चारू तिवारी
दो युवा किसानों के हाथों में स्लोगन लिखी तख्तियां हैं। पंजाबी में लिखे नारे तो समझ में नहीं आये, लेकिन युवाओं का जज्बा बता रहा था कि वे अपने हकों के लिये बड़े आंदोलन की तैयारी से आये हैं। मैंने रोककर पूछा- ‘इस स्लोगन का अर्थ क्या है।’ पंजाब के संगरूर जिले से आये परविंदर ने इसका मतलब बताया, ‘अगर मुद्दा हक लेने का हुआ तो हम तीर की तरह जायेंगे, जो बाज (मौजूदा सरकार) हमारी रोटी छीनने आया है, हम उसे उड़ता नहीं देख सकते।’ दूसरे युवा कमलप्रीत पटियाला से आये हैं। उनका स्लोगन है, ‘मोदी सरकार हमारे वोट लेकर हमें अब हिंसक जानवर की तरह घूर रही है।’ यहीं पर हमें दो बुजुर्ग किसान मिले। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर जिले से आये हैं। एक किसान में अपनी उम्र बताई ‘एक कम अस्सी।’ दूसरे बुर्जुग इक्यासी बरस के हैं। कहते हैं कि अभी यहां से जाने का कोई इरादा नहीं है। हम पहले ही दिन से यहां आ गये थे। बीच में कुछ समय के लिये घर गये। अब स्थाई रूप से यहां आ गये हैं। कल यहां भारी बारीश हुई। एक किसान की ठंड से मौत और दूसरे किसान ने आत्महत्या कर ली। दिल्ली के तीनों बाॅर्डर पर शहीद होने वाले किसानों की संख्या 50 से ज्यादा हो गई है। अपने गीले बिस्तरों को धूप में सुखाते किसी भी किसान के चेहरे में कोई शिकन नहीं है (1 जनवरी, 2021)। पूरे जज्बे के साथ वे अपनी जीत के बाद ही अपने गांव वापस जाना चाहते हैं। आंदोलन के तित्तालीसवें दिन भी किसानों का जोश पहले जैसा है। जिस गाजीपुर बाॅर्डर में शुरुआती दौर में बहुत कम किसान पहुंचे थे, अब उसका विस्तार हो चुका है। दिल्ली गेट से खोड़ा और इंदिरापुरम तक कई गांव बस चुके हैं। किसानों के अलावा उन्हें समर्थन देने के लिये बड़ी संख्या में अन्य समाजों के लोग भी गाजीपुर बाॅर्डर पहुंच रहे हैं। अब यह आंदोलन पूरी तरह से एक जनांदोलन में परिवर्तित हो चुका है।
किसान आंदोलन के 43वें दिन किसानों ने ट्रेक्टर रैली के माध्यम से अपनी ताकत भी दिखा दी है। आज जब सरकार से बातचीत होगी तो उसका क्या नतीजा होगा कहा नहीं जा सकता, लेकिन किसानों के सामने अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने के अलावा कोई चिंता नहीं है। अस्सी के दशक में जब किसान नेता महेन्द्र सिंह टिकैत ने दिल्ली के बोट क्लब को घेरा तो नारा दिया- ‘इंडिया वालो सावधान! दिल्ली में भारत आ रहा है।’ गाजीपुर में अब ‘भारत’ बस गया है। अलग-अलग प्रान्तों के लोग। यहां पर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के किसान ज्यादा हैं। अपनी-अपनी भाषा और अपने-अपने खान-पान के साथ। हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र आदि के किसान भी बारी-बारी यहां शिरकत मिल जाते हैं। आज दक्षिण भारत के किसान भी एक जत्थे के साथ आये हैं। समाज के कई तबके किसानों के समर्थन में यहां हर समय मौजूद रहते हैं। रंगकर्मी, साहित्यकार, फिल्मकार, कलाधर्मी, छात्र और कई मजदूर संगठनों के लोग लगातार