राजीव लोचन साह
मोदी शासन में मुख्यधारा के मीडिया के बड़े हिस्से को गोदी मीडिया कहा जाने लगा है तो इसके पीछे सिर्फ तुकबन्दी नहीं है। आजाद भारत में पहली बार इतने बड़े स्तर पर मीडिया सरकार की जै जैकार करने लगा है। इमर्जेंसी में अखबारों पर सेंसर लगाया गया था। सरकारी खबरें छापना उनकी मजबूरी थी। इलैक्ट्रॉनिक मीडिया अपनी शैशवावस्था में था और डिजिटल मीडिया की तो कल्पना भी नहीं की जा रही थी। तब भी वे अपनी बात कहने के तरीके ढूँढ ही लेते थे। कई बार अपना सम्पादकीय स्पेस खाली छोड़ कर अपना विरोध भी दर्ज करते थे। सरकार झूठ का पर्दाफाश करने के लिये बी.बी.सी. हुआ ही करता था। आज घोषित रूप से वैसी स्थिति नहीं है। मगर मुख्यधारा के मीडिया ने स्वेच्छा से अपने आप पर अंकुश लगा दिया है। वह सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय से प्राप्त खबरों को प्रकाशित प्रसारित करता है। प्रधानमंत्री के सार्वजनिक कार्यक्रमों को टी.वी. चैनलों में इस तरह दिखाया जाता है, मानो किसी क्रिकेट मैच का आँखों देखा हाल दिया जा रहा हो। अंग्रेजी के अखबारों में कुछ अभी बचे हुए हैं। हिन्दी में तो बुरे हाल हैं। सरकारी खबरों की समीक्षा नहीं की जाती, न ही उन्की सत्यता की पड़ताल की जाती है। उल्टे झूठ को बिना सोचे समझे फैलाया जाता है। सिर्फ डिजीटल मीडिया का एक हिस्सा जिम्मेदारी के साथ अपना काम कर रहा है। एक उदाहरण देखें। उत्तराखंड में तथाकथित मजार जिहाद का हल्ला शुरू हो गया है। मुख्यमंत्री धामी ने इस विवाद को हवा दी है और मीडिया बगैर सोचे समझे इसे फैला रहा है। सिर्फ ‘न्यूज लांड्री’ ने उत्तराखंड के वन विभाग के सर्वे का हवाला देकर यह बतलाया है कि वन विभाग के 10 प्रभागों में धार्मिक संरचनाओं के रूप में 155 अवैध कब्जे हैं और ये सबके सब मन्दिर हैं। चार वृत्तों में किये गये 127 कब्जों में 115 मन्दिर हैं, 10 मजारें हैं और 2 गुरुद्वारे हैं। राजाजी और जिम कॉर्बेट नेशनल पार्कां में 53 अवैध मन्दिर हैं और 28 मजारें। इस सच्चाई को गोदी मीडिया क्यों सामने नहीं ला रहा है ?