डा अतुल शर्मा
दून लाइब्रेरी व शोध केंद्र द्वारा आयोजित एक विशेष व्याख्यान और अद्भुत लोक नाट्य का गायन प्रस्तुत किया गया जिसका विषय था – उत्तराखंड के लोक रंगमंच लोक संगीत का प्रभाव, जिसे सुपरिचित रंगकर्मी डा राकेश भट्ट ने प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत किया। 14 नवम्बर 23 को साढे़ चार बजे से कार्य क्रम आरम्भ हुआ।
डा राकेश भट्ट ने गढ़वाली निकट चक्रव्यूह के लोक गायन को ऐसे प्रस्तुत किया कि लगा जैसे हम नाटक के दृष्यों को ही देख रहो हों, आवाज़ और एक्स्प्रेशन भाव भंगिमा के साथ तमाम रंगमंचीय रस भी साथ साथ उभर आये। लगातार डेढ़ घंटे तक गायन से लगा कि वे सिर्फ लोक नाट्य और लोक गायन कर नही रहे बल्कि जी रहे हैं। यह अद्भुत अनुभव रहा। किस दृष्य मे कैसी आवाज़ होनी चाहिए यह भी प्रस्तुत किया। शुभम बिष्ट ढोलक पर और आशुतोष हुड़के के पर रहे, गायन मे सोनिया गैरोला और भावना नेगी अभिषेक थपलियाल ने सधा हुआ साथ दिया। गांव, शहर, देश, विदेश मे इसके सैकड़ों प्रदर्शन हुए हैं। पहाड़ के गाँव से लोग इसके साथ जुड़ जाते हैं। आंसू से भर जाती हैं आंखें। एक अनुभव ऐसा रहा कि जब अभिमन्यु का वध हुआ तो गांव के समाम लोगों ने घेर लिया इस पात्र को। तब पांडवो और कौरवों के बीच महाभारत का युद्ध चक्र व्यूह के माध्यम से प्रस्तुत करने में डा नन्द किशोर हटवाल, डा डी आर पुरोहित व विभिन्न लोक गायको का साथ रहा है। इसमें नयी पीढ़ी को भी प्रशिक्षण दिया गया है। देव यात्रा, पांडव, बगवान, राधाखंडी, बेड़ा परंपरा, नाग, नरसिंह गायन के साथ थड़िया, चौफला, मन्डाण, रान्सा के बारे मे डा भट्ट ने जानकारी दी।
यह गढ़वाल का ऐसा लोक नाट्य है जिसमे अभिनेता व पार्श्व मे कार्य करने वाले सभी रंगकर्मी समर्पण भाव से इसे खेलते हैं। इसमें लोक संगीत और भाषा का सशक्त प्रभाव दिखाई देता है। लेखन उत्तम है। प्रस्तुति महत्वपूर्ण है।
व्यख्यान के साथ लोक गीतो की प्रस्तुति भी अलग प्रभाव डालती रही। जैसे- संध्या सौरी एगे ते ऊंचा हिमाल, पेलन मास यूँ बालू जमी आदि।
नाट्य परंपरा और गढ़वाल की लोक संस्कृति के महत्वपूर्ण तत्व बहुत दक्षता के साथ प्रस्तुत किये गये। उत्सव द्वारा स्लाइड भी दिखाई गयीं। इसी के साथ नंदा नाटक के विषय मे भी विस्तृत जानकारी दी गयी। गढ़वाल की भाषा का सौन्दर्य भी दिल को छू गया।
श्री चन्द्र शेखर तिवारी ने कार्यक्रम की शुरुआत की। डा योगेश धस्माना ने संचालन किया और श्री बीजू नेगी ने आभार व्यक्त किया। लेखक रंगकर्मी व संस्कृति कर्मी देर तक आनन्द लेते रहे।