ललित मौर्य
‘डाउन टू अर्थ’ से साभार
ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ने का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा। यही वजह है कि 2022 के दौरान वातावरण में मौजूद ग्रीनहाउस गैसें रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई थी। कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) जोकि जलवायु परिवर्तन के दृष्टिकोण में सबसे ज्यादा योगदान दे रही है उसका औसत स्तर भी वर्ष 2022 में रिकॉर्ड 417.9 भाग प्रति मिलियन (पीपीएम) पर पहुंच गया था। अनुमान है कि इसमें बढ़ने का यह सिलसिला 2023 में भी जारी रह सकता है।
इतना ही नहीं यदि औद्योगिक काल से पहले को तुलना में देखें तो सीओ2 का वैश्विक औसत स्तर तब से 50 फीसदी बढ़ चुका है। जो पर्यावरण और जलवायु में आते बदलावों के दृष्टिकोण से बेहद खतरनाक है। यह जानकारी 15 नवंबर 2023 को विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) द्वारा जारी नई रिपोर्ट में सामने आई है।
आपको जानकर हैरानी होगी की पिछली बार पृथ्वी पर सीओ2 का इतना स्तर 30 से 50 लाख साल पहले अनुभव किया गया था। जब तापमान दो से तीन डिग्री सेल्सियस ज्यादा दर्ज किया गया था और समुद्र का स्तर आज की तुलना में 10 से 20 मीटर अधिक था।
डब्ल्यूएमओ के मुताबिक इन गैसों में तेजी से होती वृद्धि के लिए हम मनुष्य ही जिम्मेवार हैं। जीवाश्म ईंधन का बढ़ता उपयोग इसकी सबसे बड़ी वजह है। गौरतलब है कि यह ग्रीनहाउस गैसें सूर्य से आने वाली गर्मी को पृथ्वी पर ही रोक देती हैं जिससे वैश्विक तापमान में तेजी से इजाफा हो रहा है। जो जलवायु में आते बदलावों की वजह बन रहा है।
इसकी वजह से बाढ़, तूफान, लू जैसी चरम मौसमी घटनाएं कहीं ज्यादा विकराल रूप ले रहीं हैं। इतना ही नहीं बढ़ता तापमान समुद्र के जलस्तर में होती वृद्धि के साथ-साथ ग्लेशियरों में जमा बर्फ के भी पिघलने की वजह बन रहा है, जिसकी वजह से न केवल आपदाएं आ रहीं हैं साथ ही जल सुरक्षा के लिए भी खतरा पैदा हो गया है।
पैरिस समझौते के लक्ष्यों से भटक रही है दुनिया
हालांकि डब्ल्यूएमओ द्वारा जारी ग्रीनहाउस गैस बुलेटिन के मुताबिक सीओ2 के स्तर में होती वृद्धि की दर पिछले वर्ष और दशक के औसत की तुलना में थोड़ी कम रही। गौरतलब है कि पिछले दशक ग्रीनहाउस गैसों में होती औसत वार्षिक वृद्धि को देखें तो वो 2.46 पीपीएम थी। वहीं साल 2022 में इसके औसत स्तर में 2.2 पीपीएम की वृद्धि दर्ज की गई है। मतलब की 2021-22 के बीच इसके औसत स्तर में 0.53 फीसदी की वृद्धि हुई है।
डब्ल्यूएमओ के मुताबिक ऐसा संभवतः कार्बन चक्र में हुए प्राकृतिक और अल्पकालिक बदलावों के कारण हुआ। वहीं औद्योगिक गतिविधियों के चलते उत्सर्जन में होती वृद्धि 2022 में भी जारी रही।
संयुक्त राष्ट्र की जलवायु परिवर्तन पर दुबई में होने वाली कॉप-28 वार्ता से पहले जारी इन आंकड़ों के मुताबिक इस दौरान न केवल कार्बन डाइऑक्साइड बल्कि मीथेन (सीएच4) के स्तर में भी वृद्धि दर्ज की गई। इसी तरह नाइट्रस ऑक्साइड जोकि तीसरी सबसे प्रमुख ग्रीनहॉउस गैस है उसमें भी 2021-22 के बीच रिकॉर्ड वृद्धि दर्ज की गई।
