अतुल सती
19 नवम्बर 2022 से बद्रीनाथ की यात्रा बन्द हो गयी। अब बद्रीनाथ लगभग निर्जन है। सेना रहती है। कुछ साधू भी इजाज़त लेकर रहते हैं। शेष निर्जन। आमतौर पर बद्रीनाथ दिसम्बर के बाद बर्फ से ढंका रहता है। कभी दस—दस फीट बर्फ रहा करती थी। बहुत सालों से ऐसा नहीं दिखा। मगर गिरती है और मौसम का कोई पता नहीं। खासतौर पर अब दुनिया के गर्म होने और होते चले जाने के दौर में। हिमस्खलन होते रहे हैं बद्रीनाथ में।
अब नवनिर्माण के चौतरफा हमले से घिरे बद्रीनाथ में जाओ तो लगता है किसी ने जगह—जगह से घायल कर घावों से भर दिया हो। तस्वीर में देखने से ही अंदाजा हो जाता है कि बरसात और बर्फबारी में नदी के किनारे जमा कर दिए गए मलबे का क्या होगा ? और फिर नदी का क्या होगा ?
पहले भी लिखा था कि पूरे मुल्क के सभी तीर्थ स्थानों को एक रूप बना देने का ये क्या पागलपन है ? हर जगह की सुंदरता उसकी विशिष्टता में है। उसके अलग होने में है। एकरूपता तो विकृति है और यह बाहर का कम भीतर का रोग ज्यादा है। बद्रीनाथ की पहचान जो उसका द्वार है वह पहाड़ के प्रसिद्ध कलाकार मौलाराम जी की कृति है। उसकी सुंदरता, उसकी शैली और उसके भूगोल से साम्य के कारण है। दक्षिण के मंदिरों की भव्यता शैली सौंदर्य उनके भूगोल संस्कृति का प्रतिफल है। वहां का यहां नहीं चलेगा जैसा कि यहां का वहां नहीं जंचेगा।
धर्म और अध्यात्म क्या सौंदर्य बोध से खाली होता है ? नहीं। लेकिन सौन्दर्यबोध से खाली मस्तिष्क न धार्मिक है न आध्यत्मिक। यह विशुद्ध व्यावसायिक संकुचित दृष्टिहीन मस्तिष्क है। वह अपनी संकुचित मानसिकता से सभी चीजों को सीमित कर देता है संकुचित कर देता है। अपनी सोच की सीमा को हर वस्तु पर आक्षेपित कर देता है। यही हो रहा है विकास के तथाकथित नवनिर्माण के इस मॉडल के साथ।
प्रकृति और किसी प्राकृतिक सौंदर्य स्थल के साथ यह किया जाना बहुत पीड़ादायी है। जहां लोग जिंदगी की तमाम थकान के बाद थोड़ा सुस्ताने और नई ऊर्जा पाने आते हैं वहां भी वही रौशनियों का और सीमेंट कंक्रीट के निर्माण का शोर मिले तो क्यों आएगा आदमी और आया भी तो वह विश्रांति कहां पाएगा ?
अब भी समय है इसे रोको। यहां जितना स्थानीय शैली, स्थानीय वास्तु, स्थानीय सामग्री, वृहद सोच के साथ निर्माण होगा और व्ययवस्था होगी उतना यह क्षेत्र समृद्ध, सुंदर व आकर्षक होगा। आध्यात्मिक आत्मिक शांति का कारक होगा। संभलो इससे पहले कि लौट ही न सको।