अतुल शर्मा
(सुरंग मे फंसे मज़दूरों के नाम)
सांस घुटती जा रही है
आस लुटती जा रही है
इन सुरंगों मे अंधेरा है
मौत के साये ने घेरा है
रास्ते हैं बंद घुटती सांस का जंगल
एक सदी सा बीतता हर पल
बंद होती जा रही हैं ये आवाज़ें
ज़िन्दगी है एक काला जल
यहाँ पर काला सवेरा है
इन सुरंगों मे अंधेरा है
त्रासदी है इन चट्टानों सी
पर्वतों के पांव उखडे़ हैं
सांस घुटती इन मुहानों मे
धड़कनों के द्वार सिकुड़े है
चीख की बाहों ने घेरा है
इन सुरंगों मे अंधेरा है
आस और उम्मीद जारी है
सांस लेना आज भारी है
देर होती जा रही पल पल
पर्वतों का दर्द जारी है
उदासियों का घना कोहरा है
इन सुरंगों मे अंधेरा है.