वीरेन्द्र कु. पैन्यूली
जनवरी, 2023 में जब जोशीमठ में घरों में दरार दिखना, उनके चौड़ा होना, उनसे पानी फूटने पर सरकार ने जो चिंता दिखाई थी, वह मार्च, 2023 से गायब ही बनी हुई है। आज तो रुख ऐसा है जैसे कुछ हुआ ही न हो। जोशीमठवासी कहते हैं कि जनवरी-फरवरी, 2023 में सरकार के जिन आश्वासनों पर आंदोलन रोका गया था उन पर आज तक सरकार की ओर से कोई खास प्रगति नहीं हुई है। समस्याएं जस की तस हैं। इनका जमीनी निदान न होने से स्थानीय निवासी आहत हैं। अब जब उन्होंने मार्च, 2024 में राज्य सरकार को भी बता दिया है कि वे जोशीमठ में ही रहेंगे। तब तो संवेदना जगती। लगातार भूस्खलन उन्हें डरा भी रहे हैं।
जमीनी काम कुछ नहीं हो रहा है। इसकी पुष्टि 15 जुलाई, 2024 को एनजीटी ने भी कर दी है। स्पष्ट रूप से उत्तराखंड के मुख्य सचिव को बता दिया गया है कि जोशीमठ पर राज्य सरकार के जून माह के जवाबों से संतुष्ट नहीं है। साफ है कि जोशीमठ पर कोई जमीनी काम नहीं हुआ है। केवल समीक्षाएं और मीटिंग हो रही हैं। प्रदूषण पर भी कोई काम नहीं हुआ। भार क्षमता पर भी कोई काम नहीं हुआ है। स्मरण रहे कि इसरो की जनवरी, 2023 दूसरे सप्ताह में सार्वजनिक हुईं उपग्रहीय तस्वीरों और आंकड़ों के विलेषणों के अनुसार जोशीमठ तब के पिछले सात महीनों में 9 सेमी. और तात्कालिक बारह दिनों में 5 सेमी. धंसा था। इस पर प्रधानमंत्री ने 8 जनवरी, 2023 को स्वयं मुख्यमंत्री से बात की थी। तभी प्रधानमंत्री के सचिवालय में मीटिंग हुई थी। 8 जनवरी, 2023 को राज्य सरकार ने जोशीमठ को लैंडस्लाइड्स एंड सक्सीडेंस जोन घोषित कर दिया था। घोषणा अस्तित्व में है।
मुख्यमंत्री धामी ने तभी कहा था कि जोशीमठ समेत कई पहाड़ी शहरों की भार वहन क्षमता का आकलन किया जाएगा जो अब तक नहीं हुआ है। इसी नौ जुलाई को प्रातः बदरीनाथ मार्ग पर पाताल गंगा के पास प्रलंयकारी भूस्खलन टूटते पर्वत खंड के भारी गुबार के साथ हुआ जिसका वीडियो देश-विदेश में काफी वायरल रहा। गनीमत थी कि उसके नीचे वहां वाहन नहीं थे कोई चौरासी घंटों के बाद किसी तरह रास्ता खुला हजारों लोगों को जोशीमठ में रुकना पड़ा। जोशीमठ प्रवेश के एक किमी. पहले भी भूस्खलन था किन्तु फिर भी राज्य सरकार की चिंता में तब बदरीनाथ विधानसभा सीट का दस जुलाई को होने वाला उपचुनाव ही था। विडम्वना है कि यह भूस्खलन और उसके बाद रह-रह कर होते भूस्खलन उत्तराखंड सरकार के आपदा सचिव के जोशीमठ के नागरिकों को जोशीमठ में ही मार्च-अप्रैल, 2024 में यह जानकारी साझा करने के बाद हो रहे थे कि अगले तीन सालों में जोशीमठ का स्थिरीकरण कर दिया जाएगा। जोशीमठ संघर्ष समिति के अतुल सती का कहना था कि यदि ऐसा होना है तो जोशीमठवासियों को क्यों हटाया जा रहा है। यह स्थिरीकरण हो सकता है, ऐसा कोई वैज्ञानिक शायद ही माने। 