जयसिंह रावत
उत्तराखण्ड हिमालय स्थित चारों धामों में यात्रा की शुरुआत में ही जिस तरह श्रद्धालुओं की अप्रत्याशित भीड़ उमड़ रही है उसे देखते हुये अनुमान लगाया जा रहा है कि इस साल पर्यावरणीय दृष्टि से अति संवेदनशील इन तीर्थां में 70 लाख तक यात्रियों की आमद हो सकती है जिसकी दो दशक पहले तक कल्पना भी नहीं की गयी थी। सरकारी रिकार्ड के अनुसार पिछले साल बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री पहुंंचने वाले यात्रियों की संख्या 56, 31,224 थी। जबकि राज्य गठन के वर्ष 2000 में इन चारों घामों में कुल 12,92,411 यात्री पहुंचे थे। सन् 1968 में जब पहली बार बद्रीनाथ बस पहुंची थी तो वहां तब तक लगभग 60 हजार यात्री यात्रा पर पहुंचते थे। इसी तरह 1969 में जब गंगोत्री तक मोटर रोड बनी और 1987 में वहां भैरों घाटी का पुल बना तो वहां तब तक लगभग 70 हजार यात्री पहुंचते थे।
हिमालयी धामों में यात्रियों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि के साथ ही वाहनों की संख्या में भी उतनी ही वृद्धि हो रही है। पिछले साल के आंकड़ों के अनुसार समुद्र तल से तीन हजार मीटर से अधिक ऊंचाई पर स्थित इन धामों तक 5,91,300 वाहन पहुंच चुके थे। हिमालय पर यात्रियों के इस महारैले से व्यवसायियों का गदगद होना स्वाभाविक ही है, क्योंकि यह यात्रा उत्तराखण्ड की आर्थिकी की रीड होने के साथ ही पड़ोसी राज्यों को भी प्रत्यक्ष या परोक्ष लाभ पहुंचाती है। लेकिन पर्यावरण और आपदा प्रबंधन से जुड़े लोगों को आस्था के अप्रत्याशित ज्वार ने चिन्ता में डाल दिया है। चिन्ता भी स्वाभाविक ही है क्योंकि इन तीर्थों और समग्र रूप से हिमालय की धारण क्षमता नहीं है। प्रख्यात पर्यावरणविद् पद्मभूषण चण्डी प्रसाद भट्ट हिमालयी तीर्थों में इतनी भीड़ को चिन्ताजनक मानते हये कहते हैं कि इस संवेदनशील क्षेत्र में कभी लोग लाल कपड़े नहीं पहनते थे और वहां शोर करना भी वर्जित था।
इस अप्रत्याशित भीड़ का यात्रा मार्गों से जुड़े क्षेत्रों की नागरिक सुविधाओं पर अत्यंत दबाव तो देखा ही जा रहा है लेकिन यात्रा मार्ग पर गंदगी साफ देखी जा सकती है। इस मार्ग पर जो मलजल शोधन संयंत्र (एसटीपी) लगे हैं उनकी क्षमता भीड़ के मुकाबले बहुत कम है। इसलिये अतिरिक्त गंदगी पवित्र नदियों में मिल जाती है। पिछले ही वर्ष बदरीनाथ में लगे संयत्र का मलजल सीधे अलकनन्दा में प्रवाहित होते सारी दुनिया ने सोशल मीडिया पर देखा। लगभग 1300 किमी लम्बे चारधाम यात्रा मार्ग पर स्थित कस्बों की अपनी सीमित ठोस अपशिष्ट (कूड़ाकचरा) निस्तारण व्यवस्था है। सरकार या नगर निकायों के लिये अचानक इस व्यवस्था का विस्तार आसान नहीं होता। यात्रा सीजन में ऋषिकेश से लेकर चार धाम तक के रास्ते में जहां तहां जाम मिलता है और वाहन खड़े करने की जगह ही बड़ी मुश्किल से मिलती है।
सबसे अधिक चिन्ता का विषय वाहनों के रेले का हिमालय पर चढ़ना है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस साल 25 मई तक की यात्रा में 10.33 लाख यात्री और 1,01,134 वाहन चारों तीर्थों तक पहुंंच चुके थे और अभी नवम्बर तक यात्रा चलनी है। मात्र 15 दिनों में ही 56 यात्रियों की मौत भी सरकारी आंकड़े बता रहे हैं। इन वाहनों में भी सबसे अधिक चिन्ता पैदा करने वाले डीजल वाहन माने जाते हैं, जो कि अन्य की तुलना में सर्वाधिक प्रदूषक तत्व वातावरण में छोड़ते हैं। चूंकि डीजल कुछ सस्ता होता है इसलिये ज्यादातर लोग डीजल इंजन वाले वाहनों को वरीयता देते हैं। कमर्शिल वाहन तो पूरी तरह डीजल से ही चलते हैं।
