रणधीर संजीवनी
तरह-तरह के कूड़ा-प्लास्टिक से पटे हुए ताल-तलैया हों या नदियों से लेकर समुद्र तक प्लास्टिक को ढोते हुए और इस प्लास्टिक को निगल जाने को अभिशिप्त जल प्राणी सभी विनाश लीलाएं हम देखते आ रहे हैं। गायब होते जंगल, शिकार होते वन्य प्राणी, कंक्रीट के जंगलों में तब्दील होते पुराने हरे-भरे शहर के पीछे तो हम ही कारण बने खड़े दिखते हैं। जीवाश्म ईधन से दिन-ब-दिन विषैली-दमघोंटू होती हुई हवा भी हमारी ‘मशीनी-क्रांति’ की विजय पताका फहराती चल रही है। लगातार घटता भूजल, विलुप्त होते जल स्रोत, सूखते तालाब, सिकुड़ते-सिमटते ग्लेशियर, दोनों ध्रुवों -आर्कटिक और अंटार्टिका- से पिघलती बर्फ और समुद्रों में बढ़ते जल स्तर की वजह से डूबने के कगार पर खड़े तटीय क्षेत्र ये सब पूरी बेबाकी से प्रकृति पर मानवजनित दुष्प्रभावों के प्रत्यक्ष प्रमाण देते आ रहे हैं।
हाल ही मैं जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स नाम के अंतरराष्ट्रीय शोध जर्नल ने 15 जून को प्रकाशित शोध पत्र में एक मानवजनित प्रभाव के चलते हमारे इस नीले ग्रह पृथ्वी की धुरी का 4.36 सेन्टीमीटर प्रति वर्ष की दर से खिसक जाने का विस्मयकारी तथ्य उजागर किया है। यह मानवजनित प्रभाव भूजल के अंधाधुंध दोहन का परिणाम है। मनुष्यों ने अपनी प्यास बुझाने, भूख मिटाने और कही अपने भोग-विलास की लालसा को पूरा करने के लिए पृथ्वी की गोद से इतना भूजल ख्ीच लिया है कि उसका प्रभाव ग्रह के घूर्णन अक्ष पर पड़ गया और वह कुछ झुक गया गोया मानव जाति की पिपासा के सामने पृथ्वी ने अपने अक्ष पर घुटने टेक दिए हों। यह शोध इस सम्भावना को भी व्यक्त करता है कि वर्तमान में हो रहे जलवायवी ग्लोबल वार्मिंग या जलवायवी भूमंडलीय ऊष्मीकरण से जुड़े हुए समुद्र के स्तर में वृद्धि का मुख्य कारण, ध्रुवीय बर्फ की चादरों और ग्लेशियरों के पिघलने के अलावा एक मानवजनित योगदान सिंचाई के लिए उपयोग किया गया भूजल भी है।
थोड़ी बात पानी और भूजल पर कर लेना ठीक रहेगा। सस्टेनेबिल डेवलपमेंट गोल्स (एसडीजी) की रिपोर्ट (2022) के अनुसार, आज दुनिया भर में लगभग दो अरब लोगों को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध नहीं है। आईपीसीसी का भी कहना है कि दुनिया की लगभग आधी आबादी साल के कम से कम एक हिस्से में पानी की गंभीर कमी का सामना कर रही है। हम सभी जानते हैं कि चल रहे जलवायु परिवर्तन और लगातार हो रही जनसंख्या वृद्धि के कारण इस परिदृश्य के बदलने की उम्मीद बहुत कम दिखाई देती है। साथ ही यह भी सबको मालूम है कि पृथ्वी पर केवल 0.5 प्रतिशत पानी ही उपयोग के लायक है, जिसे लगातार चल रहा जलवायु परिवर्तन खतरनाक रूप से प्रभावित कर रहा है।
डब्ल्यूएमओ के अनुसार पिछले बीस वर्षों में, स्थलीय जल भंडार, जिसमें मिट्टी की नमी, सतही जल और बर्फ शामिल है, प्रति वर्ष 1 सेमी की दर से घट रहा है। पृथ्वी के अन्दर के पानी यानि भूजल का लगातार दोहन होने से उसके स्तर में गिरावट हो रही है। यह एक लम्बे समय से देखा गया और वैज्ञानिक शोध से भी ज्ञात तथ्य है। एक आश्चर्यजनक तथ्य है कि दुनिया भर में लोग हर साल पृथ्वी से तेल की तुलना में 200 गुना अधिक भूजल निकालते हैं। अधिकांश (70 प्रतिशत) भूजल का इस्तेमाल फसलों की सिंचाई में किया जाता है। सिंचाई के अलावा यह पानी दुनिया भर के करीब 2 अरब लोगों की प्यास भी बुझाता है, जिनमें संयुक्त राज्य अमेरिका की तो आधी आबादी शामिल है।
