वजीर हस्सा
नैनीताल का कबाड़ा तो अनेक वर्षों से हो रहा है। वर्ष 2012 में एक गोष्ठी में भूगर्भ विज्ञानी प्रो. बहादुर सिंह कोटलिया (अब स्वर्गीय) कह गये थे कि नैनी झील की आयु अब पच्चीस वर्ष से ज्यादा की नहीं बची। देखा जाये तो नैनी झील अभी भी वेंटिलेटर पर है। यदि इसमें दो स्थानों पर हो रहे एरिएशन (आॅक्सीजन प्रवेश) को बन्द कर दिया जाये तो मारे बदबू के मालरोड पर खड़ा रहना असम्भव हो जायेगा। अभी अगस्त के महीने नगर के एक लोकप्रिय पिकनिक स्थल डाॅरोथी सीट (टिफिन टाॅप) की चट्टान टूट कर नीचे आ गई। सौभाग्य से उसमें जानमाल की क्षति नहीं हुई। चाइना पीक की पहाड़ी पर एक बड़ी सी दरार कुछ सालों से देखी जा रही है। अगर वह टूटी तो नगर के उत्तरी भाग का बहुत बड़े हिस्से पर कहर बरपा होगा। दक्षिण में बलिया नाला हरिनगर, रईस होटल इलाके का बड़ा हिस्सा निगल चुका है। करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद इसका उपचार नहीं हो पा रहा है (देखें नैनीताल समाचार, वर्ष 48, अंक 1-2, 15 अगस्त से 14 सितम्बर 2024)।
अंग्रेजों ने सन् 1880 का भूस्खलन झेला तो बड़े जतन के साथ नैनीताल को पाला, विकसित किया। उनके जाने के बाद नैनीताल को लेकर वह सोच धीरे-धीरे खत्म हो गई। मगर फिर भी उनके द्वारा किये गये सुरक्षात्मक उपायों के कारण नैनीताल अब भी बचा है। अब जो स्थिति है, उसमें नैनीताल का जो कुछ बचा हुआ है, उसे उसी तरह बचाये रखने के लिये खास तरह के चैकन्नेपन और सख्ती की जरूरत है। मगर वह सावधानी कहीं दिख नहीं रही है। इसके उलट पर्यटन के विकास और सौन्दर्यीकरण के नाम पर ऐसे ऊलजलूल काम किये जा रहे हैं कि रोना आ रहा है। प्रशासन को बार-बार टोकने पर भी उस पर कोई असर नहीं पड़ रहा है। अतः नैनीताल के विनाश की घड़ी ज्यादा तेजी से नजदीक आती लग रही है।
कुछ वर्ष पूर्व कैपीटल सिनेमा और बैंड स्टैंड के बीच के खुले हिस्से पर दो छोटे-छोटे, किन्तु भारी-भरकम पार्क बना दिये गयेे, जिससे इसकी खूबसूरती नष्ट हो गई और यह बेहद संकुचित हो गया। यह हिस्सा झील से सटा हुआ है और इसी के बगल में जमीन का एक टुकड़ा पिछले वर्ष टूट कर झील में समा गया। प्रशासन ने इससे कोई सबक नहीं सीखा, बल्कि इस दीवार की मरम्मत करवा कर उस ओर से आँखें फेर लीं। इसी दौरान खूबसूरत फ्लैट्स के भीतर एक बहुत ऊँची राॅक क्लाइंबिंग वाॅल बना कर फ्लैट्स को बदरंग कर दिया गया। फिर रामजे रोड और तल्लीताल बाजार में जिस तरह पत्थर लगाये गये, उनसे अब थोड़ा तेज वर्षा में ही कलक्ट्रेट से डाँठ तक का इलाका एक गधेरे में बदल जाता है और वहाँ पर से गुजरना मुश्किल हो जाता है। इन घटनाओं से नैनीताल के निवासी बहुत आहत हुए।
मगर इन्तिहा होना अभी बचा था। इस वर्ष कैपीटल सिनेमा के सामने फ्लैट्स पर एक ऊँची और भद्दी दीवार उठा दी गई और उधर नगरपालिका भवन के सामने की सीढ़ियों पर लगी सीमेंट की पुरानी और बेहद मजबूत रेलिंग्स अनावश्यक रूप से तोड़ कर उनमें लोहे की बदसूरत रेलिंग्स चेप दी गईं। अब सड़क चैड़ीकरण के नाम पर जहाँ-तहाँ तोड़फोड़ की जा रही है। इसकी जद में वर्ष 1873 में बना तल्लीताल का हेरिटेज डाकखाना भी आ रहा है और डाँठ पर लगी महात्मा गांधी की और मल्लीताल रिक्शा स्टैण्ड पर लगी पर्वतपुत्र भारतरत्न गोविन्द बल्लभ पन्त की प्रतिमायें भी। बलिया नाला एक बहुत बड़े भूगर्भीय फाॅल्ट के ऊपर है, जो झील से होकर अयारपाटा की