प्रमोद साह
गांधी का दर्शन सिर्फ विचार पर केन्द्रित नहीं रहा, वरन समाज हितैषी रचनात्मक कार्यों से निकलने वाला विचार ही गांधी का दर्शन कहलाया। गांधी जब ग्राम स्वराज की बात करते हैं तो वह आत्मनिर्भर और स्वालम्बी गांव की कल्पना करते हैं। इसके लिए वह मानव श्रम और चरखे की ताकत को महत्व देते हैं।
उत्तराखंड में गांधी के रचनात्मक कार्यों को गुजरात के श्री शांतिलाल त्रिवेदी जी ने आगे बढ़ाया, जिन्होंने 1930 के दशक में चनौदा सोमेश्वर में प्रसिद्ध गांधी आश्रम की स्थापना कर खादी का प्रचार किया। बहुत शीघ्र चनौदा आश्रम गांधीवादी चेतना और स्वराज का मॉडल बन गया। शांतिलाल जी ने अल्मोड़ा के झंडा आंदोलन तथा 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी प्रमुख भूमिका निभाई। चनौदा के स्वयंसेवक भी राष्ट्रीय आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे थे। इस कारण चनौदा गांधी आश्रम पर भारी जुर्माना लगाया गया, सामान भी जब्त कर लिया गया।
उत्तराखंड में शांति लाल त्रिवेदी जी को गांधी की फुलवारी का पहला माली कहा जाता है। उनके बाद दूसरे माली के रुप में सरला बहन जानी जाती हैं। जिन्होंने लडकियों के शैक्षणिक आश्रम द्वारा गांधी विचार के प्रसार के लिए अगस्त 1946 में कस्तूरबा महिला मंडल कुमायूं की स्थापना की। इस विद्यालय के लिए जेल में रहे साथियों से छात्रायें भेजने का आग्रह किया गया।
आजादी के आंदोलन में सक्रिय रहे अल्मोड़ा और नैनीताल क्षेत्र की प्रतिक्रिया यहां निराशाजनक रही।
हरगोबिंद पंत जी द्वारा सल्ट क्षेत्र से पहली बालिका मुन्नी का नाम सुझाया गया। इस बालिका ने आश्रम स्थापना में बड़ा सहयोग किया। 5 दिसम्बर 1946 को विद्यालय लक्ष्मी आश्रम विधिवत् प्रारम्भ हुआ जो आगे चलकर गांधी मूल्यों की नर्सरी बन गया। प्रारम्भ में तीन छात्राओं से विद्यालय प्रारम्भ हुआ, फिर छह छात्राएं हो गई, धीरे-धीरे छात्राओं की संख्या बढ़ने लगी, छात्राएं विद्यालय में पढ़ाई के साथ गांव में सेवा तथा स्वयं का उद्यम भी करती थीं। इस पाठशाला में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं था। छात्राओं का व्यक्तित्व निखर रहा था और आश्रम की ख्याति दूर-दूर तक फैलने लगी।
लक्ष्मी आश्रम में पौड़ी और टिहरी से बड़ी संख्या में छात्राओं ने प्रवेश लिया। राधा भट्ट ने पिता के विरोध के बाद भी आश्रम में प्रवेश लिया। बाद में उनकी तीन अन्य बहनों ने भी यहां प्रवेश लिया। सालम क्षेत्र की देवकी देवी कुंजवाल, टिहरी की बिमला नौटियाल और पौड़ी की खष्टी रावत इस विद्यालय की वे प्रसिद्ध छात्राएं थी जिन्होंने गृहस्थ जीवन में रहकर भी उत्तराखंड में गांधी के विचारों और मूल्यों को सर्वोदय समाज के कार्यों से आगे बढ़ाया।
पौड़ी की खष्टी रावत ने मान सिंह रावत के साथ विवाह किया और विवाह के साथ ही कोटद्वार तथा आस-पास सर्वोदय विचार, शराबबंदी, आदिवासी उत्थान में ताउम्र बड़ा काम किया। बाद में वे जमना लाल बजाज पुरस्कार से भी सम्मानित हुए। आश्रम की बहुत प्रतिभावान छात्रा बिमला नौटियाल ने विवाह से पूर्व ही राजनीति छोड़ समाज सेवा की शर्त श्री सुन्दरलाल बहुगुणा जी के समक्ष रख कर देश को एक प्रखर गांधीवादी कार्यकर्ता और विचारक प्रदान किया जिन्होंने वैवाहिक जीवन का प्रारम्भ सलियारा में “ग्रामीण नव जीवन मंडल” आश्रम की स्थापना से किया और ताउम्र गांधीवादी मूल्यों एंव पर्यावरण संवर्धन के लिए खुद को समर्पित किया।
