विवेकानंद माथने
• कृषि का बजट घटा
• एमएसपी गारंटी कानून की कोई गारंटी नही
• किसान की आमदनी दोगुनी करने के लिये कोई प्रावधान नही
• गांव, गरीब, किसान की लूट और अमीरों को लाभ जारी
• कर्ज लेकर कॉरपोरेट घरानों के लिये विकास
• बेरोजगारी और महंगाई बढ़ाने वाला बजट
• आर्थिक विषमता बढ़ाने वाला बजट
• कर्ज के बोझ में डूबता भारत
अंतरिम बजट 2024-25 ने जो दिशा तय की है, उससे स्पष्ट है कि आगे भी गांव, गरीब और किसान की लूट जारी रहेगी। 2024-25 का अंतरिम बजट कुल 47.66 लाख करोड़ रुपये है। जिसमें कृषि के लिये केवल 1.27 लाख करोड़ रुपये रखे गये है, जो कुल बजट का मात्र 2.65 प्रतिशत है। इसमें से प्रत्यक्ष योजनाओं पर बहुत कम राशि आवंटित की गई है।
कृषि बजट पहले की तुलना में घटा दिया गया है। बजट में कृषि के लिये कोई विशेष प्रावधान नहीं किया गया। किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिये भी कोई उपाय नहीं किये गये। लेकिन खेती को कॉरपोरेट घरानों को सौंपने की प्रक्रिया जारी है।
इस बजट में गांव, गरीब, किसान और कृषि के लिये बडा ‘शून्य’ दिया गया है। देश में सबसे अधिक रोजगार देने की क्षमता रखने वाले कृषि क्षेत्र की सरकार द्वारा अनदेखी कृषि का संकट बढ़ायेगी। बेरोजगारी की समस्या और भयंकर होगी।
इस साल भी कृषि और किसानों के लिये बजट कि राशि बनाये रखी गई या उसे कम की गई है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लिये 14 हजार 600 करोड रुपये, कृषि बजट के अलावा प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के लिये 60 हजार करोड रुपयें, यूरिया सबसिडी के लिये 1 लाख 19 हजार करोड रुपयें का प्रावधान रखा गया है। प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिये, गोपालन के लिये बजट में कोई प्रावधान नहीं है।
अंतरिम बजट 24-25 के अनुसार बजट के प्रावधानों को पूरा करने के लिये इस वर्ष भी 16.85 लाख करोड़ रुपये कर्ज लेना होगा। 2014-15 से 2024-25 तक गत दस साल में लगभग 95 लाख करोड़ रुपये का कर्ज लिया गया है। और इस कर्ज पर केवल ब्याज भुगतान के लिये 11.90 लाख करोड़ रुपये खर्च करने होंगे। इस समय देश पर कुल 205 लाख करोड़ का कर्ज है, उसमें और भी बढोत्तरी होगी।
बजट पूर्ति के लिये सरकार को कॉरपोरेट टैक्स में बढ़ोत्तरी करनी चाहिये थी लेकिन इस बजट में भी कॉरपोरेट टैक्स में कोई बढ़ोत्तरी नही की है। पहले से ही 30 प्रतिशत से 22 प्रतिशत तक कम किये गये कॉरपोरेट टैक्स को बनाये रखा गया है।
बजट पूर्ति के लिये कॉरपोरेट टैक्स और दूसरे रास्ते ढूढने के बजाय सरकार लोगों की जेब से पैसा निकालकर और कर्ज लेकर काम कर रही है। इससे देश पर लगातार कर्ज बढ़ता जा रहा है।
जीएसटी का हर साल बढ़ता कलेक्शन यही साबित करता है कि जीएसटी का दायरा बढ़ाने के साथ साथ आम लोगों की जेब से पैसा निकालने के कारण जीएसटी कलेक्शन बढ़ रहा है।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में बीमा कंपनियों को केवल मुआवजा बांटने के लिये गत सात साल में 60 हजार करोड़ रुपये मिले है। उसके लिये करोड़ों किसानों से बीमा क़िस्त वसूली जाती है।
रेलवे मंत्रालय द्वारा सामान्य और स्लीपर के डिब्बे कम करके प्रवासियों को एसी के डिब्बे में प्रवास करने के लिये बाध्य किया जा रहा है, जिसके कारण एक अनुमान के अनुसार प्रवासियों को हरसाल लगभग 15 हजार करोड रुपये ज्यादा देने होंगे।
आरबीआई के द्वारा रेपो रेट में 2020 से अबतक 2.5 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी की गई और उसी अनुपात में ब्याज दर भी बढ़ाये गये है। जिससे इएमआई बढ़ने के साथ ही जरुरतमंद विद्यार्थियों को शिक्षा ऋण के बदले कुल ऋण पर 18 हजार करोड़ रुपये और सभी प्रकार के ऋण पर कर्जदारों को लगभग 9 लाख करोड़ रुपये ज्यादा देने होंगे।
इससे स्पष्ट है कि सरकार बजट पूर्ति के लिये कॉरपोरेट टैक्स और दुसरे रास्ते ढूंढने के बजाय सरकार लोगों की जेब से पैसा निकालकर और कर्ज लेकर काम कर रही है। कर्ज निकालकर जो विकास काम हो रहा है, उसकी कीमत लोगों को चुकानी पड़ रही है। इससे लोगों की लूट और देश पर कर्ज लगातार बढ़ता जा रहा है।
इस बजट में पुरानी योजनाओं के अलावा रेल गलियारे, रेल समुद्र मार्ग को जोडना, वंदे भारत की तरह 40 हजार डिब्बों का निर्माण, मंडियों को इ-नाम से जोड़ना, धार्मिक पर्यटन आदि योजनाओं का प्रमुखता से उल्लेख किया गया है। जोकि आम जनता के लिये नहीं बल्कि कारपोरेट घरानों के लिये शोषण के रास्ते बनाये जा रहे हैं।
सरकार की गलत विकास नीति के कारण प्राकृतिक संसाधनों का दोहन और बढ़ेगा। जिससे किसान और आदिवासी समाज की मुश्किलें और बढ़ेगी। पवित्र धार्मिक स्थानों को पर्यटन स्थानों में बदलने की सोच भारत की संस्कृति के विरुद्ध है।
सरकारी शोषण के विरुद्ध लोगों का आक्रोश बढता जा रहा है। उसे रोकने के लिये उनसे लूटी गई राशि का कुछ हिस्सा लोककल्याणकारी योजना के रुप में लोगों को वापस दिया जा रहा है। लेकिन इससे मिलने वाली मदद लोगों की लूट की तुलना में कुछ भी नही है। लोगों को जो दिया जा रहा है, उससे कई गुना ज्यादा उनसे लूटा जा रहा है।
सरकार कर्ज लेकर जो विकास काम कर रही है, उसमें गांव, गरीब और किसान के लिये कोई जगह नही है। बल्कि वह कॉरपोरेट कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिये कर रही है। इसके लिये अलग से सबूत देने की जरूरत नहीं है। यह दिख रहा है कि देश में अमीरों की संख्या लगातार बढ़ रही है। अमीर अमीर बनते जा रहे हैं और गरीबी बढ़ती ही जा रही है। आर्थिक विषमता बढ़ रही है।
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भारत सरकार का कुल बजट – 47.66 लाख करोड रुपये
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कृषि एवं शिक्षा विभाग – 1.17 लाख करोड रुपये
+ कृषि और संबंध कार्याकलाप – 10 हजार करोड रुपये
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कृषि एवं किसान कल्याण विभाग – 1.27 लाख करोड रुपये