प्रमोद साह
इतिहास, वर्तमान और खूबसूरत पहाड़ सब साथ फिर भी क्यों है उत्तराखण्डियों को पलायन की दरकार। कारण बहुत हैं पर जो मुझे महत्वपूर्ण लगे उन पर कुछ विचार कर कुछ सुझाव लिख दिए हैं।
देव कृपा से उत्तराखंड में विविधता पूर्ण पर्यटन की उपलब्धता एवं संभावनाएं अपार हैं । चार धाम के रूप में तीर्थाटन का तो हमारा कोई 1500 वर्ष पुराना इतिहास है ।
शंकराचार्य के जमाने से ही अलग-अलग चुनौतियों का सामना करते हुए दुर्गम पर्वतीय रास्तों ,नदियों को पार करते हुए ग्रामीण समाज ने छोटी-छोटी चट्टियों की स्थापना करते हुए इस पुरातन तीर्थाटन को जिंदा रखा ।
धार्मिक यात्राओ के विस्तार में टिहरी राजवंश ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने अपने राजस्व की एक निश्चित राशि और राजस्व गांवों की संख्या को इन चार धामों के पोषण के लिए सुरक्षित रखा ।
कालांतर में पहले कुमाऊं कमिश्नर जॉर्ज विलियम ट्रेल ने शेष भारत से इन चार धामों के संपर्क की गति को बढ़ाने के लिए केदारनाथ और गंगोत्री में खुद की पहल और प्रयासो से पुलों का निर्माण किया । ट्रेल ने ही परंपरागत चारधाम यात्रा मार्ग के व्यापारिक मार्ग के रूप में विस्तार के लिए स्थानीय नागरिकों का भी निर्माण में सहयोग लिया। इन सब प्रयासों से 19वीं और 20वीं सदी में चार धाम यात्रा का तेजी से विस्तार हुआ ।
बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में पूरी दुनिया में पर्यटन ,जीवन की नई विधा के रूप में स्थापित हुआ।
एशिया की सिंगापुर, थाईलैंड और श्रीलंका जैसी अर्थव्यवस्थाएं पर्यटन पर केंद्रित हो गई। भारत में भी कश्मीर, केरल नॉर्थ ईस्ट तथा उत्तराखंड में पर्यटन ने नई ऊंचाइयां प्राप्त करना प्रारंभ किया ।
21वीं सदी के प्रारंभ में जब उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ, तब पर्यटन उत्तराखंड की आर्थिकी का मुख्य आधार माना गया ।
लेकिन पर्यटन में विस्तार तथा सुधार के लिए हम कोई व्यवस्थित प्रयास करते हुए नहीं दिखें । 21वीं सदी के प्रारंभिक दो दशकों में उत्तराखंड में पर्यटकों की आमद में हर वर्ष रिकॉर्ड वृद्धि होती रही है।
व्यवस्थित पर्यटन के रूप में अथवा अधिक सुरक्षित और सुविधाजनक पर्यटन देने के रूप में हमसे एक राज्य के रूप में जो अपेक्षाएं हैं ,उस पर हम खरे नहीं उतर पा रहे हैं या यूं कहें लगातार असफल हो रहे हैं । जो एक पर्यटक राज्य के लिए शुभ संकेत नहीं है।
बीते कुछ वर्षों में परंपरागत तीर्थाटन के साथ ही उत्तराखंड में दिल्ली, एन.सी.आर से नजदीकी के कारण सप्ताहांत तथा अवकाश का पर्यटन बहुत तेजी से बडा है। सप्ताहांत के पर्यटन का आलम यह होता है कि हमारे स्थापित पर्यटक स्थल इन दिनों अधिक दबाव से पूरी तरह हांफ जाते हैं। सड़क पर जाम के साथ ही पर्यटकों के लिए रहने की भी समस्या उत्पन्न होती है ।
12 अप्रैल से 17 अप्रैल तक इस वर्ष अधिकांश पर्यटक स्थलों पर यही स्थिति है। परंपरागत पर्यटन स्थलों पर पर्यटक के इस अतिरिक्त दबाव और परेशानियों का मुख्य कारण यह है कि हमने पर्यटन के बहुआयामी विस्तार के लिए व्यवस्था के रूप में कुछ भी नहीं किया।
पर्यटकों को भगवान और प्रकृति के भरोसे छोड़ दिया।
सिंगापुर जो कि अपने पर्यटन के लिए अपनी अलग पहचान बना रहा है, वहां प्रकृति और एडवेंचर का शानदार समन्वय देखा जाता है।
सिंगापुर में जो पर्यटन स्थल हैं वह ऐतिहासिक होने से अधिक अपनी प्रकृति और एडवेंचर के कारण ज्यादा जाने जा रहे हैं। सिंगापुर में बोटैनिकल गार्डन, वाटर गार्डन, नेचर गार्डन तथा एयर और वाटर स्पोर्ट्स के दर्जनों एडवेंचर सेंटर विकसित किए गए हैं ।
