देवेश जोशी
जो छूट गए, जो पिछड़ गए हैं और जो अधिकारों से वंचित रह गए हैं, सरकारें उन्हें मुख्यधारा में लाने के लिए कई योजनाएँ बनाती है। लोक-समाज, पर्व-त्योहार बनाता है। सबके हिस्से में हर्ष-उल्लास सुनिश्चित करने के लिए। उत्तराखण्ड का इगास त्योहार, जो कहीं बूढ़ी दीवाली के नाम से मनाया जाता है और कहीं कण्सि बग्वाळ के नाम से, वस्तुतः वंचितों को समर्पित पर्व है। इससे जुड़ी सभी किवदंतियां-मिथकों में भी वंचितों का जिक़्र है।
चाहे वो रामचंद्रजी की विजयोपरांत अयोध्या लौटने के शुभ-समाचार से वंचित रहे हों या फिर किसी युद्ध में फँसा महाबली भीम जो दीपावली मनाने से वंचित रह गया था या स्वाभाविक अधिकारों से वंचित पितामह भीष्म या फिर गढ़वाल का वीर-शिरोमणि माधो सिंह भण्डारी जो सोलह श्राद्ध और बारह बग्वाळी से वंचित रह गया था।
यही नहीं एक कालखण्ड में उत्तराखण्ड की बहू-बेटियाँ भी वंचितों की ही श्रेणी में रही हैं। ऐसी भी बहू-बेटियाँ रही हैं जिन्हें चावल का भात और गेंहूँ की रोटियाँ सिर्फ़ इगास बग्वाळ में ही खाने को मिलती थी। इगास पर्व उनको भी समर्पित है जो आयु-अवस्था-परिस्थिति के कारण उत्पादक-मददगार नहीं रह गए हैं। जो गाय दूध नहीं दे रही हो, प्रजनन-अक्षम हो गयी हो जो बैल हल लगाने में असमर्थ हो गए हों उनको भी आदर-सम्मान दिया जाता है, इगास के अवसर पर इगास समर्पित है उन ग्वैर छोरों (ग्वालों) को जिनके हिस्से पशु-चारण रहा जो कृषि-सहायक पशुओं के निकटस्थ रहे।
इगास पर्व उस बिरादरी को भी उत्सव मनाने का अवसर प्रदान करता है जिस बिरादरी के किसी परिवार में मृत्युशोक के कारण त्योहार मनाने की व्रजना हो। इगास के अवसर पर ये व्रजना परिवारविशेष तक ही सीमित कर दी जाती है।
इगास उत्तराखण्ड का अद्भुत त्योहार है। इसका समकक्ष देश भर में नहीं दिखता। एक ऐसा त्योहार जिसमें फिजूलखर्ची की होड़ नहीं है, जिसमें अपनी खुशी के आगे गैरों के अभावों की अनदेखी नहीं है और जिसमें पीछे रह गए, वंचितों को भी हर्ष-उल्लास में शामिल करने का पूरा अवसर दिया जाता है।
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना,
अंधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।
इस प्रसिद्ध कविता को पूरी तरह चरितार्थ करता है इगास।
एक समय था जब उत्तराखण्ड में इगास के बाद लोग आश्वस्त हो जाते थे कि अब कोई ऐसा जीव नहीं है जिसके हिस्से साल में न्यूनतम एक बग्वाळ की खुशियाँ न आयी हों।
इगास, उत्तराखण्ड का आइकन त्योहार है। पूरी तरह तार्किक और जनपक्षीय। इगास उत्तराखण्ड के लोकसमाज का गौरव है जो शेष समाज के लिए काबिले-रस्क़ है। इगास उत्तराखण्ड का ऐसा लोकपर्व है जो प्रकृति में समावेशी है, सर्वहितचिंतक है और प्राकृतिक न्याय का पोषक है।
ये कहते और सोचते हुए गर्वानुभूति होना स्वाभाविक है कि हम उस प्रदेश के वासी हैं जहाँ इगास मनाया जाता है। इगास जैसे सुविचारित लोकपर्वों की जिस भारत देश में प्रचुर-विविधता है उस पर भी हमें गर्व है।
सभी को इगास की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ।
इगास को लेकर देहरादून-दूरदर्शन आज शाम 7:00 बजे एक लघु वार्ता का प्रसारण कर रहा है। जिनकी रुचि हो वो देख सकते हैं। निश्चित ही इगास के हर्षोल्लास में वृद्धि होगी। आपको जड़ों का पता भी मिलेगा और गंतव्य की दिशा भी साफ होती दिखेगी। वार्ता में लोकगीत-संगीत विशेषज्ञ डाॅ माधुरी बड़थ्वाल दीदी हैं, साहित्यकार और कोशकार रमाकांत बेंजवाल जी हैं और एक कोने पर मैं भी हूँ।