पंकज सिंह महर
राज्य बने कई साल हो गये, आज हमने बनाया, उसने बनाया, इसने बनाया क्यों उत्तराखण्ड, क्यों गैरसैंण, क्यों जल जंगल जमीन कहने वालों पर तरस आता है, झ्ल्लाहट होती है, क्योंकि उन्हें कुछ याद नहीं, लेकिन मुझे सब याद है, याद आता है, जय उत्तराखण्ड का नारा लगाकर गोली खा जाने वालों पर उत्तरांचल थोप देना, गैरसैंण पहुचांयेंगे लखनऊ को, कहने वालों पर देहरादून थोप देना भी याद है।
आन्दोलन के दौर में पश्चिमी उ० प्र० को मिलाकर पश्चिमांचल का नारा देने वाले भी याद हैं, पहाड़ ही राज्य बनेगा तो खायेंगे क्या कहने वाले भी याद हैं, हरिद्वार और उधम सिंह नगर में उ०प्र० में फिर से मिलाओ और उत्तराखण्ड मुर्दाबाद का नारा लगाने वाले भी याद हैं, हिल कौंसिल का नारा भी याद है, ५२ फर्जी संगठन बनाकर दिल्ली में प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को यह कहने वाले भी याद हैं कि हमें उत्तराखण्ड नहीं चाहिये। दिल्ली की रैली में निहत्थे आन्दोलनकारियों को, हथियारबंद लोग आ रहे हैं कहने वाले भी याद हैं, उस रैली में धमाचौकड़ी मचाकर रैली फेल करने की साजिश करने वाले भी याद हैं, वो चेहरे भी याद हैं, जो उस रैली में जेब में, थैले में पत्थर भरकर लाये थे, सब याद है साहब, इसलिये दर्द होता है, फ्री में राज्य और पदवी पाने वालों को क्या एहसास होगा, क्योंकि उनका एहसास तो सिर्फ पैसा है।
फिर याद आती हैं, रामपुर तिराहे में अपनी मां बहनों की कातर चीखें, गन्ने के खेतों में कहीं पर छुप जाने की असहाय कोशिश, अपनी बहनों की इज्जत बचाने के लिये आगे आये युवको को डमाडम गोली मार देना, फिर उन दागियों को बचाना भी याद है, एक डी०एम को इस घटना के बाद मुखयमंत्री का सचिव बना देना भी याद है, एक डी०आई०जी० जिसके इशारे पर यह कांड हो गया, उसके लिये मसूरी में रेड कार्पेट बिछाने वाले भी याद हैं।
इनके खिलाफ पैरवी न करने वाले भी याद हैं और जान बूझकर कमजोर पैरवी करने वाले भी याद हैं, दो दिन से भूखी बहन बेलमती चौहान भी याद है, जिसकी कनपटी पर मसूरी में गोली मार दी गई। राजेश नेगी भी याद है, जिसकी लाश आज तक नहीं मिली, जय उत्तराखण्ड का नारा लगाने वालो से पुलिस पूछती क्या चाहिये, वह कहते,. उत्तराखण्ड चाहिये, उनके पिछवाड़े में पुलिस डण्डे मारकर कहती ले बहन*** अपना उत्तराखण्ड….और चाहिये…. भौ*** के उत्तराखण्ड, यह भी नहीं भूले हम। …..सब लोग अपनी-अपनी रोटियां सेको, इतिहास तुमको कभी माफ नहीं करेगा।