अरविन्द शेखर
बजट के बारे में माना जाता है कि यह आम आदमी के लिए होता है पर यह आम आदमी की समझ से परे होता है। इस बार भी ऐसा ही है। थोड़े बहुत परिवर्तन के साथ इस बार के बजट को भी पिछले बजटों की अनुकृति कहा जा सकता है। स्वयं का बजट प्रस्तुत करते वक्त यह बात मायने रखती है कि राज्य अपने आय के श्रोतों पर कितना निर्भर है? दूसरे शब्दों में राज्य सरकार खुद की प्राप्त आय से राज्य के विकास पर कितना खर्च कर पाती है, कितनी आत्मनिर्भर है? राज्य का आत्मनिर्भरता का स्तर बजट दर बजट गिरता ही जा रहा है इस बार उत्तराखंड राज्य के बजट का 32 .77% हिस्सा केन्द्रीय अनुदान पर निर्भर है। राज्य सरकार को उम्मीद है कि उसे स्वयं के राजस्व से 23.48% कर प्राप्त हो जाएगा। इसके अतिरिक्त राज्य सरकार को उम्मीद है कि 8.43% करोत्तर राजस्व की भी प्राप्ति होगी परन्तु केंद्र के द्वारा जो कर वसूली होती है उसमें इस बार राज्य सरकार को केवल 13.94% ही हिस्सा मिलना है, यदि गुजरे दो बजटों पर गौर किया जाए तो 2019-20 के बजट में केन्द्र से 27.05% की हिस्सेदारी प्राप्त होती थी और 2020-21 में यह बढ़कर 46.81% हो गई थी। यह बात हुई उस आय की जिसे बजट में दर्शाया गया है। अब व्यय के व्यौरे को देखेंगे तो उसमें खर्च तो लम्बा चौड़ा दिखाया गया है पर प्रश्न फिर पिछली बार की तरह आ खड़ा होता है कि क्या यह खर्च हो पाएगा ? यह सवाल बहुत अहम है‚ क्योंकि राज्य की नौकरशाही के तौर तरीकों के चलते प्रदेश में कोई भी सरकार कभी भी पूरा बजट खर्च नहीं कर पाई। बजट खर्च का सीधा संबंध विकास से होता है। जितना खर्च होगा उतनी विकास योजनाएं जमीन पर उतर सकती हैं। बीता वित्तीय वर्ष जबकि चुनावी वर्ष था और ऐसे में सरकार को बहुत कुछ कर दिखाना भी होता है मगर फिर भी प्रदेश सरकार बीते वित्तीय वर्ष में केवल 62.19 प्रतिशत बजट ही खर्च कर पाई थी। 2021-22 के 64485.18 करोड़ रुपए बजट में से मात्र 40105.88 करोड़ ही खर्च हो पाए थे यानी करीब 38 फीसदी बजट खर्च होने से रह गया था। बजट के आंकड़़ो को देखें तो पिछली बार का प्रदेश का बजट 57400.32 करोड़़ रुपए का था। जबकि इस बार वह बढ़कर 65571.17 करोड़ रुपए है यानी पिछले बजट से 8171.17 करोड़ रुपए ज्यादा। वैसे सभी अनुपूरक बजट को मिलाकर देखें तो बीते वित्तीय वर्ष का बजट का आकार 64485.18 करोड़ पहुंच गया था। अगर कुल बजट से तुलना करें तो पिछले कुल बजट से अभी प्रस्तावित बजट 1086.31 करोड़ रुपए यानी 1.68 फीसदी के करीब ही ज्यादा है। हालांकि इस बार का बजट 14% बढ़ा हुआ आकार लिए हुए हो पर अब सवाल यह भी उठेगा कि जब खर्च करना सरकार के बूते में नहीं तो वह बजट का आकार बढ़ाती क्यों जाती है ? बहरहाल‚ अब सरकार को बजट खर्च के लिए नौकरशाही के कान इस तरह पकड़ने होंगे कि बजट का अधिकांश हिस्सा खर्च हो जाए ताकि विकास की आकांक्षा जमीन पर उतर सके ।