शंकर सिंह भाटिया
कहते हैं आदमी चाहे कहीं भी जाए, लेकिन अंत में लौटकर अपने घर ही आता है। उत्तराखंड के लोग देश विदेश से अब अपने घरों को लौट रहे हैं। उन घरों में जो पलायन की वजह से खंडहर हो गए हैं, लोगों की आमद बढ़ी है। केवल गढ़वाल में ही बीस हजार से अधिक लोग आ चुके हैं, कुमाऊं में भी हजारों की संख्या में लोग लौटे हैं। लोगों के लौटने का क्रम निरंतर जारी है। लेकिन अपने गांवों की तरफ लौट रहे लोगों का गांवों स्वागत नहीं हो रहा है, बल्कि कोरोना की वजह से लोग उन्हें संदेह की नजर से देख रहे हैं।
उत्तराखंड की सरकार और कई संगठन तथा कुछ लोग निजी स्तर पर पहाड़ों के खाली हो रहे गांवों की ओर रिवर्स पलायन करने के लिए लगातार प्रयासरत थे। जिन प्रयासों को बहुत सीमित सफलता मिल पाई थी। लेकिन पूरे विश्व में कोरोना महामारी के डर से हजारों की संख्या में लोग पहाड़ों की तरफ आने लगे हैं। हजारों की संख्या में लोगों का पहाड़ों की तरफ पलायन कोई खुशी-खुशी किया गया पलायन नहीं है। यह जान बचाने के लिए पहाड़ों की शरण में आने वाला रिवर्स पलायन है।
पहाड़ में रह रहे लोग इसे संदेह की निगाह से देख रहे हैं। पहाड़ों में अधिकांश ग्राम पंचायतों में अब युवा प्रधान चुनकर आए हैं। जो कोरोना को लेकर पहले से ही सतर्क दिखाई दे रहे थे। अब भी सतर्क हैं। इसलिए गांव की तरफ आ रहे प्रवासियों की तरफ वे सतर्क निगाहों से देख रहे हैं तो इसमें कुछ गलत भी नहीं है। वे लोग पहले ही वे गांव में आने वाले प्रवासियों को लेकर सतर्क थे। बिना स्वास्थ्य जांच के किसी भी प्रवासी को गांव में प्रवेश देने का विरोध करते रहे हैं। कोरोना जैसे भयानक महामारी को लेकर उनका यह रूख गलत भी नहीं है। पहाड़ में रह रहे लोगों के स्वास्थ्य के प्रति उनकी चिंता वाजिब ही है।
पहाड़ हमेशा शरणदाता रहे हैं। ऋषियों-मुनियों ने हिमालय की कंदराओं में शरण लेकर वेद पुराणों और बड़े-बड़े ग्रंथों की रचनाएं की हैं। बार-बार धर्म की रक्षा के लिए लोग पहाड़ों की तरफ पलायन करते रहे हैं। मुगल काल और आक्रांताओं के आक्रमण कर वजह से बड़ी संख्या में पहाड़ों की तरफ हुआ सनातन धर्मावलंबियों का पलायन अपने धर्म तथा संस्कृति की रक्षा के लिए ही हुआ था। उसके बाद आधुनिक भारत में पहाड़ पलायन के वाहक बन गए। कहा जाता था कि पहाड़ों से पलायन कर गए लोग जल्दी ही लौटकर पहाड़ों की तरफ फिर से आएंगे, लेकिन इतनी जल्दी और अचानक इतनी बड़ी संख्या में पहाड़ों की तरफ हो रहा रिवर्स पलायन इन भविष्यवाणियों को सच साबित कर रहा है।
सवाल यह उठता है कि यह रिवर्स पलायन कितना टिकाऊ होने वाला है। यदि बीमारी की डर के बजाय सामान्य कारणों से यह रिवर्स पलायन हुआ होता तो इसका सभी तरफ से स्वागत हो रहा होता। पहाड़ में रह रहे लोगों का संदेह ऐसे ही नहीं है। सरकार को चाहिए कि पलायन कर पहाड़ आने वाले एक-एक व्यक्ति के स्वास्थ्य की पूर्ण जांच करके ही उन्हें आने दिया जाए। हजारों की संख्या में पहाड़ पहुंचे लोगों में से मात्र बीस-पच्चीस लोगों को ही एकांतवास (क्वारंटीन) में रखने का निर्णय किया गया है, जो आशंका जताने के लिए काफी है। क्योंकि यदि एक भी कोरोना संक्रमित निगाह से छूट गया तो वह पहाड़ की शांत वादियों को कोरोना के संक्रमण से भर देगा।
‘उत्तराखंड समाचार’ से साभार