इसमें भागीदारी कर रहे हैं। यह कारंवा बढ़ता ही जा रहा है। सरकार शुरुआती दौर में कह रही थी कि यह कुछ गिने-चुने किसानों का आंदोलन है। मोदी जी ने समझा था कि जिस तरह आंदोलनों के शुरुआती दौर के बाद लोग थक जाते हैं, ऐसा ही इस आंदोलन में भी होगा। सरकार इसी उपक्रम में लगी रही कि किसी तरह किसानों के खिलाफ माहौल खड़ा किया जाय। आरएसएस और भाजपा अपने विभिन्न संगठनों और मीडिया सेल को आगे कर कुछ दिन तक यह करती भी रही। आज भी कर रही है। लेकिन अब उनके हाथों से बात निकल चुकी है। अब सिर्फ मोदी जी के ‘नायकत्व’ को बचाने के लिये सरकार से लेकर भाजपा लग गई है। लेकिन किसानों के मंचों से जोर से यही नारा गूंज रहा है- ‘हारेगी सरकार तू हारेगी, जीत्तेगा किसाण, तू जीत्तेगा।’
राजधानी दिल्ली के सिंधु, टिकरी, गाजीपुर और शाहजहांपुर बार्डर पर जमे किसानों से जब बातचीत की जाती है तो वे बड़ी बेफिक्री के साथ कहते हैं कि जब किसान अपनी समस्याओं के समाधान न होने पर आत्महत्या कर रहा है तो वह पुलिस की गोली से थोड़ी डरेगा। जब किसान तीन कृषि बिलों के विरोध में दिल्ली आ रहे थे तो सरकार का रवैया बहुत दमनकारी था। किसानों ने कहा था कि हम 26-27 नवंबर को दिल्ली के जंतर-मंतर पर आकर अपनी बात लोकतांत्रिक तरीके से रखेंगे, लेकिन सरकार ने उन्हें दिल्ली आने से रोकने को पुलिसिया कार्यवाही की। उन पर पानी की बौछारें की गई आसूं गैस के गोले छोड़े गये। यहां तक कि किसान दिल्ली न आने पाये इसके लिये सड़कों को खोदकर खाइयां बना दी। भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत कहते हैं, ‘हालांकि सरकार की हिम्मत नहीं है कि वह हम पर दुबारा पानी की बौछार या आंसू गैस छोड़ेगी। शायद सरकार को पता नहीं है कि हम पानी में ही रहते हैं। जितना आंसू गैस में धुंआ होता है उतना तो हमारे हुक्के से निकलता है।’ मंच से लेकर आम किसानों तक यह नारा बहुत ताकत के साथ लगाया जा रहा है- ‘जब तक बिल वापसी नहीं, तब तक घर वापसी नहीं।’ किसानों की इस हुंकार के समर्थन का दायरा लगातार बढ़ रहा है। देश के जाने माने जनकवि बल्ली सिंह चीमा पहले दिन से ही इस आंदोलन में हैं। वह कहते हैं, ‘मैं इस आदोलन में शामिल होने नहीं, बल्कि भागीदारी करने आया हूं। मैं एक कवि के साथ किसान भी हूं। उनसे कह दो कि अब लोगों ने डरना छोड़ दिया है।’ बल्ली सिंह चीमा ऐसे जनकवि हैं जो संघर्षो की जमीन पर चेतना की कविता उगाते हैं। सड़कों पर उसे गाते हैं। उन्होंने एक नया गीत इस आंदोलन पर बनाया है-
‘मौत के डर को छोड़-छाड़ के तू जीने के काबिल हो,
जिंदा है तो दिल्ली आ जा संघर्षो में शामिल हो।
जात-धर्म से ऊपर उठ जा इंसानों में शामिल हो,
जिंदा है तो दिल्ली आ जा संघर्षों मे शामिल हो।
उनके जोर-जुल्म सब हमने अब तक क्यों चुपचाप रहे,
संघर्षों के वारिश होकर यारों क्यों चुपचाप रहे।
हकों की खातिर भिड़ जा उससे गुंडा हो या कातिल हो,
जिंदा है तो दिल्ली आ जा संघर्षो में शामिल हो।
आज तलक बेनाम रहे जो, उनको भी कोई नाम मिले,
