2 अक्टूबर 2014 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वच्छ भारत मिशन की नई दिल्ली, राजपथ पर शुरूआत करते हुए कहा था कि “एक स्वच्छ भारत के द्वारा ही देश 2019 में महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर अपनी सर्वोत्तम श्रद्धांजलि दे सकते हैं।”
स्वच्छ भारत अभियान भारत सरकार द्वारा चलाया गया सबसे महत्वपूर्ण स्वच्छता अभियान था। भारतीय प्रधानमंत्री ने इंडिया गेट पर स्वच्छता के लिए आयोजित एक प्रतिज्ञा समारोह की अगुआई की थी।
आज अगर हम सोशल मीडिया पर सफल साबित हुए इस अभियान का ज़मीनी तौर पर विश्लेषण करते है तो देश की स्वच्छता में ज्यादा तो नही पर थोड़ा बहुत सुधार ही पाते हैं।
हाल ही में तमिलनाडु के एक व्यक्ति ने चौदह वर्षीय लड़के को अपने खेत पर शौच करते हुए पकड़ा और फिर उसने लड़के को उसी के हाथों से मल की साफ करने पर मज़बूर किया। सरकार खुले में शौच समाप्त होने के लाख दावे तो ठोकती है पर सफ़र करते या घर से बाहर निकलने पर आप आज भी बहुतों को खुले में शौच करते देख सकते हैं। ग्रामीण इलाकों में लोग शौचालय बनने के बाद भी खुले में शौच करना ही पसंद करते हैं।
रेलवे लाइनों के किनारे चलने पर अब भी मल से पैरों को बचाते हुए चलना पड़ता है। शहर के डस्टबिन अक्सर शहर के चारों ओर बदसूरत दिखने का कारण बनते हैं। उनमें कुत्ते, गाय जैसे आवारा पशु अंदर जा कचरा खाते हैं। गांव में सूखा, गीला कचरा फैला कहीं भी दिख जाता है।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली सरकार ने 2 अक्टूबर 2014 को शुरू किए गए स्वच्छ भारत मिशन के तहत एक भी शौचालय का निर्माण नहीं किया है । रिपोर्ट में कहा गया है कि इस उद्देश्य के लिए आवंटित करोड़ों रुपये के फंड को बैंकों में बेकार छोड़ दिया गया । गुजरात सरकार के यह घोषित करने के एक साल बाद कि राज्य खुले में शौच मुक्त हो गया है, कैग ने अपनी रिपोर्ट में इस दावे को खारिज कर दिया था।
हाल ही में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने कहा कि केंद्रीय लोक उपक्रमों (पीएसयू) द्वारा स्कूलों में निर्मित शौचालयों के ऑडिट में पाया गया कि उनमें से 11 प्रतिशत या तो अस्तित्व में नहीं हैं या फिर उनका आंशिक निर्माण ही हुआ है। वहीं 30 प्रतिशत साफ-सफाई, पानी नहीं होने जैसे विभिन्न कारणों से उपयोग में नही हैं। कोरोना काल में बच्चों के लिए स्वच्छता की यह स्थिति विचारणीय है।
हिन्दुस्तान की एक खबर के अनुसार उत्तराखण्ड के सितारगंज निवासी निखिलेश गिरामी ने एक मामले में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। उन्होंने कहा है कि सितारगंज के ग्राम अरविंद नगर में 2014 से 2019 में सरकार ने स्वच्छ भारत अभियान के तहत शौचालय बनाने समेत पेयजल सुव्यवस्था के लिए बोरिंग करने की स्वीकृति दी थी। जिसमें ग्राम प्रधान और बीडीओ ने लाखों रुपए का घोटाला किया है। इस योजना में गरीब परिवारों के लिए 371 टॉयलेट समेत पेयजल आदि के लिए अन्य सुविधाए मुहैया कराई जानी थी। लेकिन दोनों की मिलीभगत से निर्धारित कार्य पूर्ण नहीं किए गए। जबकि उक्त अधिकारियों ने अपने स्तर से कार्य पूर्ण होने का सर्टिफिकेट दे दिया।
देशभर में स्वच्छ भारत अभियान की आड़ में इसी तरह भृष्टाचारियों ने जम कर अपनी जेब भरी। प्रेस सूचना ब्यूरो द्वारा जारी वर्ष 2016 के आँकड़ों के अनुसार, भारत में प्रतिदिन लगभग 62 मिलियन टन कचरे का उत्पादन होता है। नैनीताल में रहने वाले पद्मश्री अवार्डी श्री अनुप साह कहते हैं पुराने समय में मुश्किल हालातों में भी कुड़े का निस्तारण होता था, नियम सख्त थे और लोग अपने कचरे के लिए खुद जागरूक थे।
