उत्तराखंड में बढ़ती तीर्थयात्रियों-पर्यटकों की भीड़ और उससे होने वाली परेशानियां इस बार एक नए स्तर तक पहुंच गई हैं
गोविन्द पन्त ‘राजू’
आप पूरी तैयारी से परिवार के साथ उत्तराखंड स्थित मशहूर हिल स्टेशन नैनीताल घूमने जा रहे हों, कुछ दिन भीषण गर्मी से निजात पाने और ताजा हवा का लुत्फ उठाने के लिए इस कस्बे के करीब पहुंच रहे हों और अचानक आपका स्वागत एक पुलिस बैरियर और वहां पर लगा ‘नैनीताल हाऊसफुल’ का बैनर करने लगे तो सोचिये आप पर क्या बीतेगी. इस बार नैनीताल आने वाले बहुत से पर्यटकों को ऐसी ही स्थितियों से दो चार होना पड़ा है. जब एक एक दिन में नैनीताल पहुंचने वाले वाहनों की दसियों हजार होने लगी और नैनीताल में पार्किंग या वाहनों के रेंगने के लिए भी रत्ती भर जगह नहीं बची, तब इस कस्बे और यहां आने वाले पर्यटकों को दुर्गति से बचाने के लिए उत्तराखंड हाईकोर्ट को दखल देना पड़ा. उसे स्थानीय प्रशासन और पुलिस को नैनीताल में प्रवेश करने वाले वाहनों को नियंत्रित और प्रतिबंधित करने के निर्देश देने पड़े.
इन निर्देशों के बाद पुलिस ने नैनीताल आने वाले सभी मार्गों पर ‘नैनीताल हाऊसफुल’ के बैनर लगा दिए और निजी वाहनों का प्रवेश रोक दिया. इससे नैनीताल आने वाले सभी रास्तों में कई-कई किलोमीटर तक सड़कों के दोनों ओर वाहनों की पार्किंग होने से लंबे-लंबे जाम लगे रहे. सैकड़ों पर्यटकों को अपने वाहनों में ही रात काटनी पड़ी और तमाम तरह की परेशानियां झेलनी पड़ीं. इसका असर नैनीताल के पर्यटन व्यवसाय पर भी साफ दिखाई दे रहा है. सैकड़ों पर्यटकों ने ‘नैनीताल हाऊसफुल’ की खबरें मिलने पर अपनी बुकिंगें रद्द करवाना शुरू कर दिया. इससे परेशान होटल मालिक अब प्रशासन को कोस रहे हैं.
नैनीताल में ट्रैफिक जाम जैसी स्थितियां पिछले कुछ वर्षों से लगातार बढ़ती जा रही हैं. पिछले वर्ष भी हाईकोर्ट को मामले में दखल देना पड़ा था और इस बार तो सारी हदें ही पार हो गई हैं. लेकिन यह मामला सिर्फ नैनीताल का नहीं है. उत्तराखंड के हर कस्बे-शहर और पर्यटक स्थल में वाहनों की अनियंत्रित संख्या एक बड़ी समस्या बनती जा रही है. इस वर्ष हरिद्वार में कुछ किलोमीटर दूरी तय करने में लोगों को कई कई घंटे लग रहे हैं. मसूरी में तो वाहनों की बढ़ती संख्या से सारी व्यवस्था ही चरमरा गई है.
चारधाम यात्रा भी उत्तराखंड में यातायात की समस्याओं को लगातार बढ़ाती जा रही है. चार धाम यात्रा मार्ग में इस बार अब तक 50 हजार से अधिक वाहन रोज सड़कों पर चल रहे हैं. चार धाम यात्रा मार्गों पर 30-35 हजार वाहनों के ही सुगमतापूर्वक चल सकने की क्षमता है जबकि वास्तविकता में इससे डेढ़ गुना अधिक वाहन सड़कों पर चल रहे हैं. इसके अलावा इस रूट पर कई हजार स्थानीय वाहन और सेना तथा अर्धसैनिक बलों के वाहन भी सड़कों पर होते हैं. इसका नतीजा लंबे-लंबे जामों के रूप में देखा जा सकता है. अनेक बार इस तरह के जाम सड़क दुर्घटनाओं में बचाव और राहत कार्यों में भी व्यवधान डालते हैं. पर्यटकों और स्थानीय लोगों के लिए तो ये भारी असुविधा की वजह बनते ही हैं.
