जगमोहन रौतेला
गढ़वाल रैजीमेंट का मुख्यालय है लैंसडौन (जिसे लैंसडाउन भी कहा और लिखा जाता है)। देवदार व बाँज के पेड़ों से ढका और घिरा लैंसडौन बहुत खूबसूरत पहाड़ी कस्बा है। इसका अधिकतर हिस्सा कैंट बोर्ड के अन्तर्गत है। इसी कारण इस शहर में अभी प्राकृतिक तौर पर बहुत कुछ बचा हुआ है और यहाँ अभी बेतरतीब ढंग से सीमेंट-कंक्रीट का जंगल नहीं उगा है, जो एक सकून देता है।
कैंट बोर्ड के अन्तर्गत होने के कारण आमजनों की आबादी भी बहुत अधिक नहीं है। जिसके कारण यहाँ सामाजिक, सांस्कृतिक और दूसरी हलचलें कम होती हैं। एक तरह से लैंसडौन की यह नीरवता गत 19 मई 2024 को कर्मभूमि फाउंडेशन द्वारा किए सम्मान समारोह के कारण टूटी। कार्यक्रम में शहर के और दूसरे स्थानों से कला, साहित्य और पत्रकारिता से जुड़े लोग बड़ी संख्या में एकत्र हुए। यह समारोह था कर्मभूमि के यशस्वी सम्पादक रहे भैरव दत्त धूलिया जी की स्मृति में दिए जाने पत्रकारिता सम्मान का।
गत वर्ष 2023 से शुरू किया गया “पंडित भैरव दत्त धूलिया पत्रकारिता सम्मान” इस साल “नैनीताल समाचार” के सम्पादक राजीव लोचन साह को दिया गया। उन्हें यह सम्मान इतिहासकार, घुमक्कड़, लेखक डॉ. शेखर पाठक और कर्मभूमि फाउंडेशन की अध्यक्ष सुमित्रा धूलिया के द्वारा संयुक्त तौर पर प्रदान किया। गत वर्ष पहला सम्मान कई किताबें लिख चुके वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत को देहरादून में दिया गया था।
“नैनीताल समाचार” के सम्पादक राजीव लोचन साह ने अपने अखबार के माध्यम से जनपक्षधरता वाली पत्रकारिता की एक नई इबादत गत साढ़े चार दशकों में लिखी और नैनीताल समाचार एक उल्लेखनीय पत्र बनकर सामने आया। उसमें छपी रिपोर्टें/लेख आदि आज एक दस्तावेज बन गए हैं। नैनीताल समाचार का पहला अंक 15 अगस्त 1977 को प्रकाशित हुआ। यह पाक्षिक अखबार तब से निरन्तर प्रकाशित हो रहा है और सत्ता व व्यवस्था से सीधे तीखे तेवरों में सवाल करने के लिए जाना जाता है। अखबार ने अपने साढ़े चार दशक से भी अधिक के जीवन में कभी सत्ता की चरणवंदना नहीं की। अखबार और उसके सम्पादक राजीव लोचन साह के यही तेवर उन्हें पत्रकारिता में एक अलग मुकाम पर ले जाते हैं।
मुख्य वक्ता के तौर पर बोलते हुए डॉ. शेखर पाठक ने उन दिनों को बेहद आत्मीयता के साथ याद किया, जब वह कोटद्वार जाते थे तो भैरव दत्त धूलिया जी से अवश्य ही मुलाकात करते थे। उन्होंने कहा कि उनसे जब भी मुलाकात होती तो अपने देश और समाज को जानने-पहचानने की एक नई दृष्टि मिलती थी। वे बहुत ही सामान्य तरह से रहते थे। उनके लिए कोई भी पद या प्रतिष्ठा के आधार पर छोटा-बड़ा नहीं था। पेशावर काण्ड के नायक रहे वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली से भी शेखर पाठक की पहली मुलाकात धूलिया जी के घर पर ही कोटद्वार में हुई थी।
