जयसिंह रावत
डॉ. मनमोहन सिंह, जो भारत के 14वें प्रधानमंत्री रहे (2004-2014), भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में अपनी सादगी, विद्वता और नीतिगत दृष्टिकोण के कारण सबसे अलग माने जाते हैं। उन्होंने अपनी विशेषज्ञता, समर्पण और नीति-निर्माण के कौशल से न केवल भारत की अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी, बल्कि प्रधानमंत्री के रूप में अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई। वह उन नेताओं में से थे, जिन्होंने निजी प्रचार से परे रहकर भारत की सेवा की और देश को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। इतिहास में उनका नाम एक ऐसे प्रधानमंत्री के रूप में दर्ज होगा, जिसने न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती दी, बल्कि राजनीति में नैतिकता और सादगी का भी एक आदर्श प्रस्तुत किया।
अर्थशास्त्र के क्षेत्र में अप्रतिम विद्वता
डॉ. मनमोहन सिंह भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक मानचित्र पर स्थापित करने वाले प्रमुख व्यक्तियों में से एक हैं। उनकी विद्वता का आधार उनकी अद्वितीय शैक्षणिक पृष्ठभूमि है। उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातक किया, जहाँ उन्हें प्रतिष्ठित राइट्स पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके बाद उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से डी.फिल की उपाधि प्राप्त की। उनकी थीसिस, “India’s Export Trends and Prospects for Self-Sustained Growth,” ने न केवल भारत की आर्थिक नीतियों पर बल्कि विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर भी गहरा प्रभाव डाला।
उनका शिक्षण और शोध कार्य उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक प्रख्यात अर्थशास्त्री के रूप में पहचान दिलाने में सहायक रहा। उन्होंने दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, पंजाब विश्वविद्यालय और जावाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में पढ़ाया। इसके अलावा, वह संयुक्त राष्ट्र के व्यापार और विकास सम्मेलन (UNCTAD) और दक्षिण आयोग जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी सक्रिय रहे। उनकी विशेषज्ञता को देखते हुए उन्हें भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर और योजना आयोग के उपाध्यक्ष जैसे पदों पर नियुक्त किया गया। 1991 में, जब भारत गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा था, तब प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव ने उन्हें वित्त मंत्री नियुक्त किया। उनके नेतृत्व में देश ने उदारीकरण, निजीकरण, और वैश्वीकरण (एलपीजी) की नीति अपनाई, जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था को संकट से बाहर निकाला और उसे तेजी से विकास के पथ पर अग्रसर किया। विदेशी मुद्रा भंडार जो लगभग खत्म हो गया था, उनके सुधारों के बाद स्थिर हो गया। उन्होंने आयात-निर्यात नीतियों में बदलाव, टैक्स सुधार, और औद्योगिक लाइसेंस राज को समाप्त करके व्यापार को प्रोत्साहित किया।
सादगी और ईमानदारी का प्रतीक
मनमोहन सिंह अपनी सादगी और ईमानदारी के लिए पूरे राजनीतिक जीवन में आदर्श माने जाते रहे हैं। उनका व्यक्तिगत जीवन बेहद सादा था, और उन्होंने कभी भी राजनीतिक लाभ या व्यक्तिगत संपन्नता के लिए अपने पद का उपयोग नहीं किया। वह न दिखावे में विश्वास रखते थे और न ही भव्यता में। उनकी सादगी का सबसे बड़ा उदाहरण उनका निजी जीवन है। प्रधानमंत्री बनने के बाद भी वे सामान्य जीवनशैली के प्रति प्रतिबद्ध रहे। वे साधारण भोजन करते थे और हमेशा अपनी पत्नी के साथ एक सामान्य परिवार की तरह जीवन जीते रहे। उन्होंने कभी भी अपने पद का उपयोग करके अपने लिए विशेष सुख-सुविधाएँ नहीं जुटाईं।
