केन्द्रीय और प्रान्तीय विधान सभाओं में चुनाव शान्तिपूर्वक सम्पन्न हो जाने के बाद भी नेपाल अनेक तरह की आशंकाओं से घिरा दिखलाई देता है। एमाले और माओवादियों के तत्काल विलय की संभावना न दिखाई देने से नेपाल के लोग सशंकित हैं। इसीलिये मतदान सम्पन्न होने और शुरूआती चुनाव परिणाम आते वक्त जो उत्साह दिखाई दे रहा था, वह अब धीमा पड़ता जा रहा है।
फिलहाल 275 सदस्यीय संसद विभाजित है। अभी एमाले सबसे बड़ी पार्टी है और उसके बाद नेपाली कांग्रेस और माओवादी हैं। चुनाव के बाद अब राष्ट्रीय पार्टियों की हैसियत प्राप्त कर चुकीे मधेशियों की फेडरल सोशलिस्ट फोरम तथा राष्ट्रीय जनता पार्टी 2017 के संविधान को ही स्वीकार नहीं करतीं। राजनतिक अस्थिरता वाली इस स्थिति में इस वक्त सबसे बुरी हालत भारत की है।
नेपाल मामलों के भारतीय विशेषज्ञ बतलाते हैं कि नरेन्द्र मोदी का प्रधानमंत्री बन कर नेपाल जाना और वहाँ की संसद में अपनी राय थोपने का प्रयास करना नेपाल में किसी को भी पसन्द नहीं आया। 2015 में चले मधेशी आन्दोलन के दौरान भारत ने न सिर्फ मधेशियों को हर किस्म की मदद दी, बल्कि यहाँ तक राय दे डाली कि मधेशी अपना अलग संविधान बना लें। इसका अर्थ यही निकलता था कि भारत नेपाल को विभाजित हुए देखना चाहता है।
यह रवैया बृहत्तर नेपाल को कैसे पसन्द आता, वह मधेशियों के गले से ही नहीं उतरा होगा। एक बहुत छोटा देश होने के नाते नेपाल हमेशा ही भारत से शंकित रहता है। इस घटना के बाद भारत को लेकर नेपाल की नाराजी और अधिक बढ़ गई।
कूटनीति के इस खेल में चीन ने बाजी मार ली और इस वक्त वह नेपाल में अपनी जड़ें जमाने के लिये प्रयासरत है। भारत को अपनी गलती ठीक करने के लिये अब बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। लगता है कि उत्तराखंड की जनता की अनिच्छा और प्रतिरोध के बावजूद पंचेश्वर बाँध बनाने के लिये केन्द्र सरकार द्वारा इतना जोर डाला जाना नेपाल को खुश करने की कोशिश का ही एक हिस्सा है।
