कुमार संभव श्रीवास्तव
तेलंगाना सरकार के आईटी डिपार्टमेंट के मुख्य सचिव जयेश रंजन ने कहा हम सभी को इस बात की जानकारी है कि हमारा डिजिटल फुटप्रिंट रह जाता है। अगर आप मुझे किसी एक व्यक्ति का नाम बताएं तो मैं उसका पूरा डिजिटल फुटप्रिंट बता सकता हूं, जिसकी 96 फीसदी सही होने की संभावना है…
जनज्वार। हफिंगटन पोस्ट इंडिया द्वारा जांचे गए दस्तावेजों से यह बात सामने आयी कि तेलंगाना सरकार ने मोदी सरकार को एक ऐसी घुसपैठिया खोजपरक करने वाली व्यवस्था बनाने और देश के 120 करोड़ निवासियों के 360 डिग्री प्रोफाइल को बनाने और उन पर नजर रखने की व्यवस्था को बनाने में मदद देने की पेशकश की, जिसमें आधार स्थित आंकड़ों पर निर्भरता की कोई जरूरत नहीं थी।
19 अक्टूबर 2018 को तेलंगाना के इनफोर्मेशन टेक्नोलॉजी, इलेक्ट्रोनिक्स और कम्युनिकेशंस विभाग के मुख्य सचिव जयेश रंजन ने केंद्र सरकार इलेक्ट्रोनिक्स मंत्रालय के सचिव अजय प्रकाश साहनी से कहा कि तेलंगाना में पहले ही ऐसी व्यवस्था को लागू कर रखा है जो राज्य के 30 मिलियन निवासियों की जानकारी पर नजर रखती है। उन्होंने यह भी कहा कि तेलंगाना सरकार को खुशी होगी कि वह देश के 120 करोड़ निवासियों में से प्रत्येक के जीवन संबंधी डेटा पर निगाह रखने की व्यवस्था का निर्माण करने में केंद्र सरकार की मदद करे।
तेलंगाना द्वारा केंद्र सरकार को मदद देने की ये बात सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के तीन हफ्तों के बाद ही पेश कर दी गई जिस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने आधार की संवैधानिक वैधता पर मुहर लगाई थी। लेकिन नागरिकों की निजता पर अंकुश लगाने की दिशा में इसके इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी।
जयेश रंजन ने अपने ईमेल में लिखा, ‘आधार पर माननीय सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्णय को देखते हुए इस बात की तुरंत आवश्यकता है कि ऐसे समाधान तलाशे जाएं जो बिना आधार पर निर्भर हुए 360 डिग्री का नजरिया अपनाता हो। उन्होंने यह भी लिखा, ‘तेलंगाना ने ढाई साल पहले समाग्रम नामक एक परियोजना शुरू की थी जो गवर्नेंस संबंधी विभिन्न उद्देश्यों को पूरा करने के लिए एक स्मार्ट गर्वनेंस प्लेटफॉर्म है। ऐसा करना बहुत बड़े डेटाबेस के साथ लिंक स्थापित करके संभव था और इसमें किसी विशेष पहचान पर निर्भर रहने की जरूरत भी नहीं थी।’ गौरतलब है कि जयेश रंजन का यह ईमेल हफिंगटन पोस्ट ने सूचना के अधिकार कानून के तहत हासिल किया था।
इस संवाददाता ने तेलंगाना में चलने वाली व्यवस्था को निकट से देखा है और इस बात की ताकीद कर सकता है कि राज्य के वरिष्ठ अधिकारी और कानून लागू करने वाले अधिकारी राज्य के प्रत्येक नागरिक की जीवन संबंधी पूरी जानकारियों को तुरंत हासिल कर सकते थे और एक ही समय में बड़ी संख्या में सरकारी डेटा का इस्तेमाल करते हुए लोगों के पारिवारिक नेटवर्क भी तैयार कर सकते थे। हालांकि तेलंगाना के डेटाबेस की चर्चा पहले भी हो चुकी है। लेकिन यह पहली बार सामने आया है कि यह व्यवस्था लोगों के जीवन में अंदर तक घुसपैठ कर लेती है।
