जयसिंह रावत
उत्तराखण्ड की विख्यात चारधाम यात्रा और उसके साथ ही पर्यटन सीजन अपने चरम पर है और राज्य सरकार की व्यवस्थाएं नदारद हैं। यात्रा शुरू होने से पहले जिन दिनों राज्य की त्रिवेन्द्र सरकार को व्यवस्थाऐं चाक चौबन्द करनीं थीं उन दिनों उसका ध्यान लोकसभा चुनाव में वोट बटारने की जुगत में था। आज स्थिति यह है कि ऋषिकेश से लेकर चारों धामों तक और मसूरी से लेकर नैनीताल तक लाखों तीर्थयात्री एवं पर्यटक अव्यवस्थाओं का सामना कर रहे हैं। सबसे बड़ी समस्या ट्रैफिक जाम की है। समुचित मेडिकल सुविधाओं के अभाव में चारों धामों में इस बार लगभग एक माह की अवधि में ही हृदय गति रुकने और ठण्ड आदि से मरने वाले की संख्या 44 तक पहुंच गयी है। इस अराजक स्थिति को मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत अपनी उपलब्धि बता रहे हैं।
बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के मुख्य कार्याधिकारी बी.डी. सिंह के अनुसार इस वर्ष 18 जून तक बदरीनाथ एवं केदारनाथ धामों में देश-विदेश के 13,86,321 तीर्थ यात्री दर्शन लाभ कर चुके थे। इनमें 6,92,124 यात्री बदरीनाथ के और 6,94197 यात्री केदारनाथ धाम के शामिल हैं। 18 जून को 11,447 यात्री बदरीनाथ और 13,316 यात्री केदारनाथ पहुंचे। इस साल 7 जून को एक ही दिन में 36,179 यात्रियों का रेला केदारनाथ जा पहुंचा। उसके अगले दिन 8 जून को 20,121 यात्री बदरीनाथ और 35,122 यात्री केदारनाथ पहुंचे। केदारनाथ यात्रा तथा दर्शन व्यवस्था सुव्यवस्थित करने के लिये जिला प्रशासन ने इस बार टोकन की व्यवस्था शुरू की थी जो कि बुरी तरह विफल हो गयी। मंदिर परिसर में ही पुलिस द्वारा यात्रियों को धक्के मार कर भगाने की शिकायतें भी सरकार तक पहुंची हैं। कुल मिला कर देखा जाय तो इन दिनों लगभग 1350 किमी लम्बे चार धाम यात्रा मार्ग एवं समुद्रतल से लगभग 2 हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित पहाड़ी पर्यटन नगरों में उमड़ रहे मानव सैलाब को सम्भालने में बुरी तरह विफल रही है। यही नहीं मूख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत मेहमानों और आम नागरिकों को होने वाली भारी परेशानियों के लिये खेद प्रकट करने के बजाय इस अराजकता को अपनी उपलब्धि मान रहे हैं।
इस यात्रा सीजन में जून के पहले पखवाड़े तक कोई बड़ी सड़क दुर्घटना तो नहीं हुयी मगर समय से इलाज न मिल पाने के कारण हार्ट अटैक जैसी बीमारियों से यात्रियों के मरने की संख्या का रिकार्ड अवश्य ही टूट गया है। इस साल 14 जून तक चारों धामों के यात्रा मार्गों पर मरने वाले श्रद्धालुओं की संख्या 48 तक पहुंच गयी है जबकि गत वर्ष 2018 की यात्रा में पहले एक महीने में 27 यात्रियों की जानें गयीं थीं। 19 जून को पश्चिम बंगाल के गौराज चन्द्र मुखर्जी (67) तथा मुम्बई के विनोद व्यास (51) की मौत के साथ ही 9 मई को यात्रा शुरू होने से लेकर 19 जून तक एक माह 10 दिन की अवधि में ही अकेले केदारनाथ और उसके यात्रा मार्ग पर मरने वालों की संख्या 34 तक पहुंच गयी थी और अभी यात्रा के लगभग साढ़े चार माह बाकी हैं। इन में से कुछ यात्रियों ो समुचित चिकित्सा व्यवस्था उपलब्ध होने पर बचाया जा सकता था। डाक्टरों के अनुसार यात्रियों की ज्यादातर मौतें हाइपोक्सेमिया (रक्त में ऑक्सीजन का न्यूनतम स्तर) के कारण हार्ट अटैक होने से हुयी हैं। पिछले साल 6 माह के पूरे यात्रा सीजन में 65 यात्रियों की मौतें हुयीं थीं। सूबे के चिकित्सा विभाग का भार भी स्वयं मुख्यमंत्री त्रिवेद्र के पास है।
