शंकर गोपाल
राज्य में कानून के राज को स्थापित करो! देहरादून में जन संगठनों, विपक्षी दलों एकजुट हो कर आवाज़ उठाई, राज्य के अन्य क्षेत्रों में भी लोगों ने आवाज़ उठाया।
4 दिसम्बर 2022 को देहरादून के ख़ुशी राम पब्लिक लाइब्रेरी में एक संयुक्त सम्मलेन द्वारा राज्य के विभिन्न मज़दूर, महिला, छात्र, और अन्य संघटनों और राज्य के प्रमुख विपक्षी दल – कांग्रेस, CPI, CPI(M), समाजवादी पार्टी, उत्तराखंड क्रांति दल – के प्रतिनिधियों ने राज्य में बिगड़ती हुई कानून के राज पर आक्रोश जताया। उन्होंने कहा कि एक तरफ माफिया तंत्र, अपराध और हिंसा बढ़ोतरी पर है और दूसरी तरफ सरकार कानून को पूरी तरह से ताक पर रख कर पुलिस प्रशासन का दुरूपयोग कर रही है। मज़दूरों, महिलाओं, दलितों और अल्पसंख्यक समुदायों के बुनियादी हक़ों पर माफिया और सरकारी विभाग दोनों हनन कर रहे हैं, और अपराधियों पर सख्त कार्रवाई करने के बजाय उनको बचाया जा रहा है। इन बिंदुओं पर चमियाला और बाजपुर में भी लोगों ने धरना पर बैठ कर आवाज़ उठाया।
देहरादून में वक्ताओं ने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि कहा जा रहा है की बुलडोज़रों द्वारा अपराधियों पर कार्यवाही की जा रही है। लेकिन अगर क़ानूनी प्रक्रिया के बिना इस रूप में बुलडोजरों का इस्तेमाल किया जायेगा, स्वाभाविक बात है कि ऐसे ही कदमों द्वारा अपराधों को छुपाने के लिए भी कोशिश की जा सकती है – जो सम्भावना पूरी तरह से अंकिता कैस में दिख रही है। वक्ताओं ने यह भी कहा कि महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों पर प्रशासन कार्रवाई नहीं कर रहा है; बिना कोई क़ानूनी प्रक्रिया कर मज़दूरों के घरों को तोडे जा रहे हैं; अंकिता और जगदीश के केस में सीधा पक्षपात और लापरवाही दिखाई दे रही है; और अल्प संख्यक और दलित समुदायों पर हो रहे हमलों में सरकार मूकदर्शक बन कर बैठी है। अगर पुलिस प्रशासन और कानून के राज को इस रूप में कमज़ोर किया जायेगा, अपराधों में बढ़ावा होना स्वाभाविक है।
वक्ताओं ने कहा कि डॉ आंबेडकर के निर्वाण दिवस के अवसर पर इसपर एक जुट हो कर आवाज़ उठाना बहुत ज़रूरी हो गया है।
इसलिए उन्होंने प्रस्ताव के रूप में तीन प्रमुख मांगे रखे: 1) अंकिता का केस से ले कर इन सारे घटनाओं में जिन अधिकारियों ने लापरवाही की, उनपर कार्रवाई किया जाए; 2) उच्चतम न्यायालय के फैसले के अनुसार स्वतंत्र पुलिस शिकायत आयोग को बनाया जाये; 3) उच्चतम न्यायालय के 2018 के फैसले के अनुसार राज्य में भीड़ की हिंसा और जातिवाद और साम्प्रदायिकता पर रोकने के लिए नोडल अधिकारीयों को नियुक्त किया जाये। प्रस्ताव सलग्न।
कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता गरिमा दसौनी; उत्तराखंड महिला मंच के निर्मला बिष्ट; बार कौंसिल के पूर्व अध्यक्ष रज़िया बैग; भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य उप सचिव रविंदर जी; समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव डॉ SN सचान; आल इंडिया किसान सभा के राज्य अध्यक्ष सुरेंद्र सजवाण और महामंत्री गंगाधर नौटियाल; SFI के राज्य अध्यक्ष नितिन मलेठा; सर्वोदय मंडल के हरबीर सिंह खुश्वाहा; उत्तराखंड लोकतान्त्रिक मोर्चा के अध्यक्ष SS पांगती; जनवादी महिला समिति के राज्य सचिव इंदु नौटियाल; और अन्य प्रतिनिधियों ने कार्यक्रम को सम्बोधित किया। गढ़वाल सभा के नत्था सिंह पंवार; उत्तराखंड इंसानियत मंच के डॉ रवि चोपड़ा; जन संवाद समिति के सतीश धौलखंडी; चेतना आंदोलन के सुनीता देवी, प्रभु पंडित, मुकेश उनियाल इत्यादि; जनता दल (सेक्युलर) के हरजिंदर सिंह; वरिष्ठ पत्रकार त्रिलोचन भट्ट; और अन्य लोग मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन चेतना आंदोलन के शंकर गोपाल ने किया।
*प्रस्ताव*
– अंकिता, जगदीश, पिंकी, किरण नेगी की हत्या के केस में, और शोषित जातियों और अल्पसंख्यक लोगों के साथ हो रहे घटनाओं पर जिन अधिकारियों ने लापरवाही की, उन पर तुरंत कार्यवाही की जाए। अंकिता के केस में बुलडोज़र का इस्तेमाल के लिए किसने आदेश दिया उस पर भी जांच किया जाए।
– उच्चतम न्यायालय के 2006 के फैसले के अनुसार राज्य में एक पुलिस शिकायत आयोग होना चाहिए जो स्वतंत्र होगा। अगर पुलिस प्रशासन किसी घटना को ले कर लापरवाही करेगी, या किसी पर अत्याचार करेंगे, इस आयोग द्वारा ज़िम्मेदार अधिकारीयों पर कार्यवाही की जा सकती है। कागज़ पर उत्तराखंड में ऐसे आयोग बनाया गया है लेकिन उसको सीमित और कमज़ोर कर दिया गया है। इसलिए स्वतंत्र पुलिस शिकायत आयोग को बनाया जाए।
– उच्चतम न्यायालय के 2018 के फैसले के अनुसार भीड़ की हिंसा पर रोक लगाने के लिए हर जिला में नोडल अधिकारी होना चाहिए और जातिवादी और सांप्रदायिक गतिविधियों पर तुरंत कार्यवाही करने के लिए व्यवस्था बनना चाहिए। जो उत्तराखंड में आज तक नहीं दिख रहा है।