पेट दुआयें मांग रहा है हाथों को कोई काम मिले।
रोजगार और शिक्षा का हक अधिकारों में शामिल हो,
जिंदा है तो दिल्ली आ जा संघर्षो में शामिल हो।
खेती से जुड़े हर बंदे की बर्बादी का संदेश है,
ये तीनों कानून हमारी मौत का ही आदेश है।
जुमलों पर विश्वास न कर अब, आंदोलन में शामिल हो,
जिंदा है तो दिल्ली आ जा संघर्षो में शामिल हो।
इनके ये कानून हमारे खेतों को खा जायेंगे,
किसे पता था भारत में अंग्रेज दुबारा आयेंगे।
मान ले ‘बल्ली’ का कहना तू इंकलाब के काबिल हो,
जिंदा है तो दिल्ली आ जा संघर्षों में शामिल हो।
बल्ली सिंह चीमा के पुराने गीत भी कई टैंटों और मंचों पर किसान गाते सुनाई देंगे। पंजाब हरियाणा, उत्तर प्रदेश बिहार, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, केरल, राजस्थान के किसानों के जत्थे आपको यहां दिखाई देंगे। यहां के कई लेखक, कलाकार, छात्र, नौजवान भी इसमें शामिल हैं। यहां जाने-माने कवि संपत सरल से लेकर रागनी गाने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के किसान हैं। मध्य प्रदेश की सात साल की सोनिका पटेल अपने ओजस्वी भाषणों से किसानों का मनोबल बढ़ा रही हैं। पंजाबी लोक गायकों ने पूरे आंदोलन को जीवंत बनाये रखा है। सरकार, भाजपा और गोदी मीडिया जिस तरह पहले दिन से इसे सिर्फ पंजाब के किसानों का आंदोलन मान रहा था इसे अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय सचिव पुरुषोत्तम शर्मा खारिज करते हुये कहते हैं- ‘इस आंदोलन में शामिल 500 से ज्यादा किसान संगठनों में मात्र 32 संगठन पंजाब के हैं। बाकी 470 से ज्यादा किसान संगठन देश के अन्य राज्यों से हैं। दिल्ली कूच करने का आवाह्न करने वाले किसानों के साझे मंच में राजू शेट्टी के नेतृत्व वाला शेतकारी संगठन महाराष्ट्र से है। गुजरात में प्रतिभा शिंदे के नेतृत्व वाला लोक संघर्ष मोर्चा, मध्य प्रदेश-महाराष्ट्र का मेधा पाटकर का नर्मदा बचाओ आंदोलन, शिव कुमार कक्का के नेतृत्व वाला मध्य प्रदेश का भारतीय किसान महासंघ, मध्य प्रदेश के डाॅ. सुनीलम के नेतृत्व वाली किसान संघर्ष समिति, हरियाणा के गुरुनाम चढूनी के नेतृत्व वाला भारतीय किसान यूनियन, उत्तर प्रदेश में राकेश टिकैत के नेतृत्व वाला भारतीय किसान यूनियन, कर्नाटका की कविता कुरुगंती के नेतृत्व वाला आसा कर्नाटका, कर्नाटक के ही चंद्रशेखर के नेतृत्व वाला कर्नाटका रैयत संगम, तमलिनाडु के अन्नाकन्नु के नेतृत्व वाला किसान संगठन के अलावा अखिल भारतीय किसान मजदूर संगठन, जय किसान संगठन, अखिल भारतीय किसान महासभा, अखिल भारतीय किसान महासभा अजय भवन, अखिल भारतीय किसान खेत मजदूर संगठन जैसे दर्जनों किसान संगठन शामिल हैं जिनका देश के 25 से ज्यादा राज्यों में बड़ा प्रभाव है।’