अपने ईमेल में जयेश रंजन ने लिखा, ‘इस समाधान को भारत सरकार के अनेक विभागों और दूसरे राज्यों को देते हुए तेलंगाना को काफी खुशी होगी। आप चाहेंगे तो हम दिल्ली आकर इस मॉडल का प्रस्तुतिकरण कर सकते हैं।’
मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी एवं विवादास्पद सामाजिक रजिस्ट्री समाग्रम नाम से जाने जाने वाले तेलंगाना के मॉडल का ही रुप है। इससे यही सिद्ध होता है कि बड़े स्तर पर आंकड़ों पर नजर बनाए रखना कोई काल्पनिक चीज नहीं बल्कि एक ऐसी सच्चाई है जो चिंता पैदा करती है। जैसा कि ‘हफिंग्टन पोस्ट इंडिया’ ने इससे पहले अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि राष्ट्रीय सामाजिक रजिस्ट्री खुद ब खुद इस बात पर नजर रखेगी कि कोई भी नागरिक एक शहर से दूसरे शहर कब जा रहा है, या कब नौकरी बदल रहा है, कब नई संपत्ति खरीद रहा है, उसके परिवार में नये सदस्य का जन्म कब हो रहा है, कब किसी व्यक्ति की मौत हो रही है और कब कौन अपने शादीशुदा साथी के घर जा रहा है। ये रजिस्ट्री आधार नंबरों का इस्तेमाल करके प्रत्येक नागरिक के धर्म, जाति, आमदनी, संपत्ति, शिक्षा, शादीशुदा जिंदगी, रोजगार, उसकी विकलांगता और उसके परिवार की पीढ़ी—दर—पीढ़ी जानकारियों को एक बहुत बड़े डाटाबेस के बतौर संकलित कर लेगी।
और जिस तरह सामाजिक रजिस्ट्री का निर्माण 2011 में की गई सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना के आधार पर किया जाएगा, तेलंगाना की समग्रम व्यवस्था भी समग्र कुटुंब सर्वेक्षण पर आधारित है। यह सर्वेक्षण इंडिग्रिटेड हाउसहोल्ड सर्वे के नाम से भी जाना जाता है और इसे 2014 में तेलंगाना सरकार ने राज्य के प्रत्येक नागरिक के निवास संबंधी एवं सामाजिक आर्थिक डेटा को इकट्ठा करने के मकसद से किया था।
तेलंगाना का समाग्रम डेटाबेस राज्य की कानून लागू करने वाली एजेंसियों को भी उपलब्ध है। इससे ये पता चल जाता है कि गरीबी दूर करने के लिए इकट्ठा किए गए डेटा का इस्तेमाल जबरदस्ती आदेश पालन करवाने वाली सरकारी एजेंसियों द्वारा भी किया जा रहा है।
केंद्र सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय के पूर्व आर्थिक सलाहकार और सामाजिक रजिस्ट्री को बनाने वालों में से एक मनोरंजन कुमार ने हफिंगटन पोस्ट इंडिया से कहा कि उन्हें डर कि इस व्यापक डेटाबेस के सरकार द्वारा दुरुपयोग करने का बहुत बड़ा खतरा है।’
‘मैं इस व्यवस्था को तब तक लागू नहीं करूंगा जब तक कि इसके इर्द—गिर्द की दूसरी व्यवस्थाओं में इस तरीके का बदलाव नहीं लाया जाता कि नागरिकों को न्याय दिलाया जा सके। मेरा तो मानना है कि पहले उस सीआरपीसी (CODE OF CRIMINAL PROCEDURE) का पुनर्मूल्यांकन किया जाये जिसके तहत आपकी उंगलियों के निशान ही आपकी उपस्थिति के साक्ष्य होते हैं। सरकारी विभागों में डेटा को लेकर सुरक्षा में सुधार किया जाये, न्यायालयों की क्षमता को बढ़ाया जाये, फिर आप इस तरह की व्यवस्था को लागू कीजिये, नहीं तो सरकार द्वारा केवल इसका बेजा इस्तेमाल ही हो सकता है।’
एक भयावह रूप से सही तस्वीर