पहाड़ी तक चला जाता है। अतः वैज्ञानिक दृष्टि से बलिया नाले के आसपास कोई बड़ा निर्माण कार्य करना कतई निरापद नहीं है। मगर अब बलिया नाले पर हल्द्वानी रोड के बगल में एक भारी भरकम पार्किंग का काम शुरू होने जा रहा है। इसके लिये वहाँ रह रहे निवासियों को हटाया जा रहा है और दीवाली तक अन्यत्र चले जाने के नोटिस दे दिये गये हैं। एक अन्य योजना के तहत तल्लीताल फाँसी गधेरे से लेकर तालाब के किनारे-किनारे बोट हाउस क्लब नौ करोड़ रुपये की लागत से बिजली की एक माला लगाई जा रही है। इस योजना के अन्तर्गत ठण्डी सड़क पर लाईट एंड साउंड के कुछ करतब भी किये जायेंगे। मजेदार बात यह है कि पाषाण देवी मन्दिर के बाद मन्दिर तक के जो चार नाले हैं, जिनमें पिछले कुछ सालों से तेज बरसात में भी पानी न बहने के कारण यह चिन्ता पैदा हुई है कि कहीं वह पानी भूमिगत होकर किसी बड़े विनाश की तैयारी न कर रहा हो, उन नालों में बिजली से पानी बहने का प्रभाव पैदा किया जा रहा है। इस योजना में यह भी ध्यान नहीं दिया गया है कि ठण्डी सड़क पर जो दुर्लभ प्राणि जीवन है, उस पर इन रोशनियों का क्या असर पड़ेगा।
नैनीताल के निवासियों, खास तौर से यहाँ रहने वाले उन मूल निवासियों, जिनकी आँखें तथाकथित पर्यटन के पैसे से चैंधियायी नहीं हैं, में प्रशासन की इन हरकतों से गहरी नाराजी है। दिक्कततलब बात यह है कि जनता के सामने यह स्पष्ट ही नहीं है कि क्या-क्या काम हो रहे हैं, क्यों हो रहे हैं और कौन उन्हें करवा रहा है। उनमें कितना खर्च आ रहा है और कौन सी निर्माण एजेंसी उन्हें करवा रही है। अब तक यह होता आया था कि कोई काम होता था तो एक बोर्ड पर यह लिख कर जनता को सूचित किया जाता था कि यह-यह कार्य हो रहा है, इतनी लागत से हो रहा है और यह कार्यदायी संस्था इसे करवा रही है। इधर की सरकारों ने वह सब करना छोड़ दिया गया है। चिन्तित नागरिकों की ओर से जिला प्रशासन को ज्ञापन के रूप में अपनी आपत्तियाँ और सुझाव दे दिये गये हैं, मगर उस ओर से कोई प्रतिक्रिया ही नहीं मिलती। अतः यह नाराजी अब धीरे-धीरे एक आन्दोलन में बदल रही है।
25 अक्टूबर को तल्लीताल डाँठ पर गांधी जी की प्रतिमा, जो अब शायद वहाँ नहीं रहेगी, की बगल में नैनीताल पीपुल्स फोरम की ओर से आठ घण्टे का धरना-उपवास किया गया। प्रातः 9 बजे से सायं पाँच बजे तक चले इस कार्यक्रम में विभिन्न राजनैतिक दलों, जन संगठनों के अतिरिक्त सामान्य लोगों ने भी भागीदारी की। वे लोग भी उसमें शामिल हुए, जो अन्यथा राजनीति के नाम पर ऐसे कार्यक्रमों से परहेज करते हैं। इस बार उन्हें भी महसूस हुआ है कि अब चुप रहना सम्भव नहीं है। नैनीताल में इस वक्त जो कुछ हो रहा है, वह बहुत गलत हो रहा है और इसके विरोध में आवाज उठाई जानी चाहिये।
कुल मिला कर इस विरोध के रूप में नैनीताल के लोगों का कहना है कि एक, शासन-प्रशासन की दृष्टि में पर्यटन की क्या अवधारणा है इसे समझाया जाये। दो, प्रशासन पर्यटन विकास और सौन्दर्यीकरण के नाम पर इस वक्त नैनीताल में जो कुछ कर रहा है, उसके बारे में जनता को स्पष्ट रूप से बतलाये कि क्या-क्या काम हो रहे हैं, किन योजनाओं के अन्तर्गत हो रहे हैं, कितनी धनराशि से हो रहे हैं और कौन सी कार्यदायी संस्थायें इन्हें करवा रही हैं। तीन, जब तक जनता के सामने स्थिति स्पष्ट नहीं होती, तब तक काम रोका जाये और जनता को विश्वास में लेकर ही उसे पुनः शुरू किया जाये।