वर्षा सिंह
उत्तराखंड में गर्मियों के मौसम में कई जगह पर्वतीय क्षेत्र धुंध भरी चादर में लिपटे हैं। देहरादून के विकासनगर पर्वतीय क्षेत्र में इस तरह की धुंध गौर की जा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि चारधाम से लेकर सुदूर पहाड़ों तक पर्यटक वाहनों की आवाजाही बढती जा रही है। इन वाहनों से निकलने वाला धुंआ पहाड़ों के वातावरण में फंस गया है और एक सूखी धुंध का निर्माण हुआ है।
जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान के वैज्ञानिक इसे वातावरण में बढ़ता ब्लैक कार्बन बता रहे हैं। इस पर अध्ययन जारी है।
इस मामले में देहरादून मौसम विज्ञान केंद्र में निदेशक बिक्रम सिंह बताते हैं कि ऐसी धुंध पहाड़ों में पहले भी रही है। सर्दियों के समय भी ये धुंध बनती है। मौसम विभाग के स्टेशन पर तापमान या बारिश जैसा डाटा लगातार दर्ज किया जाता है। चूंकि धुंध कभी-कभार मिलती है तो इसका डाटा भी नियमित तौर पर इकट्ठा नहीं किया जाता।
मौसम विज्ञानी और भारत मौसम विज्ञान विभाग में अतिरिक्त महानिदेशक पद पर रह चुके डॉ आनंद शर्मा के मुताबिक ये सर्दियों में होने वाले कोहरे से अलग सूखी धुंध है। वह कहते हैं “इस समय वातावरण में नमी नहीं है। जबकि पहाड़ों में बढ़ते पर्यटन के चलते वाहन प्रदूषण बहुत बढ़ गया है। हिल स्टेशन से लेकर चार धाम तक वाहनों की लंबी कतारें लगी हुई हैं। इसके साथ ही जंगल की आग और लगातार चल रहे निर्माण कार्यों से हो रहा प्रदूषण भी मौजूद है। ये सब मिलकर सूखी धुंध बना रहे हैं। अमूमन गर्मियों में धुंध कम रहती थी। क्योंकि हवा चलती है, तापमान अधिक होता है और बीच-बीच में हलकी बौछारें पड़ती रहती हैं। जो धूल के कणों और प्रदूषकों की सफाई कर देती हैं। लेकिन इस बार प्री मानसून बारिश बहुत कम हुई है”।
स्थानीय नागरिक इस अनायास धुंध की एक और वजह पर रोशनी डालते हैं। स्थानीय निवासी और यमुना स्वच्छता समिति से जुड़े यशपाल चौहान का आकलन था कि खेतों की साफ-सफाई और सूखी झाड़ियां जलाने से ऐसा हुआ होगा। मई के आखिरी हफ्ते में टिहरी की हेंवल घाटी के ऊपर भी ये धुंध महसूस की जा सकती थी। स्थानीय किसानों के मुताबिक जंगल की आग के चलते ये प्रदूषण बना होगा।
पौड़ी के किसान सुधीर सुंद्रियाल कहते हैं “जंगलों में आग के समय वातावरण में एक परत सी बन जाती है। पहाड़ में लोग झाड़ियों की सफाई के लिए भी आग लगाते हैं ताकि जंगली जानवर इनमें न छिप सकें। इसके अलावा दिसंबर और अप्रैल महीने में खेतों की सफाई के समय ये धुंध ज्यादा छाती है”। वह याद करते हैं 10 साल पहले तक ऐसी गहरी धुंध महसूस नहीं होती थी।
पौड़ी श्रीनगर में एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय में भू-विज्ञानी डॉ एसपी सती कहते हैं “पहाड़ों में इस बार असमान्य तौर पर धुंध दिखाई दे रही है। मैं अपने साथियों के साथ घाटी से फील्ड वर्क से लौटा हूं और हमारे बीच ये धुंध चर्चा का विषय बनी रही। वर्ष 2013 की आपदा के बाद से ही हम इसका अनुभव कर रहे हैं। लेकिन इस साल धुंध ज्यादा गहरी है”।
डॉ सती भी मानते हैं “यह नमी के चलते होने वाली धुंध नहीं है। जंगल की आग और पहाड़ों में बढ़ता ट्रैफिक इसकी एक वजह तो है ही, इसके साथ ही बड़े स्तर पर चल रहा निर्माण कार्य, सड़क बनाने, सड़क चौड़ीकरण और जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण से होने वाला कचरा इसकी एक बड़ी वजह है। ये धुंध सिर्फ प्रदूषण के चलते है। बारिश के बाद अमूमन मौसम साफ हो जाता है लेकिन मैंने बारिश में इस धुंध को महसूस किया है”।
अभी उत्तरखांड के कुछ पर्वतीय क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता जांचने का कोई साधन नहीं है। इसकी तैयारी की जा रही है।
देहरादून में नागरिक संस्था द अर्थ एंड क्लाइमेट इनिशिएटिव की आंचल शर्मा कहती हैं “हर साल ही जंगल की आग से पहाड़ों में प्रदूषण हो रहा है। अध्ययन कहते हैं कि इनका असर ग्लेशियर्स पर भी पड़ता है। इसके बावजूद राज्य सरकार ने पर्वतीय क्षेत्र में वायु प्रदूषण जांच की व्यवस्था क्यों नहीं की। जबकि पूरे विश्व में वायु प्रदूषण एक बड़े खतरे के तौर पर देखा जा रहा है”।
अल्मोड़ा में जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान के वैज्ञानिक डॉ जेसी कुनियाल राज्य के पर्वतीय जिलों के लिए इनयावरमेंट प्लान बनाने का कार्य कर रहे हैं। वह कहते हैं “पहाड़ों में छाई धुंध की ये चादर ब्लैक कार्बन है। हवा में मौजूद 0.5 माइक्रॉन आकार से छोटे कण ब्लैक कार्बन हैं। राज्य में 15 फरवरी से 15 जून तक फॉरेस्ट फायर सीजन में एक दिन में अधिकतम करीब 8000 नैनोग्राम/क्यूबिक मीटर तक ब्लैक कार्बन का हमने अध्ययन किया है। पूरे सीजन में औसतन 3-4 हजार नैनोग्राम/क्यूबिक मीटर। इसी वजह से पहाड़ों में धुंध दिखाई दे रही है। पीएम-2.5, पीएम-10, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड समेत सभी ग्रीन हाउस गैसों से मिलकर ब्लैक कार्बन बनता है”।
वह बताते हैं कि बायोमास (जंगल की आग, झाड़ियां, कूड़ा जलाना) और जीवाश्म ईंधन (वाहनों का प्रदूषण) ब्लैक कार्बन के दो प्रमुख स्रोत हैं। यह दृश्यता, पर्यावरण, कृषि उत्पादन को प्रभावित करता है।
जलवायु परिवर्तन के लिए ज़िम्मेदार प्रदूषकों में से एक ब्लैक कार्बन हिमालयी ग्लेशियर के लिए भी खतरा है। विश्व बैंक ने अपने एक अध्ययन में कहा कि हिमालयी ग्लेशियर और बर्फ़ तेजी से पिघलने की वजहों में से एक यहां जमा हो रहा ब्लैक कार्बन भी है।
‘डाउन टू अर्थ’ से साभार