हैदराबाद के आलीशान इलाके के पड़ोस में एक साधारण से दो मंजिला कार्यालय में बैठा हुआ एक सरकारी अधिकारी ने एक प्रतिष्ठित शहर में रहने वाले खिलाड़ियों और उनके पिता का नाम अंकित किया। सेकेंडों में उनके नाम से जुडी बारह लिंक दीवार पर लगी बहुत बड़ी सक्रीन में दिखाई देने लगे। इन जानकारियों में उनके पते, फोन नंबर, हाईस्कूल और हाई सेकेंडरी परीक्षा के ब्यौरे, पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस की जानकारी और उनके पास कौन सी गाड़ियां हैं इसकी भी जानकारी शामिल थी।
उस अधिकारी ने मुस्कराते हुए कहा, ‘यह बहुत अमीर हैं। इनके पास चार-चार गाड़ियां हैं। अब हम इनका नेटवर्क बनाने का काम शुरु करने की कोशिश करेंगे। ये जानने का प्रयास करेंगे कि ये लोग कैसे एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। ऐसा करना केवल कानून-व्यवस्था के लिए जरूरी है। आप अगर अपना फोन नंबर दे देंगे तो उसके आधार पर सबकुछ तैयार किया जा सकता है।’
दो तीन बार माउस को और क्लिक करके उस अधिकारी ने उन खिलाड़ियों के परिवार की रिश्तेदारी के बारे में एक तस्वीर खींच दी। खिलाड़ियों के भाई बहनों की तरफ इशारा करते हुए उस अधिकारी ने कहा कि इन खिलाड़ियों ने सरकारी रिकॉर्ड में यह जानकारी नहीं दर्ज करायी थी कि उनके भाई बहन भी हैं। लेकिन इस व्यवस्था ने उन्हें जोड़ दिया और उनके रिश्तों को स्थापित कर दिया।
हफिंगटनपोस्ट इंडिया उन खिलाड़ियों की निजता की रक्षा करते हुए उनके नाम और लिंग की जानकारी नहीं दे रहा है।
इस अधिकारी ने हफिंगटन पोस्ट इंडिया को बताया कि समाग्रम व्यवस्था पांच तरह के रिश्तों पर निगाह डालती है। उस व्यक्ति के माता-पिता कौन हैं, बच्चे कौन हैं, भाई बहन कौन हैं, पति पत्नी कौन हैं और दूसरे इस तरह के संबंध जैसे कि वे लोग जो खिलाड़ी के रिहायशी पते पर ही रह रहे हों या ऐसे लोग जो उसका ही फोन नंबर या ईमेल आईडी का इस्तेमाल कर रहे हों। अधिकारी ने आगे कहा, ‘यदि आप उन लोगों में से किसी पर भी माउस से क्लिक करें तो रिश्तोंरूपी ये वृक्ष उस व्यक्ति के नेटवर्क को और आगे बढ़ा देता है। ऐसा आप तब तक करते चले जाते हैं जबतक की आप आखिरी बिंदु तक नहीं पहुंच जाते।’
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अधिकारी ने यह भी बताया कि समाग्रम की यह रिश्तों संबंधी नेटवर्क की सुविधा कानून व्यवस्था लागू करने वाले एजेंसियों के वरिष्ठतम अधिकारियों के पास ही उपलब्ध रहती है। उन्होंने कहा, ‘देश में यह अपने ही तरह का पहला कार्यक्रम है, सोचिए इससे कानून व्यवस्था लागू करने वाली एजेंसियों को कितनी ताकत मिल जाती है। उनके पास खाली दो चीजें थी-व्यक्ति का नाम और पता। लेकिन आज उनकी पूरी जानकारी इनके पास है।’
इस अधिकारी ने यह भी बताया कि भारत की बहुत सी कानून व्यवस्था लागू करने वाली एजेंसियां हैं जो इसी तरह के डेटाबेस को बनाने का प्रयास कर रही हैं। ‘इस तरह का नेटवर्क संबंधी ढांचा फाइनेंसियल इंटेलीजेंस यूनिट बनाने की कोशिश कर रही हैं, आयकर विभाग भी कर रहा है, नेटग्रिड भी इस तरह की कोशिश कर रहा है और कानून व्यवस्था लागू करने संबंधी सभी एजेंसियां इस कोशिश में लगी हैं। वो इस ढांचे के निर्माण के अलग-अलग स्तर पर हैं। लेकिन कोई भी अभी समाग्रम के स्तर पर नहीं पहुंच सकी हैं।’
