राजीव लोचन साह
पर्यटन ने इस वर्ष उत्तराखंड में हाहाकार मचा दिया है। चार धाम यात्रा के पड़ाव हों या मसूरी-नैनीताल जैसे हिल स्टेशन, सब जगह लम्बे-लम्बे जाम लगे हैं। अन्यथा दो घण्टे लगने वाले सफर के लिये पाँच-छः घण्टे लगने अब सामान्य बात हो गई है। कई स्थानों पर व्यवस्था बनाने के लिये पुलिस को वाहनों को बस्तियों से बाहर रोकने को विवश होना पड़ रहा है। पेट्रोल, डीजल के साथ कई जरूरी चीजों की किल्लत हो गई है। ए.टी.एम. से नकदी नहीं निकल रही है। बेईमान होटल व्यवसायी, व्यापारी और टैक्सी चालक आगन्तुकों की मजबूरी का फायदा उठा कर लूट मचा रहे हैं। छोटे बच्चों के साथ यात्रा कर रहे लोग विशेष रूप से संत्रस्त हैं। पर्यटन प्रदेश होने का दम्भ भरने वाले उत्तराखंड के लिये यह शर्मनाक बात है। यह इसी बार घट रहा हो, ऐसी बात नहीं है। पिछले सालों में लगातार भीड़ बढ़ती रही है और इस बार उसने सारी सीमायें तोड़ दी हैं। यदि शासन-प्रशासन में समझदार और दूरदर्शी लोग होते तो उन्होंने इन स्थितियों का पूर्वानुमान लगाया होता और तदनुरूप व्यवस्थायें की होतीं। एक तरह से यह पूरे देश की समस्या है। भारत में पर्यटन बहुत बेढंगे रूप में विकसित हुआ है। एक भेड़ियाधँसान की स्थिति है। मध्य वर्ग के एक बड़े हिस्से में हाल के सालों में काफी पैसा आया है और उसी अनुपात में गाड़ियों की संख्या बढ़ी है। इसी वर्ग में पर्यटन किसी जरूरत या दृष्टि के तहत नहीं, बल्कि स्टेटस सिम्बल के रूप में बढ़ा है। मगर जिस तरह यह वर्ग आज तक यह नहीं सीख पाया है कि अपने कूड़े का सही निस्तारण कैसे करे या कि अपनी गाड़ियों को सही ढंग से कैसे पार्क करे, उसी तरह वह यह भी नहीं सीख पाया है कि पर्यटन के लिये कब, कहाँ और किन तैयारियों के साथ जाना चाहिये। धर्म के नाम पर कुम्भ मेलों में भीड़ हमेशा ही होती थी, अब वह पर्यटन में भी तब्दील हो गई है। हालात साल दर साल बिगड़ते ही जायेंगे, इसलिये समय रहते इस समस्या का समाधान अभी ही कर लेने की जरूरत है।
राजीव लोचन साह 15 अगस्त 1977 को हरीश पन्त और पवन राकेश के साथ ‘नैनीताल समाचार’ का प्रकाशन शुरू करने के बाद 42 साल से अनवरत् उसका सम्पादन कर रहे हैं। इतने ही लम्बे समय से उत्तराखंड के जनान्दोलनों में भी सक्रिय हैं।