एक बेहद संवेदनशील/यारों का यार यायावरी का शौकीन दिलो अज़ीज़ इन्सान था देबकी नंदन पंत उर्फ डी.एन.। अब सिर्फ याद रह गई है। 6 सितंबर को चल दिए चुपके से। बिना कहे –ये दोस्ती/ये प्यार/सब धोखा है।
गोविंद पंत ‘राजू’
दन्या की बाजार से गुजरते हुए
स्टेट बैंक की बिल्डिंग को देखकर या
उसके पिछवाड़े से नीचे गांव में
एक सरसब्ज घर को देखकर अब नहीं होगा कोई स्पंदन
पिथौरागढ़ शहर के उस हिस्से में जहां गुजारी थीं कई रातें
भड्डू खड़बड़ाते देबका के साथ
अब याद नहीं आएंगे
कोई किस्से पुराने
न सुनाई देगी
उसकी बेसाख्ता हंसी
विकासनगर के डिग्री कॉलेज में प्रधानाचार्य और बड़े बाबू
और चौकीदार की भिन्न भिन्न भूमिकाएं
सहजता से निभाने वाला
नंदा राजजात और छिपलाकोट
की दुर्गम चढ़ाईयों में
एक साथ हांफने और मुस्कुराने वाला
कभी अपनी तनख्वाह के कम ज्यादा होने पर चर्चा न करने वाला
छात्रों की पढ़ाई में रुचि कम होते जाने पर चिंतित रहने वाला
अब कभी दिखाई नहीं देगा
वह गहरा इंसान
कैसा अवसाद
कैसा अकेलापन
कैसी टूटन
एक पल के लिए भी उसे नहीं लगा होगा कि बहुत कुछ
डूब जाने वाला है
उसकी एक डुबकी के साथ
आज के समाजों में इतना प्यारा कोई इंसान
क्यों इतना अकेला हो जाता है ?