राजीव लोचन साह
17वीं लोकसभा के चुनाव परिणाम आ चुके हैं और प्रचण्ड बहुमत पाकर नरेन्द्र मोदी दूसरी बार सरकार बनाने जा रहे हैं। ये चुनाव परिणाम विस्मयकारी थे। पहले तो एक्जिट पोल के नतीजे ही अतिशयोक्तिपूर्ण लग रहे थे, वास्तविक परिणाम तो अविश्वसनीय ही रहे। स्वयं मोदी, भाजपा या एन.डी.ए. के घटकों को भी ऐसी सफलता की उम्मीद नहीं रही होगी। इन परिणामों के बाद शंकालु एक बार फिर ई.वी.एम. मशीनों पर सवाल उठा रहे हैं। ऐसे सवाल उठने भी चाहिये, क्योंकि जब तकनीकी रूप से हम से बहुत उन्नत राष्ट्र इन मशीनों पर विश्वास नहीं करते तो हमें ही इन्हें क्यों अपनाना चाहिये ? लेकिन भाजपा की इस विजय को ऐसे ही खारिज नहीं किया जा सकता। यह एक ऐसी विचारधारा की विजय है, जिसे मानने वाले मुठ्ठी भर लोगों ने 90 साल तक धैर्य के साथ जबर्दस्त मेहनत कर, धारा के विपरीत तैर कर उसे जन साधारण के दिमाग पर रोपा। कोई भी विचारधारा स्थायी नहीं होती। जैविक रूप से मनुष्य किसी विचारधारा से बँधा नहीं है। मगर जो बात उसे भली भाँति समझा दी जाये, वह काल्पनिक ही सही, वह उसी के अनुसार आचरण करने लगता है। जब गुलामी प्रथा प्रचलन में थी, तब तमाम गुलाम ‘ऐसा ही होता रहा है और यही सही होगा’ मानते हुए अपना जीवन गुजारते होंगे। तभी गुलामों को किसी ने स्वतंत्रता का महत्व समझाया होगा और स्वतंत्रता के लिये प्रतिरोध की एक परम्परा शुरू हो गई। 100 वर्ष पहले जब भारतवासी ब्रिटिश साम्राज्य से मुक्त होने के लिये छटपटा रहे थे, तब चन्द लोग हिन्दू धर्म की अपनी एक व्याख्या के सर्वश्रेष्ठ होने के सोच को आगे बढ़ाने के लिये जूझ रहे थे। योरोप में हिटलर के रूप में उन्हें अपना एक आदर्श भी मिल गया। आज यदि अपने पराक्रम से वह विचारधारा अब तक सर्वमान्य स्वतंत्रता, समानता, धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों को ध्वस्त करते हुए शीर्ष पर पहुँच गई है तो इस पर अचरज क्यों ? यदि उपरोक्त मूल्यों को मानने वाले लोगों में संकल्प और समर्पण है तो उन्हें भी वही पराक्रम दिखाना चाहिये।
राजीव लोचन साह 15 अगस्त 1977 को हरीश पन्त और पवन राकेश के साथ ‘नैनीताल समाचार’ का प्रकाशन शुरू करने के बाद 42 साल से अनवरत् उसका सम्पादन कर रहे हैं। इतने ही लम्बे समय से उत्तराखंड के जनान्दोलनों में भी सक्रिय हैं।