लाल सिंह चौहान
मैंने सरकारी सेवा के दौरान कई विषयवस्तु पर कार्य किया है लेकिन कतिपय कारणों से उन विषयों पर खुलकर कार्य न कर पाना मुझे हमेशा खलता रहा। जैसे ही मैं 30 जून 2016 को सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त हुआ अपने अनुभवों को अमली जामा पहनाने की आतुरता में इधर उधर भटकता रहा और 2019 में मैं श्री जगदीश सिंह नेगी जी, अध्यक्ष, शिप्रा कल्याण समिति नगारीगांव भवाली नैनीताल उत्तराखंड के सम्पर्क में आया क्योंकि वह मेरे उस गांव के मूल निवासी हैं जिसमें मैंने अपना स्थायी ठिकाना बनाया है।
हमारे इस गांव के पास ही भवाली कस्बा है और जिसको जीवन देता है शिप्रा का उद्गम स्थल। इसी स्थल से नीम करौली बाबा जी के कैंची धाम तक श्री जगदीश सिंह नेगी जी 2015 अक्टूबर से अपने स्वैच्छिक सहयोगियों के साथ मिलकर शिप्रा की साफ-सफाई अभियान चलाया करते थे और कभी कभी अकेले ही कन्धे पर थैला लटकाये नदी से प्लास्टिक कूड़ा करकट इकठ्ठा करते हुए स्थानीय निवासियों से अनुरोध करते थे कि नदी हमारी मां है और इसे गन्दा करना सामाजिक अन्याय है। साफ-सफाई हमारा धर्म है तभी तो हमारी भावी पीढ़ी को शुद्ध एवं प्रर्याप्त पेय जलापूर्ति होगी।
बस यहीं से मेरे मन ने कहा कि लालसिंह चौहान यह एक उपयुक्त इन्सान है जिसको सही दिशा देने की जरूरत है। बस फिर क्या था मैंने जगदीश सिंह नेगी जी को विस्तार से समझाया कि आप जो साफ सफाई अभियान चला रहे हैं वह बहुत अच्छा है और इसमें सभी का सहयोग मिलना एक सामाजिक दायित्व है। जिसको हम नगरपालिका के माध्यम से भी संचालित करता सकते हैं । परन्तु क्या सफाई अभियान से यह सम्भव है कि इस नदी में पानी हमेशा लगातार बहता रहे ? नेगी जी ने कहा – नहीं। उन्होंने मुझसे जाना कि क्या यह सम्भव है कि हम नदी में पानी की मात्रा को बढ़ा सकतें हैं, मैंने उत्तर दिया – हां।
मैंने उनको समझाया कि जहां से ये शिप्रा निकलती है यदि उस पूरे क्षेत्र में वर्षा के पानी को बहने से रोककर धरती के भीतर कर दें तो धरती के अन्दर गया वर्षाजल एक चमत्कारी प्रभाव दिखायेगा और एक सम्पूर्ण वर्षाकाल के पश्चात कटे पेड़ों की सोई हुई जड़े जाग जायेगीं और उनमें से कोपलें फूटनी शुरू हो जायेगी।
उसके पश्चात हमें उस क्षेत्र को आग से बचाना होगा और इस तरह से एएनआर विधि से पुनः वन सघन होने लगेगें। यह चक्र चलते-चलते भविष्य में एक दिन ऐसा आयेगा जब शिप्रा सदानीरा हो जायेगी, तब आपकी मेहनत को लोगों के दिमाग में जगह बनाने में देर नहीं लगेगी।
नेगी जी की सहमति पर हमारा यह मिशन 2020 की गर्मियों में शुरू हुआ, जो आज भी जारी है। हमने सबसे पहले शिप्रा का वह वाटर शेड जिससे शिप्रा निकलती है उसमें काम करने का मन बनाया और शिप्रा कल्याण समिति नगारीगांव के वोलंटियरों के सहयोग से सर्वे के साथ-साथ खन्तियों खुदान हेतु समान ऊंचाई के बिन्दुओं पर निशान लगाये। हमने तय किया कि खन्तियों की लम्बाई और चैड़ाई जगह के हिसाब से तय होगी। साधारणतया लम्बाई 3.0 0मीटर, चौड़ाई 1.00़0.502 मीटर एवं गहराई 0.80़0.502 मीटर रखी गई है। यद्यपि जगह की उपयुक्तता पर अलग-अलग धारण क्षमता की खन्तियों का निर्माण भी किया गया है। इस प्रकार अभी तक लगभग 500 खन्तियां निर्मित की जा चुकी हैं।