राधा भट्ट जिन्हें हम राधा बहन के नाम से भी जानते हैं, जो आश्रम की बहुमुखी प्रतिभा की धनी छात्रा रही हैंऔर जिन्होंने बोंगार यानि बेरीनाग स्वराज मंडल, स्वराज मंडल की ग्रामीण ईकाई की स्थापना की। इन्होंने स्वरोजगार, उद्यम और स्वावलंबन के क्षेत्र में भी बड़ा काम किया। इस स्वराज मंडल के तीन उत्पाद और चार विक्रय केन्द्र मौजूद हैं।
पौड़ी से मानसिंह रावत व टिहरी से सुन्दर लाल बहुगुणा जी के व्यक्तित्व व कृतित्व से प्रेरित होकर चमोली में एक शानदार गांधीवादी कार्यकर्ता एंव पर्यावरण विद के रूप में श्री चंडी प्रसाद भट्ट सामने आए जो पहले परिवहन कम्पनी में कार्यरत थे, जहां से त्यागपत्र देकर उन्होंने दशोली ग्राम स्वराज मंडल की स्थापना की, जिसमें वन मजदूर कल्याण एंव ग्रामीण स्वावलंबन तथा पर्यावरण के क्षेत्र में उनके द्वारा अभूतपूर्व काम किया गया है। श्री चंडी प्रसाद भट्ट को पदम् विभूषण समेत कई अन्य पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है।
चंबा, भटवाड़ी, के सर्वोदय मंडलों के साथ ही सालम क्षेत्र में श्रीमती देवकी कुंजवाल द्वारा स्थापित “पर्वतीय ग्राम स्वराज मंडल” ने गांधी विचार एवं मूल्यों के प्रसार तथा ग्रामीण स्वालम्बन में महत्वपूर्ण काम किया। टिहरी में सुंदरलाल बहुगुणा जी से दीक्षित धूम सिंह नेगी जी, कुंवर प्रसून, प्रताप शिखर के रूप में एक गुलदस्ता खाड़ी में तैयार हुआ जिन्होंने ग्राम स्वावलम्बन, पर्यावरण के साथ परम्परागत बीज बचाओ आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस योगदान के लिए नेगी जी को जमना लाल बजाज पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
यद्यपि उत्तराखंड में गांधीवादी मूल्यों और विचार के क्रियान्वयन एवं संरक्षण का कार्य “सर्व सेवा संघ वर्धा” द्वारा उत्तराखंड सर्वोदय संघ के माध्यम से किया जाता है लेकिन दिसम्बर 1946 में सरला बहन ने लक्ष्मी आश्रम के रूप में गांधी विचार की जिस नर्सरी की स्थापना की उसने ही सही मायनो में उत्तराखंड में गांधी के मूल्यों और विचारों की फूलवारी को अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्रदान की है। यह सरला बहन ही थी जिन्होंने प्रकृति और पर्यावरण को अपने चिंतन में शामिल कर जय जगत का संदेश दिया। अन्तिम समय में हिमदर्शन कुटीर धरमघर से “संरक्षण और विनाश” पुस्तक लिखकर भविष्य के लिए पर्यावरण के महत्व को समझाया। जिस विचार को श्री सुन्दर लाल बहुगुणा तथा चंडी प्रसाद जी ने विश्व पटल तक पहुंचाया।
हांलाकि इक्कीसवीं सदी के प्रारम्भ से ही देश में गांधीवादी मूल्यों की चमक कमजोर हुई है। लेकिन जैसा कि भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के हालिया अमेरिकी दौरे पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाईडेन ने गांधी के दर्शन की आवश्यकता और महत्व को बताया है उससे साबित है आने वाले समय में एक खुशहाल और लोकतांत्रिक विश्व की कल्पना गांधी के विचार और मूल्यों के बगैर संभव नहीं है।