प्रयाग पांडे
राजनीति चंचल होती है। यहाँ स्थायित्व नहीं होता। हार- जीत चुनावी राजनीति का अहम हिस्सा है। यही लोकतंत्र को प्राणवान और जीवंत बनाता है। सियासी दलों और नेताओं को लोकप्रियता, विश्वसनीयता और स्वीकार्यता घटती- बढ़ती रहती है। एक बार जनता का विश्वास खोने वाला दल अथवा नेता अगली बार पुनः जनता का विश्वास और समर्थन प्राप्त कर सकता है। सियासत में विश्वसनीयता स्थायी भाव नहीं होती। इसके उलट तटस्थता, निष्पक्षता और जनपक्षधरता पत्रकारिता के बुनियादी तत्व हैं। यदि एक बार पत्रकारिता की विश्वसनीयता संदिग्ध हो गई उसे दुबारा पाना मुश्किल होता है।
2024 के लोकसभा के चुनाव परिणाम आ गए हैं। इन चुनावों में किसी राजनीतिक दल की स्वीकार्यता कुछ बड़ी, किसी की थोड़ी- बहुत घटी। जिन सियासी दलों की घटी, उनकी अगले चुनाव में बढ़ सकती है। जिनकी बड़ी, संभव है कि अगले चुनाव में कम हो जाए लेकिन पत्रकारिता के पेशे की विश्वसनीयता को पहुँची क्षति की भरपाई संभव नहीं है। पत्रकारिता के लिहाज से इस चुनाव का परिणाम यह है कि तथाकथित मुख्यधारा के ख़बरिया चैनलों की विश्वसनीयता रसातल में पहुँच गई। सुखद पक्ष यह है कि मुख्यधारा के ख़बरिया चैनलों के बरअक्स सोशल मीडिया की विश्वसनीयता एवं लोकप्रियता में कई गुना उछाल आया है। आने वाला वक्त सोशल मीडिया का है।