नेटग्रिट यानि नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड एक महत्वाकांक्षी नागरिकों पर निगाहें बनाए रखने और आतंकवाद के खिलाफ खुफिया जानकारी हासिल करने का एक ऐसा महत्वकांक्षी कार्यक्रम है जो केंद्र की सरकार पिछले कई सालों से तैयार करने की कोशिश कर रही है।
तेलंगाना सरकार के अधिकारियों का कहना है कि लोगों की जिंदगी पर नजर रखने और उनकी जानकारियों से मैल बिठाने की तेलंगाना राज्य की व्यवस्था भयावह तरीके से सटीक है।
जुलाई 2019 को एक जनसभा को संबोधित करते हुए तेलंगाना सरकार के आईटी डिपार्टमेंट के मुख्य सचिव जयेश रंजन ने कहा, ‘हम सभी को इस बात की जानकारी है कि हमारा डिजिटल फुटप्रिंट (जब भी हम ऑनलाइन पेमेंट या खरीददारी करते हैं तो इनका रिकॉर्ड सरकार के पास रहता है) रह जाता है।’
‘अगर आप मुझे किसी एक व्यक्ति का नाम बताएं तो मैं उसका पूरा डिजिटल फुटप्रिंट बता सकता हूं जिसकी 96 फीसदी सही होने की संभावना है।’ जयेश रंजन के इस संबोधन का वीडियो हफिंगटन पोस्ट इंडिया ने हासिल करके देखा है।
सहमति की कोई जरूरत नहीं
तेलंगाना सरकार का समाग्रम कार्यक्रम किसी भी व्यक्ति की पहचान को एल्गोरिथम के माध्यम से त्रिकोणात्मक रुप में बना लेते हैं। अधिकारियों का कहना है कि एल्गोरिथम मशीन से सीखने की विधा का इस्तेमाल करती है यानि कि खुद ब खुद सूचनाओं की सटीकता को बेहतर बनाती है।
अपने संबोधन में जयेश रंजन कहते हैं कि तेलंगाना सरकार ने राज्य के प्रत्येक नागरिक के समग्र डिजिटल प्रोफाइल बनाने की खातिर इस व्यवस्था का निर्माण 30 अलग-अलग सरकारी डेटाबेस एक साथ मिलाकर किया।
अपने संबोधन में जयेश रंजन ने उदाहरण देते हुए यह कहा कि अगर आप बैंक में खाता खोलते हैं तो बैंक का डेटाबेस आपकी सभी जानकारियां अंकित कर लेता है। अगर आप कोई मोबाइल फोन खरीदते हैं या एक सिमकार्ड खरीदते हैं तो ऑपरेटर का डेटाबेस आपकी व्यक्तिगत जानकारियों को अंकित कर देता है। वोटर लिस्ट भी आपकी जानकारियों को अंकित कर लेता है। अगर आप संपत्ति कर दे रहे हैं तो आपकी सारी जानकारी संपत्ति कर की सूची में दर्ज हो जाएगी। अगर आप कोई व्यावसायिक गतिविधि कर रहे हैं और जीएसटी का भुगतान करते हैं तो आपकी जानकारियां जीएसटी डेटाबेस में अंकित हो जाएंगी। इस तरह हममें से प्रत्येक की जानकारियां बहुत सारे डेटाबेस में अंकित हो जाती हैं और यही हमारा डिजिटल प्रोफाइल तैयार करता है।
किसी भी व्यक्ति के नाम और पते का इस्तेमाल करके समाग्रम व्यवस्था उस व्यक्ति का डिजिटल प्रोफाइल तैयार कर सकती है। इसमें फोन नंबर की जानकारी जोड़ने के बाद यह प्रक्रिया और तेज हो जाती है और सटीक भी हो जाती है।
राज्य के सरकारी अधिकारी इस स्तर की निगरानी को बेहतर प्रशासन के नाम पर न्यायोचित बताते हैं।
