प्रिय भैय्या विभीषण!
हम लोग कुशल से है आशा है आप भी स-आन्नद कुशल मंगल होओगे!
आगे पत्र लिखने का खास कारण यह है कि गाँव में आपके द्वारा बनाया गया साहेब का मकान सकुशल है बस जलन की वजह से हमारा नाला उनकी भव्य पार्किंग को बर्दाश्त नहीं कर पाया बदले में हमारा लंका काण्ड हो गया है।
आपके हवाई दूत कोरोना महाकाल के सागर को पार कर हमारे पास आये और हमारी उजड़ी अशोक बाटिका में उनकी रेलिंग और अंगुठी से कीमती टायर की अहमियत हमें बताकर चले गये हैं। आपके दूसरे संदेशवाहक भी आते ही हमारी छाती में पैर जमाकर बैठे गये हैं कि खेती किसानी का नुकसान विधना का लेखा है और ग्यिआन दे गए कि गाय पालने के धन्धे से ज्यादा फायदा रुद्रपुर में प्लाट लेने से होता है। नुकसान की छोड़ो साहेब जो दे रहे हैं खुशी खुशी पकड़ लो, सबक लो और मनरेगा की दीवार व खण्डन्जे के कामों के पैर पकड़ लो, उसी में तुम्हारा उद्वार होगा।
आपके साहेब समुद्र सुखाने का जिगर रखते हैं, उनके सामने हमारे गाड़ गधेरों की औकात ही क्या है। उसके उपर से आप जैसे सत्कर्मी उनके साथ हैं। आप अपनी में आ जाओ तो जल, जंगल, जमीन की क्या बिसात है! आप अब तक न जाने कितने द्रोणागिरी पर्वतों की रजिस्ट्री बीबी, लड़के, भतीजे के छदम नामों से सब उखाड़ कर साहेब के श्री चरणों में धर चुके हो। सौदा पट जाये तो आप हमारी किडनी का पत्थर उन्हें बेच दो, ना पटे तो हमारी पित्ती का पानी सुखा दो, नाभि के अमृत की क्या कहें!
आपके प्रताप स्वरूप हमारे गाँव के कितने परिवारों के लोग अपने दरबे नुमा घरों में साहेब के दर्शन पा चुके हैं, हाथ पकड़ कर अपने खेतों में घुमाकर लहसन बेच चुके हैं, जो थोडे स्याने थे उन्हें सुखे गधेरों का पानी बेचकर अपनी जेबें तर कर चुके हैं। हम भूखे नंगे लोग जो चन्द्रमा को भी रोटी समझ लेते हैं आपके सूर्य की तरफ अंगुली उठाने का साहस जुटाना तो दूर सोचने के भी हकदार नहीं हैं।
हमारे नानीसार और पंचेश्वर बांध जैसे क्षेत्रीय मुद्दे आपके मंदिरों के व्यापक मुद्दों के सामने फालतू हैं। आपके भागवत, टूर्नामेण्ट में हम घण्टों बैठकर ताली पीटते हैं और हमारी खेती पानी के सवाल पर आप अपना बहुमुल्य समय साहेब के नाम दर्ज करा जाते हैं।
हमें आडू सेब से ज्यादा मुनाफा उसके इंश्योरेन्स से मिलता है। हमारे हर दुख की भरपाई मुआवजा है जो सरकारें तय करती हैं, आपकी फेसबुक पोस्ट हमारी हारी बिमारी में चन्दा जुटाने के पुण्य से भरी होती हैं।
आपका दुख रोड़ में मरी गाय देखकर बढ़ता है। अपनी जमीन जायजाद बेचकर बाजार में घुम रहे अपने भाई पर आपका प्यार उमड़ता है क्योंकि वही कभी आपकी गाड़ी दिल्ली जयपूर तक चला देता है, अपने छोटे से स्वार्थ के बदले आपको लाखों का जो फायदा करा दे सही मायने में वही आपका भाई कहलाने का हकदार है।
सब कुछ गवांकर रोड़ में गाय जैसे घुम रहे अपने भाई पर आपका क्रोध जायज है क्योंकि वह आपके साहेब पर अंगुली उठाता है। आप उसके भूखे पेट से भले ही अनजान बना रहते हो। आपका मौन उसकी नाभि के बारे में जानता है।
भय्या आप साहेब के खेमे में निर्विकार भाव से खामोश हो! मैं अपने शेष भाइयों कुम्भकरणों के जागने का इंतजार कर रहा हूँ। अपने खेत और पेट के लिए मेरा बोलना जरूरी है, यह युद्ध तय है उसका परिणाम भी।
इतने टाटा बिड़ला तो आप भी नहीं हो गये हो कि साहेब की राजधानी में आजीवन रह सको, आप का एकदिन लौटना तो तय है , यह लंका अतंतः आपकी की है बांकि घाट-बारात-पीपलपानी में मुलाकात बनी रहेंगी।
आपका भाई!
पृथ्वी राज सिंह
One Comment
अनवर जमाल
शानदार प्रतिरोध … मार्मिक और यथार्थ परक ।