश्यकता है।
यदि स्थानीय संसाधनों का प्रबंधन वैज्ञानिक आधार पर नियोजित हो तो पर्यटन आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। पर्यटन सहित अन्य सभी विकास योजनाओं में उत्तराखंड की स्थानीय पारिस्थितिकी परिस्थितियों में संतुलन होना आवश्यक है। अगर ऐसा न हुआ तो हिमालय को कूड़ेदान में तबदील होने से कोई नहीं रोक सकता। नैनीताल, मसूरी जैसे ख्यातिलब्ध हिल स्टेशनों तथा पहाड़ के अन्य नगर- कस्बों का कुप्रबंधन एवं बदहाली किसी से छिपी नहीं है।