इनके अलावा समारोह को हिमांशु धूलिया, उमाकान्त लखेड़ा, तिगमांशु धूलिया, राजीव लोचन साह, डॉ. एसपी नैथानी, अनिरुद्ध सुन्दरियाल ने भी सम्बोधित किया। समारोह की अध्यक्षता कर्मभूमि फाउंडेशन की अध्यक्ष सुमित्रा धूलिया ने की। समारोह में न्यायमूर्ति यूसी ध्यानी, सुधांशु धूलिया, प्रो. उमा भट्ट, प्रो. आशीष धूलिया, जय सिंह रावत, पूरन बिष्ट, जगमोहन रौतेला, सुनील नेगी, देवेन्द्र नैथानी, पूर्व विधायक शैलेन्द्र रावत, कर्नल वाई एस रावत, वसुन्धरा मायाकोटी, डॉ.संजय कुमार, मीता साह, विजय अग्रवाल, अमिता नैथानी, राजेश अग्रवाल, उषा नैथानी, अयन राज बजाज, देवेन्द्र बुढ़ाकोटी, विनीता यशस्वी, गम्भीर सिंह रावत, राजेश्वर गुप्ता, सूरज कुकरेती, प्रताप सिंह खाती आदि कई लोग शामिल हुए।
उत्तराखण्ड की पत्रकारिता में पंडित भैरव दत्त धूलिया और उनके द्वारा सम्पादित और प्रकाशित किए गए साप्ताहिक अखबार “कर्मभूमि” का अपना एक विशेष महत्व रहा है। कर्मभूमि ने देश के स्वतंत्रता आन्दोलन में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। कर्मभूमि का प्रवेशांक बसन्त पंचमी के दिन 19 फरवरी 1939 को प्रकाशित हुआ था। इसके प्रवेशांक का लोकार्पण पंडित गोविन्द बल्लभ पंत ने किया था।
इस अखबार को निकालने का उद्देश्य स्वतंत्रता आन्दोलन के प्रति उत्तराखण्ड की जनता में जनजागरण करना और उनमें सामाजिक व राजनैतिक चेतना की ज्योति प्रज्ज्वलित करना था। जिसमें कर्मभूमि अखबार को सम्पादक भैरव दत्त धूलिया के कारण सफलता भी मिली। गाँवों में डाक के माध्यम से पहुँचने वाले कर्मभूमि का लोगों को बेसब्री से इंतजार रहता था और गाँव के जिस भी प्रभावशाली व्यक्ति के घर अखबार जाता था, वहां पहुँचने के बाद उसका सामूहिक वाचन गांव के सामुहिक आंगनों में किया जाता था। ऐसा इसलिए किया जाता था, ताकि लोगों को पता चले कि स्वतंत्रता आन्दोलन की कौन-कौन सी गतिविधियां देश भर में हो रही हैं। उत्तराखण्ड में लोगों को किसके नेतृत्व में कहां, क्या आन्दोलन करना है?
स्वतंत्रता आन्दोलन की अलख लोगों में और तेज करने के लिए अखबार निकालने की योजना भक्त दर्शन और भैरव दत्त धूलिया की आपस की बातचीत के बाद बनी। दोनों ही बहुत घनिष्ठ मित्र थे और एक साथ ही स्वतंत्रता आन्दोलन की गतिविधियों में भागीदारी भी करते थे। निर्णय को पूरा करने के लिए दोनों मित्रों ने जयहरीखाल के प्रयाग दत्त धस्माना और हरेन्द्र सिंह से भी बात की। ये दोनों भी अपने मित्रों की बात से सहमत हुए। अखबार के नाम को लेकर बहुत चर्चा के बाद “कर्मभूमि” नाम पर सहमति बनी।
मित्रों ने आपस में ढाई-ढाई हजार के शेयर इकठ्ठा किए। उसके बाद कुँवर सिंह नेगी “मैनेजर” के कालेश्वर प्रेस को लेकर एक “हिमालयन ट्रेडिंग पब्लिसिंग कम्पनी” की स्थापना भी कर दी गई। कर्मभूमि के सम्पादक के तौर पर भक्त दर्शन और भैरव दत्त धूलिया दोनों को शामिल किया गया। उस समय कर्मभूमि की 500 प्रतियॉ प्रकाशित होती थी। जो आज के लिहाज से एक बहुत बड़ी संख्या है। इन सभी लोगों ने अखबार निकालने का निर्णय किसी व्यावसायिक उद्देश्य से नहीं किया था। इन लोगों का उद्देश्य अखबार के माध्यम से लोगों में स्वतंत्रता आन्दोलन के लिए जागरुकता पैदा करना था और कुछ नहीं। इसी कारण ये सभी 500 प्रतियॉ डाक से और हाथों-हाथ नि:शुल्क भेजी जाती थी।
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विजया सती
रिपोर्ट और तमाम जानकारियों के लिए हार्दिक आभार