मयंक सक्सेना
चिंटू जिस जुलूस की भीड़ में जनवरी की उस सर्द दोपहर, नारे लगाता हुआ चल रहा था – उसमें वो अद्भुत जोश और ताक़त महसूस कर रहा था।
चिंटू के एक हाथ में तलवार थी, नंगी तलवार..और दूसरे हाथ में मोबाइल था, जिससे वो जुलूस का फेसबुक लाइव कर रहा था।
एक घंटे पहले, पीछे की एक गाड़ी में बैठकर उसने पांच और लोगों के साथ कुछ पिया था और फिर सर्दी भी लगनी बंद हो गई थी। वो बहुत खुश था कि अब इन मुल्लों को ठीक कर दिया जाएगा।
उसकी सांसों में गर्मी बढ़ गई थी, उसने अपने बचपन के दोस्त शफ़ीक को राम की तस्वीर वाला मैसेज भेजा जिसके अंत में लिखा – ’सुधर जाओ मुल्लों वरना काशी और मथुरा तो बाकी हैं ही..सब कुछ वापस ले लेंगे।’ शफ़ीक ने अभी तक कोई जवाब नहीं दिया था, वो मुस्कुरा रहा था कि शफ़ीक भी डर गया है..शफ़ीक पिछले साल उसकी बहन की शादी में उसे बिना मांगे पच्चीस हज़ार दे गया था-उसकी हिम्मत भी नहीं है कि वापस मांग ले!
इसी बीच चिंटू की मां का बार-बार फोन आ रहा था। उसने झल्लाकर किनारे जाकर फोन उठाया और कहा कि क्यों मां उसे बार-बार फोन कर रही है। मां ने कहा कि बिजली पिछली रात से कटी हुई है और बिल देने के पैसे नहीं हैं, इस सर्दी में पिता की सेहत बिगड़ती जाएगी अगर रात को कुछ देर हीटर न चला। चिंटू ने चिढ़कर कहा, ’आज के दिन तो ये सब रोना छोड़ दो..मंदिर बन रहा है..’ मां ने फोन पर कुछ कहना चाहा पर चिंटू ने शोर में आवाज़ न सुनाई देने का बहाना कर के, फोन काट दिया…
चिंटू ने पिछले दो घंटे में अपने आप को शक्तिशाली महसूस किया था। उसे लग रहा था कि वो अकेला नहीं है। इस जुलूस के सैकड़ों लोग उसके साथ हैं। उसके हाथ में तलवार है और बंदूक भी होती तो पुलिस की हिम्मत नहीं है कि उसे रोक ले…ये होती है ताक़त..आज हिंदू के पास ये ताक़त है..उसे हिंदू होने पर गर्व हो रहा था।
चिंटू ने अपनी गर्लफ्रैंड को अपनी तलवार के साथ तस्वीर भेजी। उसने पलट के मैसेज किया, इसी से मुझे किसी दिन गुस्से में मार दोगे..चिंटू ने हंस के लिखा, ’भक्क, मेरी थोड़ी है, आज के लिए मिली है बस..’ गर्लफ्रैंड ने लिखा, ’गुंडे लग रहे हो..’ चिंटू ने हंस के लिखा, ’थैंक यू..’
इस बीच अचानक शोर मचा और चिंटू की समझ में कुछ आता, उससे पहले उसने देखा कि पुलिस की पिकेट पीछे हट गई है और शोभायात्रा के साथी गुस्से में गालियां देते हुए नारे लगा रहे हैं..चिंटू आगे बढ़ा, उसे लगा कि उसके साथियों को उसकी ताक़त की ज़रूरत है।
इसी बीच, ट्रक पर चल रहे डीजे को गाली देते हुए, गाना बजाने को कहा गया। डीजे पर गाना बजा…’जब मुल्ले का.. जाएंगे, तो राम-राम चिल्लाएंगे..’ चिंटू को हैरानी थी कि उसके अंदर ये साहस आया कहां से क्योंकि वो हाथ में तलवार लहराते हुए, पुलिस के सामने गंदी-गंदी गालियां बक रहा था..
उसके साथियों ने फूस की बनी एक दुकान में तोड़फोड़ की, चिंटू भी आगे बढ़ा और उसने जेब में से लाइटर निकालकर, दुकान में आग लगाने की कोशिश की..तब तक किसी और ने ये काम कर दिया था। वो सैकड़ों लोगों के साथ मिलकर नारा लगा रहा था…जय श्री….जय श्री…भारत माता की जय…पीछे लता मंगेशकर की आवाज़ में रामचरितमानस की चौपाई बज रही थी –
काम कोह मद मान न मोहा .
लोभ न छोभ न राग न द्रोहा.
जिन्ह कें कपट दंभ नहिं माया .
तिन्ह कें हृदय बसहुरघुराया.
