डॉ. वीर सिंह
कोरोना काल में अनेक ऐसे चित्र उभर कर सामने आए हैं जो दर्शाते हैं कि यह आपदा केवल आदमी के हिस्से की है, प्रकृति के लिए तो यह एक वरदान है. विगत दो महीनो से धरती पर अधिक हरियाली है, आसमान अधिक नीला है, सब जगह चिड़ियाएं चहक रही हैं, मोर छतों पर नाच रहे हैं, नदियां प्रदूषण मुक्त हो गई हैं, वन्यजीव उन्मुक्त सड़कों पर घूम रहे हैं. ऐसे कितने ही मनोहर और अविश्वसनीय-से दृश्य हमारी आँखों के सामने आएं हैं. करोड़ों-अरबों रुपए बहाकर भी जो गंगा मैली की मैली थी, वह एक भी पैसा व्यय किए बिना पुनः पतित-पावनी बनने की ओर अग्रसर है. इस बीच यमुना ने दिल्लीवासियों को दशकों बाद स्वच्छ पानी देखने का अवसर दिया. नर्मदा का जल आचमन योग्य हो गया. इस बार का वसंत कुछ अधिक चटख रंग समेटे था.
एक और भी सुखद समाचार आया है जिसकी अपेक्षित चर्चा नहीं हो पाई. भूतपूर्व अमेरिकी उपराष्ट्रपति और नोबेल विजेता एल गोर के नेतृत्व में चल रहे क्लाइमेट रियलिटी प्रोजेक्ट के अनुसार इस अवधि में वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में 8% की कमी आयी है. जिस कार्बन उत्सर्जन की दर को घटाने के लिए दुनिया की सारी सरकारें लगी थीं, संयुक्त राष्ट्र संघ के अनेक संस्थान जिसके लिए रात-दिन काम रहे थे, वैज्ञानिक जिसके लिए पसीना बहा रहे थे, वह कोरोना ने एक ही झटके में कर दिखाया. कार्बन उत्सर्जन में आठ प्रतिशत की गिरावट जलवायु परिवर्तन के घावों को भरने की दिशा में बहुत महत्त्वपूर्ण है. इस बार गर्मी ने अभी तक थोड़ी ठण्ड रखी है. मई के महीने में ऊँचे पहाड़ों पर जम कर बर्फ़बारी हुई. अमेरिका और कनाडा से मई माह के अंत तक भारी हिमपात और सर्दी प्रकोप के समाचार आए.
विगत दो-तीन महीनों में पर्यावरण पर जो सकारात्मक प्रभाव देखने को मिले, उनसे यह तो स्पष्ट हो गया है की पर्यावरण के लिए आदमी के कार्यकलाप कितने घातक हैं! अभूतपूर्व विश्वव्यापी महामारी हमें यह सबक दे रही है कि यदि हम अपने कार्यकलापों पर लगाम लगाएं तो पर्यावरण हमारे द्वारा दिए गए घावों को स्वयं भर लेगा.
वर्ष 2020 का विश्व पर्यावरण दिवस कोरोना की काली छाया में मनाया जा रहा है. यह कहना अधिक सार्थक होगा कि इस बार का पर्यावरण दिवस कोरोना के प्रकाश में मनाया जा रहा है. मानव जाति ने सारे बौद्धिक अश्त्र-शस्त्रों से लैस हो कोरोना के विरुद्ध एक विश्व युद्ध छेड़ रखा है. देर-सवेर इस अभिनव और अदृश्य वायरस पर विजय पा ही ली जाएगी. अब तक कदाचित यह बहस नहीं छिड़ी है कि वायरस पर्यावरण प्रदुषण की ही देन है. पर्यावरण प्रदूषण के कारण जलवायु परिवर्तन इस नए जीव-अजीव (वायरस जीव व अजीव दोनों ही होता है) को दुनिया में लाने का माध्यम हो सकता है. बहस यह छिड़ी है कि आदमी तक कोरोना कैसे पहुंचा? चमगादड़ से या पैंगोलिन से.