अपने देश के भूजल परिदृश्य की कहें तो 2010 तक भारत में लगभग 251 घन किलोमीटर प्रति वर्ष की दर से निकाला जा रहा भूजल वैश्विक दर के एक चौथाई के बराबर था। भारत की गंगा-ब्रह्मपुत्र बेसिन सहित चीन, नेपाल, बांग्लादेश और भूटान जैसे देश भूजल स्रोतों या भूमिगत जलाशयों में पानी की मात्रा में कमी के साथ ही भूजल में प्रदूषण का सामना भी कर रहे हैं।
उपग्रह से प्राप्त आंकड़ों से पता चलता है कि पृथ्वी के 37 सबसे बड़े जलभंडारों में से 21 सिकुड़ रहे हैं। लम्बे समय के लिए भूजल भंडारण की तुलना में लगातार अधिक भूजल दोहन होते रहने से विश्व के कई इलाकों में भूजल स्तर में भारी गिरावट दर्ज की गयी है। दोहन को कम करके और पर्याप्त पुनर्भरण हो जाने से भूमिगत जल स्रोत अपनी मूल प्राकृतिक अवस्था में आ जाते हैं। किन्तु, लगातार पानी खींचते रहने से एक स्थिति ऐसी आ जाती है कि जिसके बाद वह भूमिगत जलाशय दोबारा से मूल प्राकृतिक अवस्था प्राप्त नहीं कर सकता। या पुनर्प्राप्ति के लिए सदियों का समय लग जाता है। इस स्थिति को ‘टिप्पिंग पॉइंट’ या ‘चरम बिंदु’ कहते हैं। सर्वेक्षण बताते हैं कि दुनिया के लगभग 60 प्रतिशत भूमिगत जलाशय अपने चरम बिंदु को पार कर चुके हैं। एक नए अध्ययन में पाया गया है कि 15 से 21 प्रतिशत जलागम क्षेत्र इस प्रकार के चरम बिंदु तक पहुँच गए हैं। अधिकांश नदियाँ और धाराएँ जिनका बड़े पैमाने पर दोहन हुआ है शुष्क क्षेत्रों में हैं। इनमें मेक्सिको और उत्तरी भारत के कुछ हिस्से शामिल हैं। वर्तमान पंपिंग दरों पर किए गए अध्ययनों से यह निष्कर्ष सामने आया है कि दुनिया भर में 42 से 79 प्रतिशत जलक्षेत्र जहाँ भूजल को पंप किया जाता है, 2050 तक टिपिंग पॉइंट तक पहुँच जाएंगे।
भूजल के वैश्विक परिदृश्य में एक विहंगम दृष्टि डाल लेने के बाद इससे जुड़े इस नए शोध अध्ययन को समझते हैं। वैसे तो पानी के वितरण की पृथ्वी के घूर्णन अक्ष में बदलाव ला पाने की भूमिका पर प्रकाश सबसे पहले-पहल साइंस एडवांस नाम की शोध पत्रिका में 2016 में प्रकाशित शोध पत्र ने डाला था। पर जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स जर्नल में प्रकाशित इस नए शोध ने इसका मात्रात्मक परिणाम दिया है। 15 जून के अंक में प्रकाशित शोध में गुरुत्वाकर्षण सर्वेक्षणों पर आधारित यह तथ्य उजागर हुआ है कि भूमिगत जलाशयों से वर्ष 1993 से 2010 के बीच 2,150 गिगाटन (21 खरब 50 अरब टन) भूजल निकाला गया, जो वैश्विक समुद्र स्तर में 6.24 मिलीमीटर की वृद्धि के बराबर है या 6.24 मिलीमीटर की वृद्धि कर सकता है। दुनिया के दो क्षेत्र जिनमें सबसे ज्यादा भूजल निष्कर्षण हुआ वह पश्चिम-उत्तरी अमेरिका और उत्तर-पश्चिमी भारत के क्षेत्र हैं। इतनी भारी मात्रा में जमीन के अन्दर से पानी बाहर पम्प करने और उसे अन्यत्र पहुँचाने वाली मानव गतिविधियों ने पृथ्वी के अन्दर, भार (द्रव्यमान) के वितरण को बदल दिया। इस कारण पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव की पृथ्वी के सतह के सापेक्ष स्थिति में परिवर्तन आया और वह पूर्व की तरफ 80 सेन्टीमीटर झुक गयी है। शोधकर्ताओं ने गणना की है कि भौगोलिक उत्तरी ध्रुव प्रति वर्ष 4.36 सेंटीमीटर की गति से स्थानांतरित हुआ है। अक्ष के खिसकने पर जलवायु सम्बन्धित कारणों से अलग भूजल के पुनर्वितरण का ही सबसे ज्यादा प्रभाव है। आइए, समझते हैं कि इस निष्कर्ष तक कैसे पहुँचा गया है?