चिंटू ने फिर से दो भद्दी गालियां दी..और साथियों के साथ बावला सा नाचने लगा..
शाम को बेहद थका हुआ वो घर लौटा। मां ने सामने खाना रखा तो वो बौखला गया, ’ये क्या..खिचड़ी?’ मां ने कहा..और कुछ था नहीं और गैस भी खत्म हो रही है। पिता खांस रहे थे और उनके पैर सूजे हुए थे। चिंटू रात को लेटा तो उसे बार-बार लगा कि हीटर 1 घंटा जल जाता तो कमरा गर्म हो जाता..ख़ैर दिन भर की ताक़त ने उसे संतोष दिया।
सुबह के 6 बजे हैं, चिंटू ने मां से कहा कि वो पानी गर्म कर दे तो उसे नहाकर काम पर जाना है। मां ने उसे याद दिलाया कि गैस कम बची है और बिजली है नहीं। वो ठंडे पानी से मुंह धोकर, काम पर निकला है। बस स्टॉप पर आज बसें देर में आ रही हैं। वो काम के लिए रास्ते से निकला तो वो ही दुकान उसे दिखाई दी जो पिछले दिन जलाई गई थी, वो मुस्कुराया और मोबाइल पर शफ़ीक को दोबारा मैसेज टाइप किया, ’क्यों बे मादर…जवाब नहीं सूझ रहा क्या?’ मैसेज भेजने से पहले उसका स्टॉप आ गया, वो उतरा और टाइम देखा तो आधा घंटे लेट था, तेज़ कदमों से चल कर वो एक ई रिक्शा में बैठा और उसके चलने का इंतज़ार करने लगा।
गैरेज में पहुंचने में वो एक घंटा लेट हो चुका था। उस्ताद उसे देखते ही चिल्लाए, ’मादर…बहन…कहां था बे..यहां काम भरा पड़ा है और तू एक घंटे लेट आ रहा है..फोन कहां है, कहां डाल के बैठा है..कामचोरी ही करनी है तो चला जा नेता बन जा!!’
उसने उस्ताद से कहने की कोशिश की कि वो इतनी गंदी गालियां न दे पर उसे पता था कि ये कहने के बाद और गालियां आएंगी और मार भी पड़ सकती है। वो चुप रह गया और कमीज़ बदल कर, सामने खुले इंजन पर बैठ गया। पीछे से फिर उस्ताद की आवाज़ आई, ’मादर…इंजन में ही घुस गया सीधे, इधर झाड़ू मार पहले और चार चाय लेकर आ..आकर ये फिल्टर साफ़ कर इधर और स्प्रे में तेल भर!!’
चिंटू चाय लेने जा रहा था..उसे उस्ताद पर बहुत गुस्सा आ रहा था। सामने करीम की चाय की दुकान पर उसे जय श्री राम वाला भगवा झंडा दिखाई दिया। उसने करीम से हंस कर कहा, ’क्या करीम भाई, भगवा टांग लिए बचने को..’ करीम ने कहा, ’भइया, जो जौन सा टांग जाता है, हम टंगवा लेते हैं..उनका धंधा ये है, हमारा ये..’
चाय उस्ताद को देकर वो काम में लग गया। पीछे से उस्ताद की आवाज़ आई, वो दो कस्टमर्स से बतिया रहे थे – ’भाईसाहब, अपना है धंधा..पर यहां भगवा-उगवा टांग लेंगे तो ग्राहक तो हमारा हर धर्म का है। पर कल हमने 22 लौंडे भेजे यात्रा में। 100 रुपया दिया, माल वहां फूंक लिया होगा..बढ़िया और बड़ी शोभायात्रा निकली..हम ने भी मस्त टीवी पर अजुध्धा से कार्यक्रम देखा बैठकर, खर्चा वर्चा खूब हुआ है।’
कस्टमर जाने के बाद, चिंटू ने उस्ताद से डरते हुए कहा – ’उस्ताद जी, वो बिजली का बिल भरना है, गैस भी खत्म है घर पर…कुछ पैसे मिल जाते तो..’ उस्ताद ने कोई जवाब नहीं दिया..
उसने काम ख़त्म कर के, उस्ताद से फिर ये बात दोहराई। उधर से कुछ 8-10 गालियां एक साथ आई। फिर पीछे से उड़ता हुआ एक ब्रश आया। ’मादर…टाइम पर आना नहीं, काम करना नहीं..ठीक से कुछ होता नहीं..दिन पर भर फोन पर लगा रहता है..और पैसे हमेशा टाइम से पहले चाहिए..दारू पीनी होगी न..लफंडरी करनी होगी..कल बुलाया तो बोला कि आज तो छुट्टी है..मादर..बहन..इनको छुट्टी चाहिए..ये सरकारी अफ़सर हैं कि छुट्टी चाहिए इनको..आया नहीं कल, सारे लड़के आए थे..’