चमगादड़ या पैंगोलिन में वायरस कैसे पहुंचा, यह कोई नहीं पूछ रहा है. इसके पीछे जलवायु परिवर्तन हो सकता है. क्योंकि जलवायु परिवर्तन भी मुख्यतः आदमी की ही देन है, इसलिए कोरोना को चमगादड़ या पैंगोलिन तक पहुंचाने में भी आदमी की भूमिका है. लेकिन बहस बलि के बकरों पर है: चमगादड़ और पैंगोलिन पर.
इस बार के पर्यावरण दिवस का विषय है जैव विविधता. जब मैंने इस पर चिंतन किया तो मेरे एक मित्र ने चुटकी ली कि जैव विविधता में एक नया जीव, कोरोना, भी तो जुड़ गया है. कोरोना काल में जैव विविधता की अभिवृद्धि भी शुभ संकेत है. जब से धरती पर जीवन का उद्भव हुआ है, असंख्य प्रजातियों का प्रादुर्भाव जीवन की जड़ें मजबूत करता चला गया. कालांतर में अनेक प्रजातियां विलुप्त भी हुईं, लेकिन नई प्रजातियों का आगमन जीवन को समृद्ध करता चला गया. जीवन के विकास के इतिहास में पांच बार सामूहिक विलुप्तीकरण हो चुका है. फिर भी धरती पर जैव विविधता का झंडा बुलंद रहा.
ऐसा इसलिए कि धरती पर जीवन की प्रक्रियाएँ नैसर्गिक थीं. उनमे किसी एक प्रजाति का अवांछनीय हस्तक्षेप नहीं था. परन्तु मानव प्रजाति के अविश्वश्नीय विस्तार एवं पूंजी-केंद्रित विकास की पिपासा ने जैव विविधता के साम्राज्य की चूलें ही हिला डालीं. संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण कार्यक्रम के एक अनुमान के अनुसार वर्तमान में 10 लाख प्रजातियों के विलुप्तीकरण का खतरा है. मानव-जनित जैव विविधता क्षरण की बढ़ती दर को देखते हुए अब यह अनुमान लगाया जा रहा है कि धरती पर प्रजातियों के छठे सामूहिक विलुप्तीकरण की प्रिक्रिया आरम्भ होने वाली है.
जैव विविधता ज़िन्दा ग्रह पर जीवन के लिए वरदान है. मानव स्वयं इस विविधता का एक बिंदु है. परन्तु मानव प्रजाति के विकास की विलक्षणता देखो कि हम 99.99% प्रजातियों में आकार में सबसे बड़े हैं और प्रकृति के 99.99% संसाधनों का उपभोग करते हैं. नैसर्गिक विकास ने मानव का इतना सशक्तीकरण किया है कि यह संपूर्ण पृथ्वी पर फ़ैल गया है और वहां तक अपनी पहुँच बना ली है जहाँ पर्यावरण जीवन के प्रतिकूल है. पृथ्वी पर सभी प्रजातियों पर मानव प्रजाति की पकड़ है. यहाँ तक कि समुद्र की गहराइओं तक में उतरकर उसने सभी जीवों पर अपना वर्चस्व कायम कर लिया है और समुद्र तल पर स्थित जैव समुदायों तक के रहस्य जान लिए हैं! एक प्रजाति का स्वामित्व संपूर्ण जीवन पर! क्या इससे बड़ी शक्ति किसी प्रजाति को मिल सकती थी?
अगर कोई वन बचा है, तो वह आदमी की अनुकम्पा से. अगर जंगल में पशु पक्षी हैं, तो आदमी की अनुकम्पा से. देखा जाए तो एक बीज भी आदमी की अनुकम्पा के बिना अंकुरित नहीं हो सकता. एक प्रजाति को प्रदत्त ये शक्तियां उसे इतने अहंकार में डुबो रही हैं कि वह यह विवेक भी खो बैठा कि इसी जैव विविधता में उसके वर्चस्व, उसकी कीर्ति, उसके भविष्य एवं उसकी समस्त खुशियों के बीज हैं. कोरोना काल में हम यह भी सीख लें कि मानव समाज को सबसे बड़ा खतरा वायरस और कोविड-19 से नहीं, जैव विविधता के विनाश से है.
विश्व पर्यावरण दिवस हमें इस आसन्न खतरे से सावधान कर रहा है.