ईमानदारी के मामले में मनमोहन सिंह ने राजनीति में एक उच्च मानदंड स्थापित किया। उनके पूरे करियर में व्यक्तिगत भ्रष्टाचार का एक भी मामला सामने नहीं आया। 2004 से 2014 तक, जब वे प्रधानमंत्री थे, उनके नेतृत्व में कई बार विवाद और घोटाले सामने आए, लेकिन उनकी व्यक्तिगत ईमानदारी पर कभी भी किसी ने सवाल नहीं उठाया। उनकी ईमानदारी का यह स्तर उन्हें भारतीय राजनीति में एक अलग स्थान प्रदान करता है। उनकी ईमानदारी और सादगी ने न केवल जनता का विश्वास जीता, बल्कि उनके सहयोगियों और विपक्षी दलों ने भी इसे स्वीकार किया। यह उनके चरित्र का प्रमाण है कि वे हमेशा अपने आदर्शों के प्रति प्रतिबद्ध रहे, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी चुनौतीपूर्ण क्यों न रही हों।
पारंपरिक राजनीति से अलग शैली
मनमोहन सिंह की कार्यशैली अन्य नेताओं से बिल्कुल अलग थी। वे न तो लोकप्रिय नारों के सहारे राजनीति करते थे और न ही व्यक्तिगत आक्रामकता का सहारा लेते थे। उनकी राजनीति का आधार हमेशा नीतिगत निर्णय और दीर्घकालिक लाभ रहा। उन्होंने कभी भी स्वयं को व्यक्तिगत प्रचार के लिए प्रस्तुत नहीं किया। वे शांत और गंभीर स्वभाव के थे, लेकिन उनकी नीतियों और निर्णयों ने हमेशा प्रभाव छोड़ा। उदाहरण के लिए, 2008 में भारत-अमेरिका परमाणु समझौते को पारित करवाने में उनका दृढ़ संकल्प दिखा, जबकि इसके लिए उन्हें काफी राजनीतिक विरोध का सामना करना पड़ा।
वैश्विक मंच पर भारत का प्रतिनिधित्व
प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह ने वैश्विक मंच पर भारत की प्रतिष्ठा को बढ़ाया। उनकी शांत और सटीक कूटनीति ने भारत को एक विश्वसनीय साझेदार के रूप में प्रस्तुत किया। जी-20, ब्रिक्स और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उन्होंने भारत के हितों को मजबूती से रखा। उनकी विशेषज्ञता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उन्हें “वैश्विक नेताओं में से एक महान विचारक” कहा था।
राजनीति से परे एक विद्वान का व्यक्तित्व
मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री बनने से पहले विभिन्न विश्वविद्यालयों में अध्यापन कार्य किया। वे छात्रों के बीच एक आदर्श शिक्षक के रूप में प्रसिद्ध थे। उनका यह अनुभव प्रधानमंत्री के रूप में नीति-निर्माण में सहायक सिद्ध हुआ। उन्होंने अपनी सरकार के मंत्रियों और अधिकारियों को हमेशा एक मार्गदर्शक के रूप में प्रेरित किया। मनमोहन सिंह का व्यक्तित्व राजनीति तक सीमित नहीं था। वे एक विद्वान, शिक्षक और प्रशासक भी थे। प्रधानमंत्री बनने से पहले, उन्होंने योजना आयोग के उपाध्यक्ष, भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर और वित्त सचिव जैसे महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। इन सभी भूमिकाओं में उनका प्रदर्शन उत्कृष्ट रहा।
राजनीतिक विवादों से दूर रहने की प्रवृत्ति
मनमोहन सिंह अपने पूरे कार्यकाल में व्यक्तिगत विवादों से दूर रहे। हालांकि उनके कार्यकाल के दौरान कई घोटाले (जैसे 2जी स्पेक्ट्रम और कोयला आवंटन) सामने आए, लेकिन उनकी व्यक्तिगत ईमानदारी पर कभी कोई सवाल नहीं उठाया गया। विपक्ष ने उनकी चुप्पी की आलोचना की, लेकिन उनकी प्रतिबद्धता और नैतिकता पर कभी कोई संदेह नहीं हुआ।
नीतिगत स्थिरता और विकास का मंत्र
उनके कार्यकाल में भारतीय अर्थव्यवस्था ने अभूतपूर्व प्रगति की। 2004 से 2014 तक, भारत ने जीडीपी ग्रोथ में तेजी देखी, और करोड़ों लोग गरीबी रेखा से ऊपर उठे। उन्होंने ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा), शिक्षा के अधिकार और खाद्य सुरक्षा अधिनियम जैसे कई सामाजिक योजनाओं की शुरुआत की, जिससे भारत के आम नागरिकों का जीवन स्तर बेहतर हुआ।
राजनीतिक संतुलन का अद्वितीय कौशल
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) के प्रधानमंत्री के रूप में, उन्हें विभिन्न दलों और विचारधाराओं के साथ सामंजस्य स्थापित करना पड़ा। उनके नेतृत्व में यूपीए ने लगातार दो कार्यकाल पूरे किए, जो उनकी समन्वय क्षमता और धैर्य का प्रमाण है।मनमोहन सिंह ने हमेशा मानवता और शांति को प्राथमिकता दी। उनके कार्यकाल में भारत-पाकिस्तान के बीच शांति वार्ता शुरू हुई, और सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए कई कदम उठाए गए। हालांकि ये प्रयास पूरी तरह सफल नहीं हुए, लेकिन उनकी मंशा पर कोई सवाल नहीं उठा सकता।