अब चार धाम यात्रा पर आने से तो किसी को रोका नहीं जा सकता. न ही किसी को पर्वतीय पर्यटक स्थलों में आने से ही रोका जा सकता. उल्टे यह भी तय है कि आने वाले वर्षों में उत्तराखंड आने वाले पर्यटकों और उनके वाहनों की संख्या भी लगातार बढ़ने ही वाली है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर इसका समाधान क्या है? लगातार बढ़ती इस ट्रैफिक समस्या से कैसे निपटा जा सकता है?
इस बारे में राज्य सरकार के अब तक के प्रयास बेहद नाकाफी रहे हैं. सरकार का रवैय्या इस बारे में विरोधाभासी है. एक ओर वह केदारनाथ में पर्यावरण संवेदनशीलता की बात करते हुए वहां छोटे छोटे निजी निर्माणों पर प्रतिबन्ध लगाती है. दूसरी ओर वह केदारनाथ की संवेदनशील घाटी में यात्रियों के लिए असीमित संख्या में हेलीकॉप्टर उड़ानों को इजाजत दे देती है. एक ओर वह उच्च हिमालयी बुग्यालों में रात्रि विश्राम को प्रतिबन्धित कर देती है और दूसरी ओर एक विवादास्पद विदेशी उद्यमी को विवाह समारोहों के लिए औली जैसे उच्च हिमालयी बुग्याल में टेंट लगाने, तमाम दूसरे भारी निर्माण कार्य करने की इजाजत देने और सैकड़ों लोगों की आमद की इजाजत देने में कतई संकोच नहीं करती. ऐसे में समाधान की उम्मीद कहां से की जाए.
उत्ताखंड रोड कांग्रेस से जुड़े डॉ. राजेन्द्र सिंह के अनुसार इस समस्या का समाधान करने के लिए सरकारों को आगे आना ही होगा. जन सहभागिता और लोगों को सचेत व जागरूक बना कर ही इस आफत से राहत पाई जा सकती है. आईआईटी रुड़की की एक प्रोजेक्ट रिपोर्ट में वैज्ञानिक तरीके से ट्रैफिक जाम से निपटने के कुछ सुझाव दिए गए हैं. इनमें कहा गया है कि उत्तराखंड के चार धाम यात्रा मार्गों की कुल वाहन क्षमता का आकलन किया जाना चाहिए. बड़े और छोटे वाहनों के औसत आकार और सड़कों की कुल लंबाई-चौड़ाई के क्षेत्रफल के आधार पर सड़कों की कुल वाहन क्षमता का आकलन हो और इसी क्षमता के 70 से 80 फीसदी वाहनों की ही तादाद को ही प्रति दिन हरिद्वार, देहरादून, कोटद्वार, रामनगर और हल्द्वानी से आगे यात्रा मार्ग पर भेजने की अनुमति दी जाए. एक बार यदि यात्रा मार्ग पर आने जाने वाले वाहनों की संख्या बराबर हो गई तो फिर वाहनों का सतत प्रवाह बना रह सकेगा और जाम जैसी स्थितियों से बचा जा सकेगा. इस प्रस्ताव में ट्रैफिक नियंत्रण के लिए पूरे उत्तराखंड के प्रवेश स्थलों को एक बेहतर और निर्वाध संचार नेटवर्क से जोड़े जाने की भी जरूरत बताई गई है.
लेकिन वास्तविकता यह है कि पूरे चारधाम यात्रा मार्ग की बात तो दूर नैनीताल, रानीखेत व मसूरी जैसे पर्यटक स्थलों में ही अब तक इस बात का सटीक आकलन नहीं किया जा सका है कि इन शहरों में पार्किंग की कुल क्षमता कितनी है. फिर भी मामले की नजाकत को समझते हुए इस प्रस्ताव पर सरकार को गंभीरता से आगे बढ़ना चाहिए. नैनीताल, मसूरी जैसे शीर्ष पर्यटक नगरों के लिए भी इसी तरह से स्थानीय जनता, पर्यटन व्यवसायियों और सामाजिक क्षेत्र में काम कर रहे लोगों के सहयोग से योजनाएं बनाई जा सकती हैं. नैनीताल के लिए एक सुझाव यह भी था कि हरेक होटल और पर्यटक आवास की कुल पार्किंग क्षमता और शहर में फ्लैट्स सहित कुल उपलब्ध पार्किंग के आधार पर होटलों आदि के लिए वाहनों का दैनिक कोटा बना दिया जाना चाहिए. कोटे से अधिक पर्यटकों को निजी वाहनों के बजाय सार्वजनिक वाहनों से ही नैनीताल में प्रवेश की सुविधा दी जानी चाहिए. सार्वजनिक वाहन स्थानीय प्रशासन भी उपलब्ध करा सकता है और ये स्थानीय होटल एसोसिएशन द्वारा ‘पूल’ के रूप में संचालित किए जा सकते हैं.