पुरुषोत्तम शर्मा ने किसान आंदोलन को समझने के लिये एक पुस्तिका भी प्रकाशित की है ‘किसानों का दिल्ली पड़ाव।’ नवारुण प्रकाशन ने इसे छापा है। राजधानी दिल्ली के सिंधु, टिकरी और गाजीपुर बोर्ड़र पर आंदोलन कर रहे 50 से ज्यादा किसानों की अब तक मौत हो चुकी है। औसतन हर दिन एक किसान की मौत हो रही है। इन मौतों के बाद भी देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी पूरी बिरादरी का मानना है कि ये किसान नहीं हैं। उन्होंने अपनी एक बड़ी बिरादरी और गोदी मीडिया के माध्यम से पूरे देश में माहौल बनाने की कोशिश की कि ये किसान नहीं ‘राष्ट्रद्रोही’, ‘नक्सली’, ‘विदेशी फंड से पलने वाले’, ‘खालिस्तान समर्थक’,:‘कनाडा से फंडेड’ आदि नामों से संबोधित किया गया। तीनों कृषि कानूनों को सही साबित करने के लिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, कृषि मंत्री नरेन्द्र तोमर, वाणिज्य मंत्री पियूष गोयल आदि को लग गये। प्रधानमंत्री ने एक वाक्य ईजाद किया ‘किसानों को भ्रमित किया जा रहा है।’ यह बात उन्होंने अपने चुनाव क्षेत्र काशी में गंगा की सौगंध खाते हुये कही कि वे किसानों के सबसे बड़े हितैषी हैं। यही वाक्य सरकार और भाजपा के लिये नजीर बना और देखते-देखते मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस, त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लव कुमार देव को मैदान में उतार दिया। भाजपा के पदाधिकारी और प्रवक्ता, भाजपा के अनुसांषी संगठन, भाजपा के लिये काम करने वाला सोशल मीडिया झूठे-एडिटेड वीडियों के जरिये मैदान में उतर गया। उन्होंने घोषणा की कि वे देश भर के किसानों के बीच जाकर बतायेंगे कि ये तीनों कानून कैसे किसानों के पक्ष में हैं। वे कौन सी ‘शक्तियां’ हैं जो किसानों को उकसा कर अपना उल्लू सीधा कर रही हैं। उन्होंने यह भी बताने की कोशिश की कि यह आंदोलन सिर्फ पंजाब का है और बड़े किसानों का है। लेकिन जब भाजपा के लोग किसानों के बीच अपनी बात को कहने के लिये गये तो उन्हें किसानों ने दौड़ा दिया। फिलहाल वे समझ गये हैं कि किसानों से पंगा लेकर उन्होंने बहुत गलती कर दी है। यही वजह है कि उन्होंने इन कानूनों के 27 बिन्दुओं पर संशोधन की बात कही है। किसानों ने कहा कि वे पूरे कानूनों को वापस लेने से कम में मानने वाले नहीं हैं। अब किसान कडकती ठंड में सड़क पर है। उसे पूरे देश से समर्थन मिल रहा है।
सरकार और किसानों के बीच आठवें दौर की बातचीत (8 जनवरी, 2021) भी बेनतीजा रही। इसके बेनतीजा रहने की सबसे बड़ी वजह है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अहं को बचाना। प्रधानमंत्री ने कृषि कानूनों के बारे में अपने लोकसभा क्षेत्र काशी में जनता को संबोधित करते हुये गंगा की सौगंध खाई कि वे किसानों के खिलाफ कुछ नहीं करेंगे। किसानों को इन बिलों के बारे में ‘भ्रमित’ किया जा रहा है। भाजपा, गोदी मीडिया और सरकार के नुमांइदों के लिये मोदी जी के ये शब्द ‘बह्मवाक्य’ बने गये। इसी को लाइन मानकर इस पूरे आंदोलन को अराजक तत्वों का आंदोलन बताने की होड़ लग गई। एक संगठित गिरोह की तरह गांव के मेहनतकश और ईमानदार किसानों के बारे में जो कुछ इस बीच कहा गया वह भारत जैसे देश में किसानों को खलनायक बनाने जैसा है।