1976 की जोशीमठ पर मिश्रा रिपोर्ट में भी कहा गया था कि जोशीमठ पुराने भूस्खलन के मिट्टी और पत्थर के मलवे पर स्थित है। कोई ठोस चट्टान का आधार नहीं है नीचे जोशीमठ में आधार पर अलकनंदा- धौलीगंगा कटान कर रही हैं। यहां निरंतर धंसाव हो रहा है और नये निर्माण से परहेज किया जाना चाहिए। वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलजी ने भी सितम्बर, 2023 में ही जोशीमठ पर अपनी वैज्ञानिक रिपोर्ट में चेतावनी दे दी थी कि उसके जियोफिजिकल अनुसंधानों से पता चला है कि जोशीमठ के मनोहरबाग में पांच से तीस मीटर गहराई में नया उच्च भूस्खलन प्रभावित जोन मिला है। यहां से पानी की निकासी ठीक नहीं होने से दिक्कतें बढ़ सकती हैं और भारी भूस्खलन हो सकता है। स्मरण रहे कि जोशीमठ के मनोहरबाग वार्ड और मारवाड़ी वार्ड में ही भारी मात्रा में 2 जनवरी, 2023 को भूधंसाव हुआ था। सैकड़ों घरों और होटलों में दरारें आ गई थीं। जगह-जगह सड़कें भी धंसी थीं। मनोहरवाग वार्ड में सुरक्षा के तौर पर दो होटलों माडंट व्यू और होटल मलारी का ध्वस्तीकरण किया गया अर्थात जोशीमठ में नौ जुलाई के बाहरी भूस्खलनों के अलावा भीतर के भूस्खलनों, भूफिसलावों के जो खतरे हैं, वाडिया संस्थान इन्हीं से आगाह कर रहा है।
जोशीमठ जिस हिमोड में बसा है, उसके मिट्टी, मलवा, पत्थरों में पानी का भीतर रिसना आसान रहता है। भीतर पहुंचा पानी ग्रीजिंग सा असर दे भूखंड फिसलावों की गति में तेजी ले आता है। ऐसे में सैकड़ों हजारों साल पुराने ठोस लगते विशालकाय हिमोड क्षेत्र भी नीचे खिसकने लगते हैं जिससे भवनों का धंसना, तिरछा होना भी हो सकता है। जीएसआई ने भी जोशीमठ में 81 दरारें चिन्हित की थीं। इनमें से 42 वो थीं जो जनवरी, 2023 के भूधंसाव की थीं। एनजीआरआई और सीजीडब्लूयूवी ने भी जेपी कॉलोनी के जल-रिसाव पर कहा था कि इसके लिए 18 से 48 मीटर मोटाई का भूमिगत जल भंडार कारण हो सकता है। दरारें जोशीमठ, सड़कों, खेतों सभी जगह उभर आती हैं। फ्लो फ्लड हुए तो दरारों के माध्यम से वहां पहुंचा पानी जमीन के भीतर भी ढीले मिट्टी पत्थरों को भीतर ही भीतर बहा कर आगे बढ़ा सकता है। इससे मकानों, भवनों, पिलरों की नींव सामग्रियों के कटान और बहाव से भवन, पुल आदि तिरछे हो सकते हैं, ध्वस्त हो सकते हैं।
जोशीमठ के भूधंसाव के जोखिम छोटे से छोटे भूकंप के कारण भी निरंतरता में रहेंगे। जोशीमठ भूकंप सक्रियता के जोन 5 में पड़ने वाला क्षेत्र है। वाडिया इंस्टिटयूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, देहरादून के वैज्ञानिक इसका भी अध्ययन कर रहे हैं कि क्या जोशीमठ की दरारों के लिए भूकंप जिम्मेदार हैं। उसने शहर के भीतर ही सिस्मिक स्टेशन लगाए हैं। अभी तक दसियों भूकंप दर्ज किए गए हैं। ड्रैनेज प्रणाली का अभाव जोशीमठ भूधंसाव का प्रमुख कारण है। 28 जनवरी, 2023 तात्कालिक आवश्यक पांच नालों की लाइनिंग, ड्रैनेज और सीवरेज के लगभग दो सौ करोड़ रुपये के काम सचिव आपदा प्रबंधन द्वारा यह कहते हुए लंवित किए गए थे कि कौन से घर टूटेंगे, कौन से रहेंगे और किस- किस क्षेत्र से लोगों को हटाया जाएगा, यह वैज्ञानिक रिपोर्टों के बाद ही तय होगा। उन पर वैज्ञानिक रिपोर्ट मिलने के बाद भी आज तक कुछ भी बढ़त नहीं हुई है।