प्रमोद साह
गोरखा राज के बाद बेतरतीब पड़े उत्तराखंड के भूखंड में जहां राज व्यवस्था के चिन्ह नाम मात्र को भी नहीं थे । उस दुर्गम पर्वतीय क्षेत्र में आधुनिक राज्य के व्यवस्थित ढांचे को खड़ा करने के, व्यवस्थित शिल्पी के रूप में हम जॉर्ज विलियम ट्रेल को जानते हैं । जिन्होंने अप्रैल 1816 से 1835 तक कुमाऊं कमिश्नर के रूप में कार्य किया और राज्य ब्यवस्था के हर क्षेत्र को व्यवस्थित किया ,उनके इस प्रेम के कारण ही उन्हें “हिलमैन “की उपाधि प्राप्त हुई यहां कहानी तराई के लिए उनकी लड़ाई की है ।
गंगा के पूर्वी किनारे से शारदा के पश्चिमी तट तक फैले कोई 25 से 30 किलोमीटर चौड़ी पट्टी वाले क्षेत्र ,जिसमें घने जंगल ,वन्य जीवन का समृद्ध संसार था ।जिसे आज का खटीमा पानीपत राजमार्ग चीरता हुआ चलता है ।जिसे हम आज का तराई भाबर कहते हैं। यह क्षेत्र उस वक्त निर्जन था ।जंगलो बीच बहुत कम आबादी वाले कुछ झाले ही यहां थे ।
इस वन बहुल क्षेत्र के दक्षिण से मुरादाबाद और बरेली जनपद में हुए सामाजिक परिवर्तनों और बड़ी जागीरो के उन्मूलन के कारण जहां नजीमाबाद में कालू गुर्जर गैंग , बरेली रामपुर के बॉर्डर पर आईन खान ,नाईन खान ,तौरुब खान के बडे डकैत गैंड सक्रिय हो गए थे । जिस कारण मुरादाबाद और बरेली जनपदो की कानून व्यवस्था प्रभावित हो रही थी। जिस कारण 1822 में मुरादाबाद नॉर्थन डिस्ट्रिक्ट के नाम से नया जिला बना ,कलेक्टर हालहेड बने ।हालहेड़ ने तराई के जंगलों को कानून व्यवस्था की दृष्टि से मुरादाबाद जनपद में मिलाए जाने का प्रस्ताव दिया । इस वक्त कमिश्नर ट्रेल लिपुलेख क्षेत्र में सीमा व विवाद सुलझाने , तथा महत्वकांक्षी भूमि व्यवस्था को संपन्न करने में जुटे थे ।
जिसका ट्रेलर ने न केवल कड़ा विरोध किया, बल्कि यहां तक कहा की तराई का जंगल न केवल जाड़ों में कुमाऊं क्षेत्र के लोगों का चारागाह है ।बल्कि भविष्य में विकास की सारी उम्मीद भी इसी मैदानी क्षेत्र पर टिकी हुई है । ताकि किसी प्रकार का उद्योग और नई सभ्यता का विकास हो सके । यह कथन ट्रेलर की दूरदर्शिता को दर्शाता है । हालहैड की नजर में यह जंगल बिल्कुल भी महत्वपूर्ण नहीं थे ।
कुमाऊं के बहुत कम लोग ही जाडो में यहां आते थे ।हालहैड ने इस प्रकरण को कोलकाता तक पहुंचा दिया ,यहां भी टेलर ने कुमाऊं क्षेत्र की गंभीर पैरवी की , दिसंबर 1823 में हाल हैड को गदरपुर ,बाजपुर ,काशीपुर क्षेत्र में हस्तक्षेप न करने का पत्र दिया ।
हांलांकि केंद्रीय सरकार कानून व्यवस्था के प्रश्न पर तराई को नॉर्थ डिस्टिक मुरादाबाद में शामिल करने के पक्ष में थी। लेकिन हिलमैन ट्रेल ने इसे कुमाऊं की प्रतिष्ठा से जोड़ दिया ।तब दिसंबर 1825 में टेलर, हॉलहैड ने बोल्डरसन की मध्यस्थता में आपस में बैठक की तब गंगा से रामगंगा के बीच सीमा विवाद का शांतिपूर्ण समाधान हुआ । तराई का भाग स्थाई रुप से कुमाऊं के हिस्से में चला गया । सीमा निर्धारण के महत्व को इस बात से समझा जा सकता है कि हुमायूं के अधिकारों की पैरवी के लिए क्षेत्र में कानून व्यवस्था सुधारने के लिए टेलर ने गंभीर प्रयास किए ।
उत्तराखंड के कुल 7 थानों से पांच थाने तराई के इन जंगलों से गुजरने वाले रास्तों पर ही खोले गए जो थे । बमौरी( हल्द्वानी)तिमिलिया ,ढिकुली ,कोटद्वार,ब्रह्मदेव 1830 में इन मैदानी रास्तों में 31 रोड हेल्ड अप की घटनाएं घटित हुई जिससे कुमायूं में पुलिस व्यवस्था मजबूत करने का आधार तैयार हुआ। और पुलिस व्यवस्था के विस्तार से ही आगे न्याय व्यवस्था का मार्ग प्रशस्त हुआ ।