मोदी जी के इशारे पर पूरे देश में एक अभियान चलाया गया। बताया गया कि जो किसान दिल्ली की ओर कूच कर रहे हैं वे खालिस्तानी हैं। उन्हें पाकिस्तान से पैसा दिया जा रहा है। प्रचारित किया गया कि उन्हें कनाडा से आर्थिक सहायता मिल रही है। इनमें सब माओवादी और नक्सली शामिल हैं। ये देश को तोड़ना चाहते हैं। किसानों के बारे में बताया गया कि इनके पास आधुनिक टैªक्टर हैं। आधुनिक कपड़े हैं। किसान जींस पहने हैं। बड़ी गाड़ियों में आ रहे हैं। अंग्रेजी बोल रहे हैं। महंगे मोबाइल हैं। जब आंदोलन आगे बढ़ा तो हमले और तेज हो गये।
किसान आंदोलन पर सरकार, भाजपा और गोदी मीडिया ने क्या कहा उस पर एक नजर डाल लेते हैं। सबसे पहले प्रधानमंत्री मोदी जी ने कहा कि ‘किसानों को भ्रमित किया जा रहा है। इसके पीछे वे लोग हैं जो किसानों का भला नहीं चाहते।’ इसी लाइन पर फिर पूरा उनका कुनबा चल पड़ा। जैसी उनकी फितरत है। फिर उनमें किसानों को ‘राष्ट्रद्रोही’ साबित करने की ऐसी होड़ लगी कि वे समझ ही नहीं पाये कि वह क्या कह रहे हैं। बेलगाम, बदतमीजी, असंसदीय जितनी भी मर्यादायें तोड़ सकते थे, उन्होंने तोड़ी।
अंबाला में केन्दीय राज्यमंत्री कटारिया ने कहा- ‘इन किसानों को मेरे ही कार्यक्रम में आकर मरना था। किसी और जगह जाकर क्यों नहीं मरते।’ केन्द्रीय मंत्री और देश के सेनापति रहे जनरल बीके सिंह ने कहा- ‘ये किसान नहीं कमीशनखोर हैं।’ भाजपा के बड़े नेता कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि कनाडा में सबसे ज्यादा खालिस्तानी हैं, इसलिये वहां के प्रधानमंत्री ने आंदोलन को समर्थन दिया है। केन्द्रीय मंत्री राव सहाब दानवे ने कहा कि किसान आंदोलन में चीन और पाकिस्तान का हाथ है। दिल्ली के एक सांसद रमेश बिधूडी ने किसानों को ऐसी गाली दी जो यहां लिखी भी नही नहीं जा सकती। इसके अलावा बहुत सारे भाजपा के नेता, मंत्री और संगठनों के प्रमुखों ने अपनी-अपनी तरह से इन बातों को फैलाना शुरू किया।
मोदी जी के मुंहलगे एक चैनल ‘एबीपी न्यूज’ जिसने कभी मोदी जी से पूछा था कि ‘आप थकते क्यों नहीं’ उसने अपने अपने यहां खबर का शीर्षक दिया- ‘आंदोलन का अर्थशास्त्र।’ इसमें वह दिल्ली के आसपास के कुछ किसानों को पकड़ कर लाये जिन्होंने बताया कि आंदोलन से पूरी कृषि चौपट हो गई है। हमारी सामने रोटी का संकट पैदा हो गया है। एक और ‘सबसे तेज’ चैनल अपनी विदुषी एंकरों को अंजना ओम कश्यप के नेतृत्व में लगातार कई कार्यक्रमों में इन लाइनों को चलाता रहा- ‘किसान का कंधा, विपक्ष की बंदूक’, ‘किसानों पर विपक्ष का डबल गेम’, ‘किसानों पर नेतागिरी करने वालों की पोल खोल’, ‘किसानों के ‘नाम’ पर विपक्ष लगा ‘काम’ पर’, ‘सुधारवादी राजनीति बनाम स्वार्थ वाली राजनीति’, ‘किसान बहाना, मोदी निशाना।’
एक और महोदय हैं जो कभी-कभी अपनी बहस के बीच पैनल में आये मेहमानों के पास जाकर थूक के छीटों के साथ उनको धमकाते हैं। नाम है दीपक चैरसिया। इनका चैनल है ‘न्यूज नेशन।’ इन पत्रकार महोदय ने तो हद ही कर दी। विद्वान पत्रकार ने बताया कि इस आंदोलन में शाहीनबाग की बिकलीस आ गई है। उन्होंने यह भी बताया कि पूरे आंदोलन में लाल झंडे हैं।
