दिनेश उपाध्याय
चालीस साल होने को हैं। वर्ष 1986, महीना शायद दिसंबर रहा होगा, जब मैं बी. डी. पांडे अस्पताल के पीछे, रोपवे में नौकरी करने गया। शुरू में, मैं बड़ा चौंका कि ये कैसी नौकरी है जहां कार्यस्थल के आगे कई सारे परिवार रहते हैं? अच्छा खासा, भरापूरा मोहल्ला था। सामने रहते थे बी. डी. पांडे अस्पताल के कर्मचारी तथा उनके परिवार और उनके अगल-बगल, अन्य लोगों के घर, दुकानें तथा होटल आदि आदि।
नौकरी रही 32 साल। नौकरी के तनावों के बीच मोहल्ले वालों के साथ बातचीत दिल को हल्का करती रही। कई शादियां, कुछ एक जनाजे और कई सारे बच्चों की किलकारियां मैंने उन 32 सालों में सुनीं।
मैं बच्चों को टॉफियां उछालता, उधर बच्चे कैच करते। सेवानिवृत्ति के वक्त वे बच्चे दाढ़ी-मूंछ वाले हो गए थे और मैं नए बच्चों को टॉफी देने लगा था।
जैसा भी था, यह एक गुलज़ार बस्ती थी और 32 सालों में मुझे कभी ऐसा नहीं लगा कि यहाँ कभी कोई बड़ी प्राकृतिक आपदा आ सकती है। पर इस अच्छे खासे मोहल्ले को इसी अस्पताल की नजर लग गई। जब मैंने अखबारों में पढ़ा कि बी. डी. पाण्डे परिसर में अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाया गया और जहां केवल पैदल जाया जा सकता है, वहां जेसीबी द्वारा अतिक्रमण हटाया गया तो मैं इस पूरे घटनाक्रम को देखने पहुंचा। हाल बेहाल था। किसी निरंकुश दानव ने पूरा क्षेत्र रौंद डाला था। इंसान तो इक्के-दुक्के दिख रहे थे पर चारों ओर मलवा ही मलवा…. और मलवा और मलवे के ढेर।
कुल घटनाक्रम इस प्रकार है –
वर्ष 2015 में दीपक रुबाली द्वारा एक जनहित याचिका उच्च न्यायालय में दायर की गई, जिस पर न्यायालय द्वारा बी. डी. पांडे अस्पताल की 1.49 एकड़ जमीन को खाली कराने के निर्देश दिए गए। इस निर्णय से प्रभावित लोग सुप्रीम कोर्ट गए। मगर सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप करने से इन्कार करते हुए जिलाधिकारी के समक्ष मामला रखने को कहा। जिलाधिकारी द्वारा राहत देने से इन्कार किए जाने पर यह मामला सिविल कोर्ट पहुंचा।
22 अगस्त 2023 को उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी तथा न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की पीठ द्वारा सेवानिवृत्त शिक्षक अशोक लाल साह की जनहित याचिका पर पुनः बी. डी. पांडे अस्पताल की 1.49 एकड़ भूमि पर से अतिक्रमण हटाने के आदेश जिलाधिकारी को दिए गए।
2 सितम्बर 2023 को उक्त क्षेत्र का ड्रोन द्वारा सर्वेक्षण किया गया तथा 9O लोगों को अतिक्रमणकारी माना गया। 14 सितम्बर 2023 को भारी पुलिस बल की तैनाती के साथ अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही प्रारंभ की गई। लोग दुखी थे, पर कोई विरोध नहीं किया गया। कुछ लोगों द्वारा स्वयं ही अपना निर्माण तोड़ा भी गया।
इससे दो दिन पूर्व बिजली पानी के कनेक्शन काट दिए गए थे। प्रारम्भ में भारी पुलिस बल तैनात था। परन्तु लोगों द्वारा विरोध न किये जाने के कारण बाद में पुलिस बल कम कर दिया गया।
18 तथा 19 सितम्बर को, जहां गाड़ियां भी नहीं जा सकती थीं, वहां जे.सी.बी. पहुंचाई गई तथा इस अत्यन्त संवेदनशील क्षेत्र के मकानों को बुरी तरीके से ध्वस्त किया गया। 23 सितम्बर को चार्टन लॉज का एक मकान भूस्खलन के कारण मलवे में तबदील हो गया।अनुमान है कि जेसीबी के द्वारा उत्पन्न भारी कंपन के कारण यह मकान गिरा।
29 सितम्बर को जल संस्थान द्वारा जेसीबी मशीन के कारण ध्वस्त सीवर और पानी की लाइन की मरम्मत तो की गई, पर पूरे फैले हुए मलवे को ज्यों के त्यों छोड़ दिया गया। बी. डी. पांडे अस्पताल प्रशासन द्वारा नोटिस देकर वहां रह रहे कर्मचारियों से अस्पताल द्वारा उपलब्ध कराए गए निवास खाली करा लिए गए हैं। वैसे भी वहां देख कर ही लगता है कि कभी भी अति वर्षा के कारण ये निवास मलवे की चपेट में आ जाएंगे।
चौमास बस दो-एक हफ्ते में शुरू होने वाला है। बी. डी. पांडे अस्पताल के पीछे मौजूद मलवे का यह ढेर बरसात के पानी के साथ बह कर कहां पहुंचेगा, कहां तोड़ फोड़ करेगा? अस्पताल और ऐतिहासिक वैलीरियो बिल्डिंग के पीछे मौजूद, सीढ़ी की तरह एक के बाद एक बने मकान, जिनमें कई तो कट्टों के ढेर पर टिके हैं, उनका क्या हस्र होगा? कुछ पता नहीं। केवल उस स्थान पर जा कर ही समझा जा सकता है कि बगैर परिणाम की चिन्ता किये, अदूरदर्शी ढंग से अतिक्रमण हटा कर एक पूरे क्षेत्र का सत्यानाश कैसे किया जा सकता है।
फिलहाल नैनीताल के निवासियों को चिन्ता करनी चाहिए कि यह बरसात उनके लिए क्या लेकर आयेगी.