कोई भी खगोलीय पिंड के घूर्णन अक्ष का झुकाव स्थिर होता है। लेकिन, जब किसी ग्रह के अन्दर और उसकी सतह पर बड़े द्रव्यमान की जगह बदलती है तो इस झुकाव में छोटे पैमाने के बदलाव हो सकते हैं। यही बात पृथ्वी पर भी लागू होगी। दूर की आकाशगंगाओं के ऐसे चमकीले केंद्र जो रेडियो तरंगे भी छोड़ते हैं ‘क्वासी स्टेलर रेडियो स्रोत (qusai & stellar radio source) यानि क्वेजार’ या ‘ताराकल्प’ कहलाते हैं। ये ताराकल्प स्थिर संदर्भ बिंदुओं की तरह लिए जाते हैं। इन संदर्भ बिन्दुओं के सापेक्ष पृथ्वी के भौगोलिक ध्रुवों की स्थिति में आया अंतर देखा जाता है। पृथ्वी की धुरी में सबसे बड़ा परिवर्तन वायुमंडलीय द्रव्यमान के इधर-उधर होने से होता है जिसका कारण मौसमी फेरबदल से होता है। यह प्रभाव हर साल ही पृथ्वी के भौगोलिक ध्रुवों को कई मीटर तक डगमगाने का कारण बनता है।
इस शोध के मुख्य खोजकर्ता कि-वेओन जा ने अपने सहयोगियों के साथ पृथ्वी के धुरी में आए झुकाव और पृथ्वी के जल भंडार के संचलन का मॉडल तैयार किया। जब यह मॉडल आज तक जलीय-प्रेरित प्रभावों के मुख्य कारण माने जाने वाले ग्लेशियरों और बर्फ की चोटियों के पिघलने से निकले जल के आंकड़ों के साथ तैयार किया गया तो मॉडल के परिणाम में विसंगति देखने को मिली। सतही जलाशयों में परिवर्तन के प्रभावों को जोड़ने से भी मॉडल सुसंगत नहीं हो पाया। ऐसी कोशिशों में मॉडल के परिणामों में 78.5 सेंटीमीटर या 4.3 सेंटीमीटर प्रति वर्ष तक का विचलन देखने को मिला।
जब वर्ष 1993 से 2010 के बीच भूमिगत जलाशयों से निकाले गए 2,150 गिगाटन भूजल के आंकड़े को शामिल करके, शोधकर्ताओं ने गणना करी तो मॉडल पूरी तरह से सटीक बना। उन्होंने निष्कर्ष दिया है कि भूजल का विस्थापन ही अकेले उत्तरी ध्रुव के हर साल 4.36 सेंटीमीटर खिसक जाने का कारण है। अंदाजन कहा जा सकता है कि भौगोलिक उत्तरी ध्रुव रूस के नोव्या जेमल्या द्वीपों की दिशा में खिसका है।
भौगोलिक उत्तरी ध्रुव के ऐसे सरक जाने से मौसम चक्र में कोई परिवर्तन आ जाए ऐसा तो संभव नहीं है। पर, लम्बे भूवैज्ञानिक समय यानि लाखों-करोड़ों साल के पैमाने पर जलवायु में कोई प्रभाव जरूर रहेगा। यह शोध निष्कर्ष एक नई समझ देता है। भौगोलिक ध्रुव के खिसकने और भूजल के द्रव्यमान वितरण के बीच जो सम्बन्ध उजागर हुआ उससे यह पता किया जा सकता है कि भूजल स्तर में हुआ परिवर्तन कितना जलवायु परिवर्तन के कारण हुआ है और कितना मानवजनित प्रभाव के कारण? ध्रुवीय गति या विचलन के आंकड़े 19 वीं शताब्दी के आखिरी दौर से उपलब्ध है जिनका उपयोग पिछले 100 साल के स्थलीय जल भंडार में आए परिवर्तन को समझने में बखूबी किया जा सकता है। आजकल के सबसे ज्वलंत मुद्दे जलवायु परिवर्तन और जलीय उपलब्धता पर उसके प्रभाव को समझने और तदनुरूप जलवायु नीति या रणनीतियाँ बनाई जा सकने में यह शोध बहुत उपयोगी रहेगा।
(मूल शोध पत्र Ki-Weon Seo, Dongryeol Ryu, Jooyoung Eom, Taewan Jeon, Jae-Seung Kim, Kookyoun Youm, Jianli Chen, Clark R.k~ Wilson.k~ 2023.k~ äift fo Earth’s Pole Confirms Groundwater Depletion sa a Significant Contributor to Global Sea Level Rise 1993–2010.k~ Geophysical Research Letters, Volume 50, Isue 12 , First publised: 15 June 2023
https:èèdoi.orgè10.1029è2023GL103509)
फोटो इंटरनेट से साभार
3 Comments
Narendra Singh Dhami
Very well researched and scientific facts are described by you sir. I don’t have that deep knowledge about geology but I can understand a little bit that drinkable water is in danger and shrinking everyday by day.
I take oath not to waste water and not to pollute a single drop of water and will start a step towards saving water and aware people’s not to destroy our sources.
Dr. Lata
Article is full of latest facts and deep research….. Solid and informative…… With impressive language for hindi lovers and readers 👌🏾👌🏾👌🏾
Abhishek Gupta
बहुत सूचनाप्रद् और भूजल के बेतहाशा दोहन के दुष्परिणामों से परिचित कराने वाला लेख