मोदी युग के एक और जमीनी पत्रकार हैं। उन्हें तो आप जानते ही हैं, जिन्हें पिछले दिनों टीआरपी के चक्कर में पकड़ा गया था नाम है- अनरब गोस्वामी। जिनके चैनल का नाम है ‘रिपब्लिक भारत।’ इन्होंने चिल्ला-चिल्लाकर बताया कि किस तरह यह आंदोलन देशद्रोहियों, माओवादियों, टुकड़े-टुकड़े गैंग, जेएनयू, चन्द्रशेखर रावण के चंगुल में चला गया है।
अपने चैनल में अदालत चलाने वाले मोदी युग के सबसे चर्चित पत्रकार हैं- रजत शर्मा। कभी इनका चैनल भूत-प्रेत की कहानियां दिखाने के लिये जाना जाता था। अब ये सत्ता के भूत-प्रेतों के साथ हैं। इन्हीं भूत-प्रेतों के चलते उन्हें पद्मश्री मिला। इन्होंने एक बहुत सुन्दर ट्वीट किया कि इस आंदोलन को चलाने वाले लोगों को मोदी का ‘ट्रैक रिकार्ड’ देखना चाहिये।
एक ने खबर चलाई- ‘तवा गरम है, कितने लोग सेक रहे हैं रोटियां।’ एक और पत्रकार महोदय हैं। बहुत सीधे और सरल। आजकल ‘न्यू इंडिया’ में हैं। नाम है- सुमित अवस्थी। उनकी हेड लाइन्स हैं- ‘किसानों की जमीन, नेताओं की फसल’, ‘नाम किसानों का झंडा पार्टियों का क्यों?’
एक जगत विद्वान पत्रकार और हैं। वही ‘जी न्यूज’ वाले- सुधीर चौधरी। आप जानते ही हैं। अब वे भी राष्ट्रभक्ति का प्रमाणपत्र बांटने वालों में शामिल हो गये हैं। ईमानदारी के प्रतिमूर्ति इन महोदय ने तो पहले दिन से कहना शुरू कर दिया था- ‘अंग्रेजी में प्रेस नोट देना, जींस पहनना, सोशल मीडिया में हैश टैक चलाना, आई फोन यूज करना यह सब किसान कर ही नहीं सकता। इससे समझा जा सकता है कि इन्हें कौन चला रहा है। पंजाब का किसान ही आंदोलन क्यों कर रहा है। शर्जिल इमाम, उमर खालिद, बरबर राव, सुधा भारद्वाज आदि के फोटो क्यों हैं।’
कुछ चैनलों जैसे एनडीटीवी, न्यूज-24 जैसे चैनलों को छोड़ दिया जाये तो मुख्यधारा के मीडिया का यही रवैया रहा। रवीश कुमार और संदीप चौधरी ने किसान आंदोलन पर बहुत ही अच्छी कवरेज की हैं। इन्होंने श्रृंखलाबद्ध किसानों के आंदोलन को गहराई से समझने की कोशिश की है। अजीत अंजुम, पुण्यप्रसून वाजपेयी और अभिसार शर्मा ने अपने यू-ट्यूब चैनलों में बहुत साफगोई से किसान आंदोलन को कवर किया है।
ये सिर्फ कुछ उदाहरण हैं यह समझने के लिये कि किस तरह शुरुआती दौर से ही भाजपा नेताओं और मीडिया ने इस आंदोलन का दुष्प्रचार किया। बहुत सारे यू-ट्यूबर और सोशल मीडिया चलाने वाले मोदी समर्थक या मोदी प्रायोजित जमात ने वीडियो एडिट कर इस आंदोलन को बदनाम करने की साजिशें की। इन सब बातों से बेफिक्र किसान राजधानी की सीमाओं पर डटे हैं।
पंजाब के संगरूर जिले से आये युवा किसान परविंदर सिंह कहते हैं- ‘भाजपा और सरकार के दुष्प्रचार और मीडिया का जनविरोधी नजरिये से हमें कोई असर पड़ने वाला नहीं है। हम कोई इवेंट नहीं कर रहे हैं, जिसमें हमें प्रचार की जरूरत पड़े। असल में मोदी जी चाहते हैं कि देश का किसान फटेहाल दिखाई दे, वह अनपढ़ हो, आत्महत्या करने वाला हो। उनकी परिभाषा में वही किसान है। इस बार उन्हें पता चला कि इस देश का किसान अपने हकों के लिये जागरूक है। उन्हें पहली बार लगा कि किसान अंगे्रजी भी बोल सकता है। यह मोदी जी के अडानी-अंबानी प्रेम को चुनौती देता है।’