तेलंगाना के इलेक्ट्रॉनिक सर्विस डिलीवरी विभाग के कमिश्नर जीटी वेंकटेश्वर राव ने हफिंगटन पोस्ट इंडिया को एक ईमेल के माध्यम से बताया, ‘यह एक आम जानकारी है कि राज्य सरकार को व्यापार लाइसेंस फीस, संपत्ति कर और गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन आदि से मिलने वाला वैध राजस्व उतना जमा नहीं होता जितना होना चाहिए था। इसी तरह यह भी सच है कि ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जहां जिन लोगों के पास गाड़ियां हैं या बड़ी बड़ी जमीनें हैं या उद्योग धंधे हैं लेकिन फिर भी वृद्धावस्था पेंशन, निम्न आय वर्ग के व्यक्तियों को मिलने वाला राशन का अनाज आदि का लाभ उठाने की मांग करते हैं और वो इन्हें प्राप्त करने में सफल भी हो जाते हैं।’
वेंकटेश्वर राव ने आगे कहा, ‘वाकई जिन्हें इन सुविधाओं की जरूरत है वे इनसे महरूम रह जाते हैं इसलिए यह फैसला किया गया कि समग्र वेदिका जैसी परियोजना को लागू किया जाए। ताकि विभिन्न सरकारी विभागों में उपलब्ध डेटा के हिस्से की मदद लेकर उपरोक्त गड़बड़ियों को दूर किया जा सके और बेहतर प्रशासन दिया जा सके।’
वेंकटेश्वर राव ने यह भी कहा, चूंकि यह व्यवस्था आधार का इस्तेमाल नहीं करती, इससे यह पता लगता है कि इसपर सितंबर 2019 का सुप्रीम कोर्ट का निर्णय लागू नहीं होता। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में आधार कार्ड के इस्तेमाल पर कुछ शर्तें लगाईं थीं।
राव ने यह बात स्वीकार की कि 2017 का सुप्रीम कोर्ट का मशहूर निजता का अधिकार संबंधी फैसला महत्वपूर्ण था लेकिन इस फैसले ने कुछ वैधतापूर्ण उद्देश्यों के लिए व्यक्ति की निजता पर अंकुश लगाने का अधिकार सरकार को दे दिया। उन्होंने कहा अपने फैसले में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के कुछ वैध उद्देश्यों का जिक्र किया है इसमें सरकार के राजस्व की सुरक्षा सामाजिक कल्याण के फायदों की बर्बादी को रोकना, राष्ट्रीय सुरक्षा कानून व्यस्था संबंधी सुरक्षा और अपराध पर रोक लगाना इत्यादि शामिल हैं। पूर्व में चर्चित समग्र वेदिका के उद्देश्य भी सरकार की इन्हीं वैधपूर्व लक्ष्यों की श्रेणी में आते हैं।
वेंकटेश्वर राव ने यह भी कहा, ‘पहले इस तरह के प्रोफाइल तैयार करने के लिए नागरिकों की सहमति लेने की कोई आवश्यकता नहीं थी क्योंकि समाग्रम यह नहीं मानता कि सरकार को ताजा जानकारी इकट्ठा जानकारी इकट्ठा करने की जरुरत है। यह व्यवस्था तो नागरिक के उसी डेटा को एकसाथ जोड़ने की बात करती है जो डेटा विभिन्न सरकारी विभागों द्वारा पहले ही इकट्ठा किए गए हैं।’
वेंकटेश्वर राव ने आगे यह कहा, ‘यह (डिजिटल प्रोफाइल) उस डेटा का एक छोटा हिस्सा है जो पहले से ही सरकार के विभिन्न विभागों द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा है। समग्र वेदिका व्यवस्था के तहत सामान्य रुप से लोगों की जानकारी की कोई प्रोफाइलिंग नहीं की गई है। जब कोई नागरिक किसी तरह का लाभ प्राप्त करने के लिए प्रार्थना पत्र देता है या सरकारी राजस्व का भुगतान नहीं करता है तो उस भुगतान का विश्लेषण करने के लिए डेटाबेस से जुड़े लिंकेज के केवल रिकॉर्ड को ही खंगाला जाता है।’
