योगेश धस्माना
भारत रत्न गोविंद बल्लभ पंत के पिता मनोरथ पंत अपनी सरकारी सेवा की अवधि में 1886 से 1903 के बीच पौड़ी के कलेक्टर ऑफिस में कार्यरत रहे थे। शंभू प्रसाद और सूचना विभाग से प्रकाशित पंत के जीवन परिचय में पौड़ी में दो बार उनकी सरकारी सेवा का उल्लेख मिलता है। तब मेरे बूढ़े दादा आदित्य राम धस्माना और चमोली आदि, बद्री के रवि दत्त नवानी भी मनोरथ पंत के साथ नौकरी में थे। इस पीढ़ी के नगर वासी भी तब से यही कहते थे, कि मनोरथ पंत अपनी पत्नी गोविंदी के साथ पौड़ी में ही रह रहें थे,पौड़ी के निकट च्वींचा गांव में हुआ था।इसका कारण तब सरकारी आवास न होने के कारण सरकारी मुलाजिम कंडाई और च्वीचा में ही रहते थे।यही तुला सिंह के घर पर बनी गौशाला में गोविंद बल्लभ का जन्म हुआ। खूंट उनका ननिहाल था। लेखक हिमांशु जोशी ने भी अपनी पुस्तक में लिखा है कि पंत जन्म के बाद कभी खूट गए ही नही।माता गोविंदी के निधन के बाद इनका पालन पोषण इनकी मौसी धनी देवी ने किया।
इनके नाना बद्रीदत जोशी तब अल्मोड़ा में बस गए थे। इस आधार पर अल्मोड़ा छोड़ कर खूंट में उनकी माता का प्रसव होना उचित प्रतीत नही होता।आज से लगभग 35 वर्ष पूर्व मैंने खूंट जाकर पंत के जन्म की होती पोथी के बारे में पता किया तो यह उपलब्ध नहीं हो सकी,ना ही गांव चव्वीचा में यह मिल सकी। मेरे इन प्रयासों में अल्मोड़ा के स्वाधीनता सेनानी देवेंद्र सनवाल जो पंत के निकट सहयोगी थे,ने एक साक्षात्कार में 1988 में बताया था, कि वे 1930 से 1946 तक पंत के साथ पौड़ी जाते रहे,तब उन्होंने कई सार्वजनिक कार्यक्रमों में पौड़ी को अपनी जन्म स्थली बताया था। उस वक्त के नामी वकील शंकर सिंह नेगी ने भी इसकी पुष्टि की थी।
पौड़ी के 1910 में डी.सी. रहे जोसेफ क्ले की पुत्री एंड्रियूज ने आक्सफोर्ड से प्रकाशित पुस्तक में अपने संस्मरण में लिखा है की मुकंदीलाल और पंत पौड़ी टेनिस कोर्ट के बेहतरीन खिलाड़ी थे।अंग्रेज अधिकारियों के साथ जब भी इनका मुकाबला हो तो इनकी जोड़ी की जीत होती। जब कोई अंग्रेज अधिकारी मजाक में भी पौड़ी की बुराई करते तो वे अक्सर नाराज हो जाते थे,अपनी इस भूमि से उनका गहरा लगाव था। 1901 में जब मुकंदी लाल पौड़ी में पढ़ने आए तो उन्हें पहली बार गोविंद बल्लभ पंत यही मिले थे। पौड़ी के नागरिक तो 1985 तक पंत जी के जन्म को प्रति वर्ष पौड़ी के निकट च्वीछा गांव में ही मानते रहे है। इस बारे में पूर्व केंद्रीय मंत्री भक्त दर्शन ने 1987 में तब के मुख्य मंत्री वीर बहादुर से मिलकर जन्म स्थान की गुत्थी को सुलझाने को कहा था। कुंवर सिंह नेगी पत्रकार के नेतृत्व में गठित समिति ने मुख्यमंत्री को ज्ञापन देकर कुछ दस्तावेज भी दिए थे।इसकी बाद मुख्यमंत्री वीर बहादुर ने यू.पी. भाषा संस्थान के अध्यक्ष भक्त दर्शन को आश्वस्त किया था कि जल्द ही सरकारी गजट में पंत जी के जन्म स्थान को च्वीचा और मूल स्थान अल्मोड़ा खूंट लिख दिया जाएगा। दुर्भाग्यवश भक्त दर्शन के बीमार होने,और वीर बहादुर के सत्ता से बाहर होने के कारण यह प्रकरण नेपथ्य में चला गया।आगे उत्तराखंड आंदोलन के चलते इस पर चर्चा ही बंद हो गई। पौड़ी की जनता आज भी अपने गोविंद पंत के प्रति वही लगाव रखती है। इस अवसर पर च्वींछा गांव में युवा पीढ़ी के लोग उनकी 137 वी जयंती को मना रही है।पौड़ी की सुधी जनता ने बड़े दिल का परिचय देते हुवे इंजिनियरिंग कॉलेज को भी पंत जी के नाम पर उनके मूर्ति को स्थापित कर सांझी विरासत के प्रति सद्भाव और आस्था का परिचय दिया है।
कुमाऊं के बुद्धिजीवियों से आग्रह है, कि वह पंडित गोविंद बल्लभ पंत के जन्म स्थान की गुत्थी को सुलझाने में आगे आकर पहल करें।ताकि इस त्रुटि को सुधारा जा सके ।