चिंटू चुपचाप काम कर रहा था। उसका मन था कि वो बस अभी काम छोड़कर निकल जाए। वो बीता दिन याद कर रहा था, जब वो कितनी शक्ति महसूस कर रहा था। उसने फटाफट भैयाजी को फोन लगाया, जो उन लोगों को लेकर शोभायात्रा में गए थे। फोन नहीं उठा। उसने शोभायात्रा वाले ही दो और लोगों को फोन लगाया पर दोनों ने ही उसे बाद में फोन करने को कहा।
चिंटू कुछ मिनट सुन्न सा बैठा रहा। आज मां ने फोन नहीं किया था। फिर उसने मोबाइल निकाला, शफ़ीक वाला मैसेज वैसे ही टाइप किया पड़ा था। उसने वो मैसेज डिलीट किया और लिखा, ’भाई, कुछ पैसों का जुगाड़ हो सकता है क्या, न घर में बिजली है और न गैस..’ शफ़ीक ने तुरंत टाइप किया, ’इस नंबर पर पेटीएम हो जाएगा न?’ चिंटू ने लिखा, ’हां, भाई..’ शफ़ीक ने उधर से लिखा, ’अभी ढाई हज़ार भेज पाऊंगा..अंकल-आंटी कैसे हैं..’ चिंटू ने लिखा, ’बहुत शुक्रिया भाई, किसी दिन घर आकर मिल जाओ..’ शफ़ीक ने लिखा, ’थोड़ा माहौल ठीक हो जाए तो आता हूं, एक रिश्तेदार की तो दुकान जला दी गई है।’ चिंटू ने लिखा, ’अबे हमारे घर आने में क्या ख़तरा..घर है तुम्हारा’..शफ़ीक ने थम्स अप बनाकर भेजा।
चिंटू ई रिक्शा में है, घर जा रहा है। वो अभी भी पिछले दिन को याद कर रहा है। वो हैरान है कि आख़रि जो ताक़त उसने पिछले दिन महसूस की, वो आज कहां है, वो जोश कहां चला गया..
ई रिक्शा से उतरा तो उसे याद आया कि जेब में कैश नहीं है। उसने ड्राइवर से कहा कि वो पेटीएम ले ले। ड्राइवर ने मुस्कुराकर कहा कि उसके पास स्मार्टफोन नहीं है, कोई बात नहीं। पैसे कभी दोबारा टकराए तो ले लेगा। उसको स्पीडोमीटर के ऊपर लिखा 786 दिख रहा था। दोनों तरफ दो बच्चों के नाम लिखे थे। शाज़िया और आबिद…
चिंटू ने बिल जमा किया था और बिजली आ चुकी थी। गैस का सिलिंडर उसने दुकानदार को पैसे यूपीआई कर के भरवा दिया था। घर में घुसा तो सामने शफ़ीक बैठा था और चाय पी रहा था। पिताजी और मां किसी बात पर उसके साथ हंस रहे थे। वो चिंटू को देखकर बोला, ’बिरयानी लाए हैं, कल छोटी वाली का बर्थडे था लेकिन कल मनाते और बिरयानी बांटते तो घर में आग लगा देते…बासी खा लो..’
चिंटू बिना कुछ बोले, अंदर जाकर कपड़े बदलने लगा। मोबाइल पर गर्लफ्रेंड का मैसेज पड़ा था – ’मिलने का वक़्त नहीं है तो बता दो। मैं ऐसे कब तक झेलूं।’ चिंटू ने टाइप किया, ’जो मन आए करो..’ और फिर वो भद्दी सी गाली देते रुक गया। वो हैरान था कि उसकी ज़ुबान पर ये गाली कैसे आ गई…
वो अकेला महसूस कर रहा था। लेकिन बाहर शफ़ीक बैठा था। वो बाहर आया और शफ़ीक ने उसे चिढ़ाने के लिए कहा, ’क्या बे, कल क्या लिख रहा था?’ चिंटू ने शर्मा कर कहा, ’अबे मौज ले रहे थे..’ शफ़ीक ने कहा, ’समझ गए थे, इसीलिए कुछ लिखे नहीं..’