ऋषिकेश स्थित बायोमीट्रिक पंजीकरण केन्द्र के अनुसार वहां पर प्रति दिन औसतन 9500 यात्री चारधाम के लिये पंजीकरण करा रहे हैं। इस हिसाब से वहां पर 40 सीट वाली कम से कम 225 बसों की प्रतिदिन आवश्यकता है जो कि पूरी नहीं हो पा रही है। मजबूरन यात्रियों को ऊंची दरों पर टैक्सियां और जीपें लेनीं पड़ रही हैं। अधिकांश बसें तीर्थ यात्रियों को ढोने पर लगा दिये जाने से प्रदेश के स्थानीय यात्रियों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
ऋषिकेश में बाहरी आगन्तुकों के लिये बायोमीट्रिक पंजीकरण जरूरी है। बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति जहां अब तक 13 लाख से अधिक श्रद्धालुओं के आने की पुष्टि कर रही है वहीं यात्रा के आधार केन्द्र ऋषिकेश में 18 जून तक केवल 5,55,960 यात्री ही अपना पंजीकरण करा पाये थे। जाहिर है कि यात्री अपने निजी वाहनों से बिना पंजीकरण के ही यात्रा कर रहे हैं। यह व्यवस्था 2013 के केदारनाथ त्रासदी के कटु अनुभवों के आधार पर की गयी थी क्योंकि उस महा आपदा में मरने और लापता होने वाले लोगों का सही-सही आंकड़ा कोई भी नहीं जुटा पाया।
जून शुरू होते ही नैनीताल और मसूरी जैसे पर्यटन स्थलों पर्यटकों का तांता लगना शुरू हो गया था। लेकिन वहां समुचित पार्किंग व्यवस्था न होने के कारण पर्यटकों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। जून के पहले सप्ताह तो स्थिति इतनी बदतर थी कि पर्यटकों के वाहनों को नैनीताल से 10 किमी पीछे बल्दिया खान में रोक दिया गया। डंडाधारी पुलिसकर्मियों ने पर्यटकों के साथ भी कानून तोड़ने वालों की तरह पुलिसिया व्यवहार किया। जिस कारण पर्यटकों को निराश हो कर वापस लौटना पड़ा जबकि इतनी बेकाबू भीड़ के बावजूद होटलों में कमरे खाली रहे। इस अराजक स्थिति का शिकार स्थानीय नागरिकों को भी होना पड़ा। मसूरी के वरिष्ठ पत्रकार जयप्रकाश उत्तराखण्डी के अनुसार कई बार उनके लिये घर से ही बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है। मसूरी क्षेत्र के मुख्य आकर्षण केम्प्टी फॉल जाने के लिये तो ट्रैफिक की सबसे बद्तर स्थिति है। वहां की यह समस्या नयी नहीं है मगर उसका समाधान नहीं निकाला जा रहा है। ऋषिकेश से लेकर चार धामों तक जाने वाले लगभग 1350 किमी लम्बे मार्गों पर एक भी व्यवस्थित बस अड्डा न होने से यात्रियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। बस स्टेशनों पर स्थानाभाव के कारण वाहनों को प्रमुख नगरों में रुकने नहीं दिया जाता जिस कारण यात्री अपनी जरूरत की वस्तु तक नहीं खरीद पाते। उत्तराखण्ड सरकार की इतनी बड़ी नाकामयाबी आज तक कभी सामने नहीं आयी। इधर चारधाम यात्रा को अराजकता में छोड़ कर प्रदेश के पर्यटन एवं धर्मस्व मंत्री सतपाल महाराज अपने राजनीतिक नम्बर बढ़ाने के लिये अपने अव्यवहारिक ‘‘डार्क टूरिज्म’’ को लेकर दिल्ली-देहरादून में ही मग्न रहे।