मीथेन एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है जो दशकों तक वातावरण में बनी रह सकती है। गौरतलब है कि जहां 2022 में मीथेन का औसत स्तर 2021 की तुलना में 16 भाग प्रति बिलियन (पीपीबी) की वृद्धि के साथ 1923 पीपीबी पर पहुंच गया। जो वर्ष 1750 की तुलना में 264 फीसदी अधिक है। डब्ल्यूएमओ के मुताबिक करीब 40 फीसदी मीथेन प्राकृतिक स्रोतों से उत्सर्जित होती है जबकि बाकी 60 फीसदी के लिए इंसानी उत्सर्जन जिम्मेवार हैं।
इसी तरह 2022 में नाइट्रस ऑक्साइड का स्तर 1.4 पीपीबी की वृद्धि के साथ बढ़कर 335.8 पीपीबी पर पहुंच गया है। अनुमान है कि 60 फीसदी नाइट्रस ऑक्साइड प्राकृतिक स्रोतों से उत्सर्जित हो रही है, जबकि 40 फीसदी के लिए हम इंसान जिम्मेवार हैं।
तेजी से घट रहा कार्बन बजट
बुलेटिन में इस तथ्य को भी उजागर किया गया है कि कार्बन बजट तेजी से घट रहा है। यह तब है जब उत्सर्जित होते सीओ2 का आधे से भी कम हिस्सा वातावरण में मौजूद रहता है, क्योंकि उत्सर्जित होते कार्बन डाइऑक्साइड में से एक चौथाई से ज्यादा को समुद्र द्वारा सोख लिया जाता है।
वहीं करीब 30 फीसदी को जंगलों और जमीनी पारिस्थितिक तंत्र द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। हालांकि जब तक उत्सर्जन जारी रहेगा तब तक सीओ2 वातावरण में जमा होती और वैश्विक तापमान में इजाफा करती रहेगी। बता दें कि सीओ2 का जीवन काल बेहद लम्बा होता है और यह लम्बे समय तक वातावरण में बनी रह सकती है। ऐसे में यदि इसका उत्सर्जन शून्य हो भी जाए तो भी तापमान पर इसका प्रभाव कई दशकों तक बना रहेगा।
यदि बढ़ते तापमान में इन गैसों की हिस्सेदारी को देखें तो अकेले कार्बन डाइऑक्साइड इसके 64 फीसदी के लिए जिम्मेवार है। वहीं मीथेन की इसमें 16 फीसदी और नाइट्रस ऑक्साइड की सात फीसदी हिस्सेदारी है।
नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के वार्षिक ग्रीनहाउस गैस इंडेक्स (एजीजीआई) से पता चला है कि 1990 से 2022 के बीच, हमारी जलवायु पर बढ़ते तापमान के प्रभाव में 49 फीसदी की वृद्धि हुई है। इस वृद्धि में लंबे समय तक बनी रहने वाली ग्रीनहाउस गैसों ने भारी योगदान दिया है, जिसमें सीओ2 की कुल हिस्सेदारी करीब 78 फीसदी है।
डब्लूएमओ के महासचिव प्रोफेसर पेटेरी तालास ने इस बारे में चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि, “दशकों की वैज्ञानिक चेतावनियों, रिपोर्टों और कई जलवायु सम्मेलनों के बावजूद, हम अभी भी गलत दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।“
उनके मुताबिक ग्रीनहाउस गैसों का जो मौजूदा स्तर है वो सदी के अंत तक पैरिस समझौते के तहत जो बढ़ते तापमान को सीमित रखने के लक्ष्य तय किए गए हैं उनसे कहीं ज्यादा वृद्धि का संकेत देता है। यह चरम मौसमी घटनाओं जैसे भीषण गर्मी, बारिश, बर्फ का पिघलना, समुद्र के स्तर में वृद्धि आदि में होती बढ़ोतरी का भी संकेत देता है।
उनका कहना है कि इससे सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय लागत बढ़ जाएगी। ऐसे में उन्होंने जीवाश्म ईंधन की खपत को कम करने के लिए तत्काल कार्रवाई पर जोर दिया है। गौरतलब है कि पेरिस समझौते के तहत वैश्विक तापमान में होती वृद्धि को औद्योगिक काल से पहले की तुलना में डेढ़ से दो डिग्री सेल्सियस के बीच सीमित रखने का लक्ष्य रखा गया था।