ये कहानी यहां ख़त्म नहीं हुई है। ये कहानी यहां ख़त्म हो भी नहीं सकती। ये कहानी, आप में से भी किसी की हो सकती है।
अभी शफ़ीक के सामने मुस्कुराता चिंटू, सुधर गया हो ये ज़रूरी नहीं है..क्योंकि वो कमज़ोर है, आर्थिक और सामाजिक दोनों तरह से कमज़ोर। तिस पर मर्द होने के अहम का शिकार भी है। उसे कोई भी गाली दे सकता है, पीट सकता है और भरी सड़क पर उसकी इज़्ज़त उतार सकता है..क्योंकि वो कमज़ोर है।
वो जब किसी भीड़ में होता है और देखता है कि समाज या तो ताली बजा रहा है, या घर में छिपा-सहमा बैठा है…पुलिसवाले मार नहीं रहे, चुप हैं या साथ हैं…और कुछ लोग – जो भले ही दूसरे समुदाय के हैं, वो उस भीड़ के सामने डरे खड़े हैं, कमज़ोर खड़े हैं, अशक्त दिख रहे हैं, सिर झुकाए हैं..तो वो अचानक एक ताक़त महसूस करता है। क्योंकि यहां उस क्षण में वो भीड़ ताकतवर है..
ये वो ताक़त है, जो कोई भी उत्पीड़क, शोषक महसूस करता है। लोगों को परेशान कर के, उनके दुख और पीड़ा से अपनी शक्ति को महसूस करने की भावना में..और उसको इसमें मज़ा आता है। ऐसे में चिंटू, जो शोषित है – कुछ समय के लिए शोषक बन कर, इसे ताक़त की तरह महसूस कर रहा है।
पर यहां कुछ बुनियादी फ़र्क है।
असल शोषक की ताक़त किसी एक दिन या कुछ घंटे की नहीं है, जबकि चिंटू की ताक़त सिर्फ उतनी देर है – जितनी देर वो किसी ऐसी भीड़ का हिस्सा है।
असल शोषक गरीब नहीं है, बेरोज़गार नहीं है और वो अपनी ताक़त से सैकड़ों चिंटुओं को अपनी सेवा में लगा सकता है। चिंटू…..आप जानते ही हैं..
असल शोषक के पास मौके के हिसाब पाला बदलने के भी मौके हैं क्योंकि उसके पास आर्थिक-सामाजिक ताक़त है तो कोई भी पक्ष उसे अपने साथ ले लेगा। चिंटू केवल इस्तेमाल हो सकता है या फिर वो एक वोट है।
असल शोषक कई बार इसलिए भी परपीड़ा करता है क्योंकि इससे चिंटू जैसों या आम जनता के ऊपर उसकी शक्ति साबित होती है। उसका ख़ौफ़ बना रहता है। उसकी शक्ति से लोग घबराते रहते हैं। चिंटू अपनी शक्ति के लिए असल शोषक ही नहीं, उसके नीचे की एक लंबी चेन पर निर्भर है। इसके बाद भी शक्ति हमेशा के लिए नहीं, कुछ घंटे-एक दिन या कुछ दिन भर की है…
ये चिंटू किसी गैरेज में काम करने वाला हो सकता है, किसी दुकान पर काम करने वाला हो सकता है, चाय की दुकान चला रहा हो सकता है, सेल्समैन हो सकता है, किसी कारखाने में कामगार हो सकता है या फिर पूरी तरह बेरोज़़गार भी सकता है।
ये चिंटू किसी प्राण प्रतिष्ठा की शोभायात्रा में जा कर ये शक्ति महसूस कर सकता है। किसी रामनवमी के जुलूस में मस्जिद के सामने घटिया गाने बजाकर नाचते हुए ये शक्ति महसूस कर सकता है। किसी कांवड़ यात्रा में अपने साथियों और अन्य कांवड़ियों के साथ रास्तें में मिले स्वागत, फूल मालाओं, भोजन, पानी, बिस्तर और गुस्साकर मासूम लोगों से मारपीट करते हुए, उनकी गाड़ियां तोड़ते हुए ये शक्ति महसूस कर सकता है..
लेकिन ये ताक़त का, गर्व का, कुछ हो जाने का अहसास सिर्फ कुछ घंटे, कुछ दिन या महीने भर तक हो सकता है…
अंत में चिंटू को लौट कर उस्ताद के गैरेज में आना है..कारखाने में जाना है..दुकान पर काम करना है..घर-घर जाकर सामान बेचना है..और हर जगह गालियां खानी हैं, मार भी खानी हैं, अपमानित होना है…
तो क्या हिंदू होने का सम्मान काफी नहीं? स्थायी नहीं?
ये आप में से सारे चिंटुओं के लिए है जो इस नकली ताक़त, गर्व और सम्मान के लालच में भीड़ का हिस्सा हो गए हैं…आपकी ताक़त, गर्व और सम्मान सब अस्थायी है, नकली है..और अंत में आपको उस्ताद से गंदी गालियां सुननी ही होंगी क्योंकि आपको बिजली, गैस और प्रेम सब चाहिए…
(इस पूरी बात को जस का तस किसी भी और मुल्क में, किसी भी और बहुसंख्यक धर्म की भीड़ और उसमें शामिल चिंटुओं पर जस का तस लागू किया जा सकता है।)