राव ने यह दावा किया कि यह व्यवस्था अनेक सुरक्षा उपायों से लैस है और इस डेटाबेस का इस्तेमाल केवल वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों तक ही सीमित है। राव ने कहा कि उपभोक्ताओं का ऑडिट ट्रेल का रखरखाव किया जाता है और कम से कम डेटा रखने के सिद्धांत का अनुसरण किया जाता है।
लेकिन निजता के सिद्धांत के जानकार समाग्रम व्यवस्था के वेकटेश्वर राव के चरित्र चित्रण को स्वीकार नहीं करते।
नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली के सेंटर फॉर कम्युनिकेशंस गवर्नेंस में एसोसिएट डायरेक्ट स्मिता कृष्णा प्रसाद कहती हैं, ‘यह सही है कि सरकार के वैधतापूर्ण उद्देश्य को हासिल करने के लिए निजता के अधिकार पर अंकुश लगाया जा सकता है। लेकिन सरकार का वैधतापूर्ण उद्देश्य सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस तरह के अंकुश लगाए जाने के लिए बताए गए अनेक शर्तों में से केवल एक शर्त है।’
स्मिता कृष्णा प्रसाद आगे कहती हैं, ‘सुप्रीम कोर्ट के फैसले में यह भी कहा गया है कि निजता के अधिकार पर अंकुश किसी कानून के तहत ही लगाया जाना चाहिए। किसी भी व्यक्ति की निजता का हनन सरकार के वैधतापूर्ण उद्देश्यों को हासिल करने के अनुपातिक भी होना चाहिए।’
उन्होंने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट ने यह शर्तें इसलिए लगायीं हैं ताकि सरकार वैधतापूर्ण उद्देश्य का इस्तेमाल नागरिकों के अधिकारों पर अंकुश लगाने के लिए न कर सके। यही कारण है कि कानून व्यवस्था के नाम पर भी पूरी की पूरी आबादी को निगरानी के तहत नहीं रखा जा सकता।’
उन्होंने आगे यह भी कहा, ‘इस घटना में अगर किसी सरकारी विभाग द्वारा किसी खास उद्देश्य के लिए डेटा इकट्ठा करना कानून द्वारा सौंपा गया है तो इसका मतलब यह नहीं है कि कानून इस डेटा का इस्तेमाल दूसरे उद्देश्यों के लिए करने की भी अनुमति देता है। और पूरी की पूरी जनसंख्या के लिए व्यक्तिगत डेटा इकट्ठा करना या उसका विश्लेषण करना बताए गए लक्ष्य के समानुपातिक नहीं हो सकता।’
गैर लाभकारी इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन संस्था के कार्यकारी निदेशक अपर गुप्ता कहते हैं, ‘विभिन्न स्त्रोतों से नागरिकों का डेटा इकट्ठा कर उनका 360 डिग्री प्रोफाइल बनाकर इसका कई तरह से दुरुपयोग भी किया जा सकता है। खासकर इसलिए क्योंकि हमारे देश में अभी भी एक मजबूत डेटा सुरक्षा संबंधी कानून नहीं हैं। हालात ये हैं कि आज भी यह व्यक्तिगत सूचनाएं बाजार में बेची जा सकती हैं या फिर इनका इस्तेमाल वे लोग कर सकते हैं जो इस डेटा के माध्यम से हमें एक खास तरह का व्यवहार करने के लिए बाध्य कर सकें। लोगों के मन को इस तरह सामूहिक रुप में प्रभावित किया जा सकता है और फिर उसका इस्तेमाल व्यक्तिगत स्तर पर किया जा सकता है। तकनीक के माध्यम से ऐसा करना आज संभव है और इसका व्यापक इस्तेमाल भी हो रहा है।’
(कुमार संभव श्रीवास्तव की यह यह रिपोर्ट अंग्रेजी में huffingtonpost.in में प्रकाशित। यह रिपोर्ट की तीसरी किश्त है।)
हिन्दी वैब पत्रिका ‘जज्वार’ से साभार