इस तरह से हमने 2020 से अब तक लगभग 15 लाख लीटर वर्षा जल को एक बार में भरने पर रोकने की क्षमता का विकास किया है। कमोबेश एक वर्षाकाल में लगभग दस बार भरने की बारम्बारता के हिसाब से एक करोड़ पचास लाख लीटर वर्षा जल को हम भूमि के अन्दर भेज रहे हैं अर्थात 1000 लीटर क्षमता की 15000 टंकियों के बराबर वर्षा जल को बहने से बचाने की क्षमता का सृजन हो चुका है।
इसके साथ ही ऊपरी सतह की उपजाऊ मिट्टी यहीं इन्हीं खन्तियों में जमा हुईं हैं अन्यथा यह मिट्टी रामनगर कोसी बैराज में जमा होती। यह समस्त कार्य बिना राजकीय सहायता के, आपसी सहयोग एवं हमारे काम से खुश होकर कुछ दानदाताओं के वित्तीय सहायता के माध्यम से किये गये हैं।
व्यक्तिगत रूप में मेरा कार्य समिति को मौके पर केवल तकनीकी सलाह देना है एवं कभी कभी डेमो देना भी है। बाकी समस्त कार्यों का श्रेय, शिप्रा कल्याण समिति नगारीगांव भवाली नैनीताल उत्तराखंड के अध्यक्ष श्री जगदीश सिंह नेगी जी का है वह ही बाकी समस्त प्रबन्धन करते हैं।
जब हमने 2020 की गर्मियों में यह कार्यक्रम शुरू किया उसके एक वर्षाकाल पश्चात कुछ कटे पेड़ों की जड़ों से छोटी कोंपलें फूटते हुए दिखाई दी, हमारा मन बड़ा ही बाग बाग हो गया।समिति के माध्यम से हमने तय किया कि इन कोंपलों को आग से बचाना है, बस फिर क्या था हमारी टीम ने प्रत्येक गर्मियों में इस क्षेत्र से पिरूल हटाना शुरू कर दिया और हर वर्ष हटाया। परिणाम यह रहा कि वह कोंपलें आग से, चराई से, कटाई से बचते-बचाते झाड़ियों के रूप में घनी घनी हो गयी। इस वर्ष फिर समिति ने तय किया कि सर्दियों में झाड़ियों को पेड़ों में बदलने के लिए सही तरीके से कांट छांट की जाए। बस फिर क्या था अभियान शुरू कर दिया।
हमारी समिति की सोच है कि पर्वतीय क्षेत्रों में वर्षा जल का इन सीटू संरक्षण, संवर्धन, एवं प्रबन्धन कर क्षेत्र में आग न लगने के उपाय करते हुए सहायतित प्राकृतिक पुनरोत्पादन विधि से वनों को सघन किया जाए और पौधारोपण केवल और केवल उन जगहों पर लगायें जाए जहां पर आग से उनकी सुरक्षा की जा सके।
आज परिणाम यह है कि अब हमें लगता है कि हमारा धरती पर आना सफल हो गया क्योंकि जल की मात्रा में वृद्धि भवाली में बने अमृतसरोवर में देखी जा सकती है और जिस क्षेत्र में काम हुआ है उस क्षेत्र में बांज, काफल, बुरांश, अय्यार, घिंघारू, झिटालू, हिसालू, किल्मोड़ा, मेहल, जंगली गुलाब, एवं रिगांल के पौधे बहुतायत में पैदा हो चुके हैं जिन्हें हमारे साथ किसी भी समय कोई भी देख सकता है।