पटियाला के युवा किसान कमलप्रीत फर्राटेदार अंग्रेजी में कहते हैं- ‘सरकार ने संगठित रूप से जिस तरह किसानों के खिलाफ यह अभियान चलाया है, बहुत शर्मनाक है। किसी बात से सहमति या असहमति हो सकती है, लेकिन जिस तरह मोदी जी के आने के बाद लोगों को अपने देश में राष्ट्रभक्त होने का प्रमाणपत्र लेकर घूमना पड़ेगा यह लोकतंत्र के लिये बहुत घातक है। वह भी भाजपा या उनके संगठनों से। हमारे पुरखों ने आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हमारे कई पुरखे देश के लिये शहीद हुये हैं। हम किसान बिलों से उतने आहत नहीं हुये हैं, जितने कि अपनी निष्ठा पर उठे सवालों से। इसलिये यह लड़ाई बड़ी है।’
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर जिले से आये वयोवृद्ध किसान अमरीक सिंह कहते हैं- ‘हम लोगों ने अपनी मेहनत से इस जमीन को जोता है। सरकार आज हमें किसान ही मानने को तैयार नहीं है। हम अब दिल्ली आ गये हैं अपना हक लेकर ही वापस जायेंगे। यहां बहुत सर्दी है, लेकिन अपनी खेती से बढ़कर हमारे लिये कुछ और नहीं है। यह गलत है कि यह आंदोलन सिर्फ पंजाब के किसानों का है। यह अब पूरा जनांदोलन बन गया है। इसमें किसान ही नहीं अन्य समाजों के लोग भी हमें सहयोग कर रहे हैं।’
लखीमपुर से ही आये कुशवंत सिंह का कहना है- ‘हमने बहुत कष्टों से अपनी जमीन को उपजाऊ बनाया है। मेरी उम्र अस्सी कम एक है। जहां हम खेती करते हैं वहां पहले सांप, बिच्छू निकलते थे। हमने बड़ी मेहनत से उसे अपनी जीविका के लिये खोदा। सरकार आज हमारी उसी जमीन को हमसे छीनने के कानून ला रही है। इस तरह के कृषि कानून हमारी मौत के वारंट हैं।’
हरियाणा के जींद जिले से आये अतर सिंह कहते हैं- ‘सरकार जो लगातार किसानों को बातचीत के लिये बुलाने का ढोंग कर रही है, उससे किसान विचलित होने वाला नहीं है। यह बात सही है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अहम को बचाने के लिये सरकार किसान हितों की बलि लेना चाहती है। सरकार झूठ फैला रही है कि इस आंदोलन में सिर्फ सिक्ख और पंजाब के किसान हैं। मैं हरियाणा के जींद जिले का रहने वाला हूं। पिछले एक महीने से यहीं जमा हूं। सरकार को एक बात तो मालूम हो गई है कि किसान अब मानने वाला नहीं है। यदि ये कानून सही हैं तो सरकार उनमें इतने सारे संशोधनों के लिये क्यों तैयार है। अगर उसने गलती की है तो उसे मानते हुये तीनों कृषि बिलों को वापस लेना चाहिये।’
जब किसानों से पूछा गया कि रास्ता क्या है। उनका एक ही जबाव है कि कानूनों की वापसी ही रास्ता है। हम पूरे इंतजाम के साथ यहां आये हैं। वे बार-बार एक ही नारा दोहराते हैं- ‘जब तक कानून वापसी नहीं, तब तक घर वापसी नहीं।’
(जारी…)