देश और प्रदेश में लॉकडाउन की अवधि बढ़ाने के संदर्भ में आज ‘जन हस्तक्षेप’ के बैनर तले वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग द्वारा जन संगठनों एवं विभिन्न राजनैतिक दलों द्वारा एक प्रेस वार्ता आयोजित की गयी। वक्ताओं की सूचि सलग्न।
प्रेस वार्ता में वक्ताओं का कहना था कि कोरोना वायरस की इस महामारी के खिलाफ लड़ाई में राज्य और केंद्र सरकारें बहुत सारे प्रयास कर रही हैं, जिनका हम समर्थन करते हैं। लेकिन प्रदेश के जन संगठनों और विपक्षी दलों की तरफ से कुछ सुझाव हैं, जिनको अंगीकार करने से इस कठिन वक़्त में आम जनता की दिक्कतें कुछ कम होंगी और लॉकडाउन का अधिकतम लाभ मिल पायेगा :
* उत्तराखंड में इस बीमारी के लिए टेस्टिंग बहुत कम हो पा रही है। प्रदेश में कितने वेंटीलेटर हैं, कितने PPE किट दिए गए हैं, टेस्टिंग की क्षमता कितनी है, यह सारी बातें अभी भी अस्पष्ट हैं, जिससे *आम लोगों में भ्रम की स्थिति है और असुरक्षा का माहौल बना हुआ है।* ऐसे में फेक न्यूज़ और अफवाहों का बाजार गर्म है। प्रदेश के डीजीपी के पत्र से स्पष्ट होता है कि कुछ संगठनों के लोग और कुछ सिरफिरे प्रदेश में साम्प्रदायिकता फैलाना चाहते हैं। इस स्थिति को नियंत्रित किया जाना चाहिए ताकि कोरोना से लड़ने के लिए जनता का मनोबल बना रहे।
* सरकार को कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए *हर छोटी-बड़ी बस्ती में एक स्वास्थ्य केन्द्र खोलना चाहिये, जहाँ लोगों को व्यापक रूप से ट्रेनिंग देनी चाहिए।* शहरों की मलिन बस्तियों में सैनिटाइजर और मास्क हर परिवार को उपलब्ध कराये जाने चाहिए।
* प्रदेश सरकार सिर्फ अपने अधिकारियों से हालात की जानकारियाँ ले रही है। *जनता की अनेक गम्भीर एवं वास्तविक समस्याओं को सरकार तक पहुँचाने के लिए कोई कारगर व्यवस्था नहीं है*। सरकार को तुरंत ऐसी एक व्यवस्था बनानी चाहिए, ताकि जन संगठनों, विपक्षी दलों एवं सिविल सोसाइटी तथा सरकार के बीच लगातार विचार-विमर्श हो पाए।
* मज़दूर वर्ग और गरीब लोगों की हालत बद से बदतर हो रही है। अगर लॉकडाउन में कुछ छूट दी भी जाती है तो भी दैनिक मज़दूरों और अन्य गरीबों को तुरंत काम नहीं मिलने वाला है। राज्य सरकार उन्हें आर्थिक सहायता देने की योजना तुरंत बनाए। अभी तक पंजीकृत निर्माण मज़दूरों को 1,000 रुपये देने की योजना सरकार ने बनायी है। यह रक़म बहुत कम है और सिर्फ दो दिन की दिहाड़ी के बराबर है। यह रकम भी बहुत सीमित तबके के पास जाएगी। अभी तक यह धनराशि भी सारे पंजीकृत मज़दूरों को हासिल नही हुई है।
* ठेले वालों से लेकर होटल मज़दूरों तक सबकी आर्थिक स्थिति बहुत गंभीर हो गई है। सरकार को तुरंत जन धन खाता, मनरेगा, जॉब कार्ड और अन्य योजनाओं के द्वारा एक व्यापक आर्थिक सहायता का पैकेज तैयार करना चाहिए, जिससे लोग अपने घर कम से कम दो महीने तक चला पायें। अगर निधि की कमी है तो इस कठिन समय में केंद्र सरकार से मदद की गुहार लगाई जा सकती है ।
* लॉकडाउन घोषित होने के समय से ही जन संगठन और आम लोग राशन के सवाल को लगातार उठा रहे हैं। इस हफ्ते सरकार ने राशन कार्ड धारकों के लिए राशन का आबंटन दो गुना कर दिया। प्रशासन बहुत जगहों में खाना पहुँचा रहा है और गैर राशन कार्ड धारकों को राशन उपलब्ध करा रहा है । हम इन कदमों की सराहना करते हैं। लेकिन यह ज़रूरतें आनेवाले हफ़्तों में बहुत ज्यादा बढ़ने वाली हैं। सरकार की योजनाएं आम लोगों के सामने अभी स्पष्ट नहीं हो पायी हैं। जैसे अगर हेल्पलाइन पर कॉल करना है तो कहाँ कॉल किया जायेगा ? कितने दिन का राशन दिया जायेगा ? बना हुआ खाना लेने के लिए कहाँ जाना है ? राशन या खाना अगर नहीं मिलता है तो किसको बताना है ? इन बातों पर सरकार रोशनी डाले और लोगों के बीच इनका प्रचार करे।
* सरकार को राजस्व वसूली और अन्य ऐसे कामों को कम से कम दो महीने के लिए स्थगित कर देना चाहिए, जिनका जनता पर सीधा असर पड़ता है, जैसे कि बिजली बिल, पानी बिल, अतिक्रमण हटाना, सम्पति पर जब्त करना आदि।
* विदेश व देश के विभिन्न स्थानों पर फ़ँसे उत्तराखंडियों को वापस लाने की कोई कार्य योजना अभी तक नहीं दिखा है।
* किसानों की रबी की फसल बचाने के क्या इंतेज़ाम है और ख़रीफ़ की बुवाई कैसे होगी, सरकार को तुरंत घोषित करना चाहिए।
प्रेस वार्ता में वरिष्ठ पत्रकार और आंदोलनकारी राजीव लोचन साह, उत्तराखंड महिला मंच से कमला पंत, कांग्रेस पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय,भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव कामरेड समर भंडारी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के कामरेड बची राम कंसवाल, समाजवादी पार्टी के पूर्व राज्य अध्यक्ष Dr SN सचान, तृणमूल कांग्रेस के राज्य संयोजक राकेश पंत, बहुजन समाज पार्टी के रमेश कुमार और चेतना आंदोलन से शंकर गोपाल शामिल रहे। तकनिकी समस्याओं की वजह से कमला पंत और Dr SN सचान पत्रकारों को सम्बोधित नहीं कर पाए।
निवेदक
जन हस्तक्षेप