राजीव लोचन साह
अब यह सिद्ध हो गया है कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, जिन्हें उनके प्रशंसक धाकड़ धामी के नाम से सम्बोधित करते हैं, के पास इस प्रदेश के लिये कोई भी स्पष्ट सोच नहीं है। वे या तो ऊपर केन्द्र से आये आदेशों का आँख मूँद कर पालन करते हैं या फिर पड़ौसी राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का अनुकरण करते हैं। अभी काँवड़ यात्रा के संदर्भ में यह बात पुष्ट हुई, जब उत्तर प्रदेश सरकार ने काँवड़ यात्रा के मार्ग में खाद्य सामग्री बेचने वाले व्यापारियों के लिये अपनी दुकानों-ठेलों के आगे अपनी नेम प्लेट लगाने का फरमान जारी किया। इस आदेश के पीछे समाज को धर्म के नाम पर विभाजित करने और मुसलमान व्यापारियों को आर्थिक रूप नुकसान पहुँचाने की कुत्सित सोच थी। यह आदेश देश के संविधान के सर्वथा प्रतिकूल था और इसीलिये सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर तत्काल रोक भी लगा दी। मगर बगैर सोचे-समझे योगी की नकल में इस आदेश को उत्तराखंड में लागू कर पुष्कर सिंह धामी अनावश्यक रूप से उपहास के पात्र बने। इसी तरह भाजपा के उत्तराखंड को हिन्दुत्व की प्रयोगशाला बनाने की कोशिश के चलते उन्हें आदेश मिला कि प्रदेश में यूनीफॉर्म सिविल कोड कानून बनाना है, तो उन्होंने उत्साह के साथ उसे बनाना डाला। सर्वथा विनाशकारी साबित हो रही चार धाम की ऑल वैदर रोड भी प्रधानमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट होने के नाते इस प्रदेश पर थोपी जा रही है। धामी को निकट से जानने वाले उन्हें बेहद शिष्ट और विनम्र व्यक्ति बतलाते हैं। मगर राजनीति में इतना पर्याप्त नहीं होता। उन्हें यह समझना और सीखना पड़ेगा कि पर्वतीय प्रदेश होने के नाते उत्तराखंड की कुछ विशिष्टतायें और समस्यायें हैं और उन्हीं को देखते हुए उत्तराखंड की नीतियाँ और विकास का मॉडल तय करना होगा। न हम अपने जंगल आग से बचा पायें, न अपनी जमीनों को बाढ़ और भू स्खलन से और न अपनी खेती को जंगली जानवरों से तो एक प्रदेश के रूप में हमारे होने का मतलब ही क्या रहा ?