चार धाम मार्ग पर पेट्रोल की सामान्य उपलब्धता से कहीं अधिक खपत बढ़ जाने से भी अक्सर पेट्रोल और डीजल की किल्लत हो रही है मगर राज्य सरकार की ओर से इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की गयी। केदारनाथ मार्ग की जड़ पर तथा बदरीनाथ मार्ग के एक मुख्य नगर रुद्रप्रयाग में तथा उसके आसपास के 9 पेट्रोल पम्पों पर सामान्य दिनों में औसतन 10 हजार लीटर पेट्रोल और 30 हजार लीटर डीजल की खपत होती है मगर इन दिनों वहां पेट्रोल की मांग 30 हजार और डीजल की मांग 80 हजार लीटर तक पहुंच गयी है। बदरीनाथ मार्ग पर स्थित 9 पेट्रोल पम्पों पर सामान्य दिनों औसतन 10 हजार लीटर पेट्रोल और 25 हजार लीटर डीजल की खपत होती है, मगर इन दिनों पेट्रोल की मांग सवा लाख लीटर और डीजल की मांग 45 हजार लीटर तक पहुंच गयी है। मैदानी क्षेत्र से इतना तेल समय से इन पेट्रोल पम्पों पर नहीं पहुंच पाता है। इस किल्लत का लाभ भी ब्लैकिये उठा रहे हैं। ऑल वेदर रोड के निर्माण कार्य के कारण भी पेट्रोल आपूर्ति में विम्ब हो रहा है। सड़क निर्माण के कारण भी रास्ते में कभी-कभी घण्टों तक जाम लग जाता है।
कोट्स
1-इस बार नैनीताल ही नहीं सभी हिल स्टेशनों पर जैसी अराजक स्थिति रही वैसी पहले नहीं देखी गयी। पुलिसकर्मियों ने पर्यटकों को मार-मार कर भगाया। सरकार ने पर्यटन पुलिस के गठन की घोषणा की थी लेकिन पर्यटन पुलिस कहीं नजर नहीं आयी। उनकी जगह डंडाधारी पुलिसकर्मी ही पर्यटकों को हांकते रहे। नैनीताल मसूरी में पार्किंग की समस्या तो है मग रवह अकेली समस्या नहीं है। दूरगामी सुविचारित नीति की जरूरत है। ईद के बाद इस बार काफी भीड़ रही, मगर शासन प्रशासन मैनेज नहीं कर पाया।
राजीव लोचन शाह
प्रख्यात शोसियल एक्टिविस्ट एवं वरिष्ठ पत्रकार, नैनीताल
2- इस बार पर्यटक और तीर्थ यात्री अपेक्षा से अधिक आये मगर ये सम्भाल नहीं पाये। इसका प्रभाव नकारात्मक पड़ा। आशा है इस विफलता से राज्य सरकार सबक लेगी और भविष्य में अच्छा होगा। र्प्यटन प्रदेश की बात तो हुयी मगर ये पर्यटन प्रदेश नहीं बना पाये। इनका कोई र्प्यटन सर्किट नहीं है। इकोनॉमी के साथ इकॉलॉजी पर भी ध्यान देने की जरूरत है।
पद्मश्री डा0 अनिल प्रकाश जोशी,
पर्यावरणविद् एवं सोशियल एक्टिविस्ट (हैस्को के निदेशक) देहरादून
3- इस बार की भारी भीड़ और अव्यवस्था को ‘‘ब्लेसिंग्स इन डिस्गाइज’’ कह सकते हैं। पहले लोग सीधे ऋषिकेष से बदरी-केदार रफू चक्कर हो जाते थे। इस बार आगन्तुक भले ही सड़कों पर सोये रहे हों मगर उत्तराखण्ड को करीब से देख कर गये।
-डा0 महेन्द्र सिंह कुंवर,
डाइरेक्टर हिमालयन रिसर्च एण्ड एक्शन सेंटर देहरादून।
4- इस बार त्रिवेन्द्र सरकार की नाकायबी के कारण यात्रा सीजन और पर्यटन सीजन अव्यवस्थित रहा। सरकार को यात्रा सीजन की तैयारियां काफी पहले कर देनी चाहिये थी। पर्यटन एवं धर्मस्व मंत्री को जब व्यवस्थाओं का जायजा लेना था तब वह देशभर में भाजपा का प्रचार कर रहे थे। बचे खुचे समय में तैयारियों की समीक्षा करने के बजाय डार्क टूरिज्म जैसी फिजूल की बातों में उलझे रहे। टिहरी बांध में करोड़ों का लावारिश पड़ा तैरता रेस्तरां डूब गया। यात्रा मार्गां पर समुचित चिकित्सा व्यवस्था नहीं की गयरी जबकि वह विभाग स्वयं मुख्यमंत्री के पास था। इसलिये यात्रा में काफी मौतें हुयीं।
मनोज रावत
विधायक केदारनाथ