वाहनों से जो प्रदूषणकारी उत्सर्जन होता है उसमें कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, फोटोकैमिकल ऑक्सीडेंट, वायु विष, अर्थात् बेंजीन, एल्डिहाइड, ब्यूटाडीन, सीसा, पार्टिकुलेट मैटर, हाइड्रोकार्बन, सल्फर के ऑक्साइड और पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन शामिल होते हैं। पर्यावरणविदों के लिये एक और चिन्ता का विषय ब्लैक कार्बन है जो कि जलवायु परिवर्तन करने के साथ ही ग्लेशियरों को भी पिघला रहा है। ऑटोमोबाइल द्वारा उत्सर्जित ब्लैक कार्बन बर्फ और बर्फ की सतहों पर जमा हो सकता है। गहरे रंग के कण हल्की सतहों की तुलना में अधिक सूर्य प्रकाश को अवशोषित करते हैं, जिससे बर्फ और बर्फ का ताप बढ़ जाता है और ग्लेशियरों के पिघलने की गति तेज हो जाती है। जंगलों की आग ने पहले ही वातावरण में ब्लैक काबर्न की वृद्धि कर दी है और अब डीजल वाहन इसमें और अधिक वृद्धि करेंगे। पिछले साल बदरीनाथ जाने वाले वाहनों की संख्या 2,69, 578 और गंगोत्री जाने वाले वाहनों की संख्या 96,884 थी। इस साल 15 दिन में ही बदरीनाथ में 22,231 और गंगोत्री में 16,068 वाहन चहुंच गये। ये दोनों ही धाम गागोत्री और सतोपंथ ग्लेशियर समूहों के क्षेत्र में हैं जो कि तेजी से पिघलने के कारण अन्तर्राष्ट्रीय चिन्ता का विषय बने हुये है। ये दोनों ही ग्लशियर समूह गंगा की मुख्य धारा अलकनन्दा और भागीरथी के उद्गम श्रोत हैं। यमुना का श्रोत यमुनोत्री ग्लेशियर है।
इसी साल अप्रैल में जारी इसरो की रिपोर्ट के अनुसार हिमालयी ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने के साथ ही ग्लेशियल झीलों की संख्या और आकार में निरन्तर वृद्धि हो रही है जो कि आपदाओं की दृष्टि से एक गंभीर खतरे का संकेत भी है। इसरो के मुताबिक, 676 झीलों में से 601 का आकार दोगुने से अधिक हो गया है, जबकि 10 झीलें 1.5 से दो गुना और 65 झीलें 1.5 गुना बढ़ी हैं। प्रख्यात ग्लेशियोलॉजिस्ट डा0 डी0पी0 डोभाल के अनुसार लगभग 147 वर्ग कि.मी. में फैले गंगोत्री ग्लेशियर के पीछे खिसकने की गति 20 से 22 मीटर प्रतिवर्ष है।
मैदानों में प्रायः 60 किमी प्रति घण्टा चलने वाले वाहन पहाड़ों पर पहले और दूसरे गेयर में 20 किलोमीटर की गति से भी नहीं चल पाते। जिससे उनका ईंधन दोगुना खर्च होने के साथ ही प्रदूषण स्तर कई गुना बढ़ जाता है। समुद्रतल से लगभग 300 मीटर की उंचाई पर स्थित ऋषिकेश से वाहन शुरू हो कर 3042 मीटर की उंचाई पर स्थित गंगोत्री और 3133 मीटर की उंचाई पर स्थित बद्रीनाथ पहुंचते हैं। अगर इतने वाहन गोमुख के करीब पहुंचेंगे तो इस ग्लेशियर समूह का पीछे खिसकना स्वाभाविक ही है। पिछले एक दशक तक कांवड़िये हरिद्वार से ही गंगा जल भर कर लौट जाते थे, मगर अब वे जल भरने सीधे गोमुख जा रहे हैं।यही नहीं गंगोत्री और गोमुख के बीच जैनेरेटर भी लग गये हैं।