मसूरी में ट्रैफिक समस्या के समाधान के लिए इसी वर्ष मार्च में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मसूरी देहरादून रोप वे का शिलान्यास किया. तीन सौ करोड़ की लागत से बनने वाले इस पांच किलोमीटर लम्बे रोप वे से देहरादून से मसूरी की दूरी 10-12 मिनट में तय हो सकेगी. पीपीपी मो़ड में बन रहे इस रोप वे को फ्रांस के तकनीकी सहयोग से बनाया जा रहा है और इससे हर घंटे 1000 से 1200 पर्यटक आ जा सकेंगे. राज्य सरकार की योजना है कि देहरादून में रोप वे के प्रवेश द्वार तक रेलवे स्टेशन, हवाई अड्डे व बस अड्डों से नियमित वाहन सेवाएं चलाई जाएंगी ताकि पर्यटक रोप वे तक आसानी से पहुंच सकें. इसके साथ ही मसूरी में एक रिंग रोड और मसूरी को केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी ऑल वेदर रोड से जोड़ने की भी योजना पर विचार हो रहा है.
इस साल नैनीताल में हुई अभूतपूर्व ट्रैफिक जाम की स्थिति ने राज्य सरकार को मजबूर किया है कि वह इस समस्या के निदान के लिए गंभीरता से प्रयास करे. राज्य के मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने एक आपात बैठक बुलाकर राज्य के सभी जिलाधिकारियों और पुलिस कप्तानों को जाम पर लगातार निगरानी रखने और आवश्कतानुसार रूट डाइवर्जन की योजनाएं बनाने के निर्देश दिए हैं. चार धाम यात्रा के यात्रियों की संख्या अभी बहुत अधिक बढ़ने के पूर्वानुमान भी लगाए जा रहे हैं.
नैनीताल के सामाजिक कार्यकर्ता व सजग पत्रकार राजीव लोचन साह कहते हैं, ‘लोगों को जागरूक किए बिना निजी वाहनों से पर्यटक स्थलों की यात्रा को हतोत्साहित नहीं किया जा सकता. दुनिया के लोकप्रिय पर्यटक स्थलों स्विटजरलैण्ड आदि में कारें देखने को नहीं मिलती. वहां का अधिसंख्य पर्यटक सार्वजनिक वाहनों पर निर्भर है. पार्किंग बढ़ा देने से समस्या का समाधान नहीं हो सकता.’
निजी वाहनों से उत्तराखंड यात्रा की आदत इसलिए भी बढ़ रही है कि कि राज्य सरकार पर्यटकों को विश्वसनीय सार्वजनिक परिवहन सुविधाएं उपलब्ध कराने में असफल रही है. राज्य में स्थितियां इतनी विकट हो गई हैं कि यहां कड़े प्रतिबन्धों की आवश्यकता है. भूटान, गंगटोक सहित उत्तर पूर्व के अनेक पर्यटक स्थलों में हार्न बजाने तक रोक है ताकि पर्यवरण पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़ सके लेकिन उत्तराखंड में आप केदारनाथ जैसे हिमालयी क्षेत्र में डीजे तक बजा सकते हैं. उत्तराखंड को माथेरान जैसे प्रतिबंधों की, जहां वाहनों से जाना पूरी तरह प्रतिबंधित है, तत्काल जरूरत है. अन्यथा आज जहां हम हाऊसफुल के बैनर देख रहे हैं वहां पहुंच पाना भी असम्भव होने लगेगा.
हिन्दी वैब पोर्टल ‘सत्याग्रह’ से साभार