प्रमोद साह
कहते हैं कि समस्याएं समाधान लेकर आती हैं और समस्या संकट के साथ आती है तो वह नए रास्ते भी बनाती है . कोरोना काल उत्तराखंड कृषि के विकास और पुनर्विचार को अवसर प्रदान कर रहा है ।नीचे जो पहाड़ की गोद में फैली तराई सी फसल आप देख रहे हैं , वह जौनपुर की इडवालस्यूं पट्टी के पंतवाड़ी गांव की है जौनपुर , रवांई और पूरी यमुना घाटी परंपरागत रूप से आज भी कृषि के लिए प्रसिद्ध है . यहां कृषि कि वह दुर्दशा नहीं है जो पूरे उत्तराखंड के अन्य हिस्सों में देखी जाती है . खेती यहां आज भी सर -प्लस एग्रीकल्चर है .
खेती किसानी सिर्फ यमुना घाटी का विषय हो ऐसा नहीं है हजारों वर्ष के उत्तराखंड के इतिहास में हम अनाज के मामले में लगभग आत्मनिर्भर रहे हैं । आजादी के वक्त लगभग 35 लाख की आबादी से 21 लाख पहाड़ों में रह रही थी. यह आत्म निर्भरता हमने उत्तराखंड के अलग-अलग क्षेत्रों में फैले कृषि के लिए माकूल ” सेरो” तथा पहाड़ी ढलानो पर, दलहन और फलों की बागवानी से प्राप्त की, सैकड़ों वर्ष के कृषि के अनुभव से हमारे ” बारह -नाजा ” 12 प्रकार के अनाज जैसे मडवा, झुंवरा , धान गेहूं ,कोणी,रामदाना , गहत,भट्ट,राजमा, उड़द आदि विकसित हुए. इनके परिवर्तन और विकास का हमारे पास सदियों का अनुभव है.
खेती के लिए प्रसिद्ध सेरों की अगर हम बात करें तो पुरोला का रमाई सेरा, कालसी की कानू सेरा, पंतवाड़ी बालगंगा, भिलंगना घाटी होते हुए मलेथा- बागवान , जो माधो सिंह भंडारी के समय ही खुशबूदार बासमती के लिए प्रसिद्ध हो चुका था , बांग घाट -सतपुली, पाटी शैण , घोलतीर -गोंचर ,कालेश्वर लंगासू , सिभली डिम्मर ,मैंठाणाआर – पार , पूरे 25 किलोमीटर की बैजनाथ बागेश्वर की कत्यूर घाटी ,15 किलोमीटर बररो सोमेश्वर , लोहाघाट, चौखुटिया गिवाड पट्टी , बिन्ता बग्वालीपोखर से सिलोरतक , लधिया घाटी -गरम पानी , पूर्वी छकाता, पतलिया रानी कोटा, उत्तराखंड को आत्मनिर्भर बनाने वाले इन सेरों फेहरिस्त बहुत लंबी है .
क्या एक बार हम फिर से कमिश्नर ट्रेलर को याद कर उत्तराखंड के पुनर्निर्माण का संकल्प नहीं ले सकते कमिश्नर जार्ज विलियम ट्रेलर जिन्होंने 1815-16 में पूरे उत्तराखंड की बागडोर बतौर कुमाऊं कमिश्नर अपने हाथ में ली और गोरखाओ के समय चले आ रहे भू राजस्व को एक तिहाई कटौती कर ,1823 के बंदोबस्त तक 25% कृषि भूमि का विस्तार किया और 1830 आते तक भू राजस्व दोगुना कर दिया. उन्होंने पूरे उत्तराखंड को नो रेगुलेशन स्टेट के रूप में शुरू कर यहां की आवश्यकताओं के अनुरूप कानून बनाएं क्या यूपी के कट कॉपी पेस्ट के कानूनों से मुक्त होने का यह अवसर नहीं हो सकता . हो सकता है बशर्ते…
हमें उत्तराखंड के लिए फिर से अपनी परंपराओं और नियमों को पहचानना होगा कृषि और बागवानी के लिए विकास के मॉडल को पट्टियों पर केंद्रित करना होगा , हमारे बीज और फसल आज भी पट्टी के तौर पर ही प्रसिद्ध है.
कोरोना से उत्पन्न संकट के बाद जहां कुछ जवान हाथ पहाड़ के हिस्से रुकेंगे वही रोजगार के विकल्प के रूप में हमें परंपरा और आधुनिकता का बहुत सावधानी से मिश्रण करते हुए कोरोना के संकट को अवसर में बदल लेना चाहिए. और एक पत्थर तो तबियत से उछालना ही चाहिए.