इन केन्द्रों का विस्तार एक योजनाबद्ध तरीके से किया गया है।
पर्यटन के सुनियोजित विस्तार के लिए उत्तराखंड को भी स्थापित छोटे-छोटे टूरिस्ट सर्किट का बहुआयामी विस्तार करना होगा । तभी एक पर्यटक राज्य के रूप में हमारी बेहतर पहचान बनेगी और हमारी अर्थव्यवस्था को महत्वपूर्ण आधार मिलेगा ।
दो से अधिक छुट्टियों के समय और सप्ताहांत में पर्यटकों का जो प्यार हमें मिलता है, उसे बनाए रखने के लिए हमें बहुत तेजी से स्वतः ही बन रहे पर्यटन सर्किट में नेचर और एडवेंचर का संयोग बनाना होगा। ताकि ज्यादा विस्तृत क्षेत्र में पर्यटक अपना अधिक और आनंदपूर्ण समय व्यतीत कर सकें ।
छोटे मगर स्वतः स्थापित टूरिस्ट सर्किट जिन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है, उनमें निम्न महत्वपूर्ण हैं।
1- कॉर्बेट- नैनीताल- भीमताल -रामगढ़- मुक्तेश्वर, लगभग 120 किलोमीटर का यह महत्वपूर्ण सर्किट जिसमें नेचर पार्क और एडवेंचर स्पोर्ट्स को शुरू करने की बहुत संभावना है।
2- हरिद्वार- ऋषिकेश -लक्ष्मण झूला- शिवपुरी- कौड़ियाला- कुंजापुरी, यह सर्किट भी लगभग 80 किलोमीटर का है। जिसमें एडवेंचर में वाटर स्पोर्ट की गतिविधियां महत्वपूर्ण हो चली हैं। इसे और अधिक व्यवस्थित कर और विस्तार दिए जाने की आवश्यकता है।
3- कैम्पटी – मसूरी -धनोल्टी- चंबा -टिहरी, 60 किलोमीटर का यह सर्किट जिसमें नेचर पार्क और एडवेंचर की व्यापक संभावनाएं हैं ।
4- कोटद्वार -लैंसडाउन- सतपुली ,ताडकेश्वर, 60 किलोमीटर के इस सर्किट को एडवेंचर और फारेस्ट तथा वाइल्डलाइफ के रूप में विकसित किए जाने की पर्याप्त संभावना है।
5- मंडल -चोपता – देवरिया ताल , वाइल्डलाइफ और जैवविविधता पूर्ण नेचर पार्क के रूप में 50 किलोमीटर लंबाई को व्यवस्थित किया जाना बाकी है।
6- औली – जोशीमठ, नेचर और एडवेंचर की यहां व्यापक संभावना है।
7 -ग्वालदम ,बैजनाथ से कौसानी सर्किट प्रकृति के रूप में पहले से स्थापित है यहां एडवेंचर स्पोर्ट्स बढ़ाए जाने की आवश्यकता है।
8- चौबटिया – रानीखेत, ब्रिटिश काल से ही ख्यातिलब्ध है।
9 -चौकड़ी से मुनस्यारी, पर्यटन की दृष्टि से इस पूरे क्षेत्र में बहुत कुछ नया किए जाने की आवश्यकता है।
10- अल्मोडा़ -जागेश्वर में धार्मिक तथा भरपूर प्राकृतिक सौंदर्य है
11-टनकपुर, पूर्णागिरि, श्यामलाताल को जनपद चंपावत में एक लघु सर्किट के रूप में विकसित किया जा सकता है। जिसमें धर्म एवं प्रकृति दोनों का समावेश है।
12-यमुना घाटी में हर की दून, हनोल आदि के साथ ही जौनपुर और जौनसार की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा को आसानी से पर्यटन के रूप में विकसित किया जा सकता है।
इन सबके लिए दूरस्थ क्षेत्रों को सबसे पहले हवाई सेवा से जोड़े जाने की आवश्यकता है। इन स्थापित सर्किट में होटल और सराय के साथ होमस्टे महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इन्हें और अधिक संरक्षण देने की आवश्यकता है।
मोटर मार्ग से जुड़े इन सर्किट को और अधिक पर्यटन गतिविधियों से सुसज्जित किए जाने की आवश्यकता है।
वहीं प्रदेश में दर्जनों ऐसे ट्रैक हैं, जिनमें पर्यटन धीरे-धीरे बढ़ रहा है। इन ट्रैक में फूलों की घाटी, काकभूषन्डी, चोपता -चंद्रशिला, पिंडारी तथा मिलम ग्लेशियर, नाग टिब्बा, हर की दून, दयारा, पांगड चूला , गौ मुख -तपोवन , ब्रहमताल आदि ट्रैक लगातार पर्यटकों की पसंद बने हुए हैं।
इन्हें प्राथमिकता में लाकर पर्यटन सर्किट का आसानी से विस्तार किया जा सकता है, तभी पर्यटन प्रदेश का मजबूत आधार बनेगा।