अब नैनीताल में पक्षियों ने आना कम कर दिया है। कचरे का सही से निस्तारण न होने का परिणाम कितना गम्भीर हो सकता है यह हम रानीखेत की घटना से जान सकते हैं। जनवरी 2006 में रानीखेत के एक कचरा डंप यार्ड के पास सैंकड़ों स्टम्प ईगल बेहोश पाए गए थे।
जनता स्वयं ही कचरे को अलग नही करती उसके बाद सम्बंधित विभाग के लिए यह कार्य मुश्किल होते जाता है। कचरे के निस्तारण में समुदाय की भागीदारी बहुत महत्वपूर्ण है।
नैनीताल के ‘स्वच्छता दिवस’ की कहानी
उत्तराखण्ड पर ‘न्यूज़ 18’ की एक चौंकाने वाली रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखण्ड हर दिन 1400 टन से अधिक कचरा उत्पन्न करता है और इसका शून्य प्रतिशत संसाधित करता है।
उत्तराखण्ड में केवल तीन प्रतिशत नगरपालिका वार्डों में स्त्रोत पर कचरा पृथक्करण की सुविधा है। नैनीताल में स्वच्छता दिवस मनाने की बात करें तो वरिष्ठ पत्रकार राजीव लोचन साह ऑस्ट्रेलियाई नागरिक रेमको वेन सेंटन को याद करते हुए कहते हैं कि वर्ष 2007 में रेमको विश्व के लगभग हज़ार देशों की यात्रा कर यहां पहुंचे थे और वह कहते थे कि नैनीताल जैसा खूबसूरत शहर उन्होंने पूरे विश्व में नही देखा पर लगता है इस शहर को मलेरिया हो गया है इसे सही करो।
रेमको ‘क्लीन अप ऑस्ट्रेलिया’ की तर्ज पर नैनीताल की सफ़ाई कराना चाहते थे। जो ऑस्ट्रेलिया में वर्ष 1990 से मनाया जा रहा है। 18.3 मिलियन आस्ट्रेलियाई इस अभियान से जुड़े हैं ,जिन्होंने अपने 36 मिलियन घण्टे इस अभियान को दिए।
वह प्लास्टिक की बोतलें, सिगरेटों के नीचे का हिस्सा, स्ट्रॉ, कॉफी कप, पन्नी की सफाई मुख्य रूप से करते हैं।
नैनीताल में 18 सितंबर 1880 को एक विनाशकारी भूकम्प आया था इसीलिए वर्ष 2007 में स्थानीय लोगों और प्रशासन ने 18 सितम्बर की तिथि को चुन पहली बार ‘नैनीताल स्वच्छता दिवस’ मनाया। नैनीताल के विद्यार्थी, बोट वाले, व्यापारी सब इस अभियान से जुड़े। गंदगी दूर होने लगी थी पर फिर इस अभियान पर किन्हीं कारणों से वर्ष 2013 से विराम लग गया।
रेमको वेन सेंटन तो इस बार कोरोना की वजह से ऑस्ट्रेलिया में ही थे पर एक नई टीम और जोश के साथ नैनीताल में इस बार फिर से यह अभियान शुरू किया गया।
जागृति, हेल्पिंग फ्रेंड्स, एनएए, त्रिवेणी, ग्रीन आर्मी, नैनीताल नागरिक एसोसिएशन जैसी समाजसेवा संस्थाएं इसमें शामिल थी तो कुछ लोग बिना कोई संस्था बनाए अपने खर्च पर एक समूह के रूप में मिल सफाई का कार्य कर रहे थे। तिब्बती लोगों ने सफ़ाई के लिए आधे दिन अपना पूरा बाज़ार ही बन्द रखा। कुछ लोग नालों में आधे डूब कर भी सफ़ाई का कार्य कर रहे थे तो कुछ बोट ले झील से कचरा उठा रहे थे। यह झील अब भी स्थानीय लोगों की आस्था से जुड़ी है और वर्तमान समय में बुरी स्थिति से गुज़र रही है।
स्वच्छता दिवस में पुराने कपड़े, पानी की बोतलें, तम्बाकू के पैकेट, शराब की बोतलें ही कुड़े के बैगों को भरने के लिए काफी थे। नैनीताल निवासी लतिका जलाल शाही कहती हैं कि “शहर के ऐसे हालात देखकर लग रहा कि शहर में सब सो रहे हैं। एक तरफ शहर में चारों ओर गंदगी फैली हुई है तो दूसरी तरफ लोग बेफिक्र होकर घूम रहे हैं । फ्लैटस (नैनीताल का ग्राउंड) में देख ऐसा लगता है जैसे मेला हो रहा हो, खाने के इतने स्टालस जो वहीं पर बर्तन धोने का काम भी कर रहे, उन्हें यह अधिकार किसने दिया?
शहर को खोद-खोद कर बुरा हाल कर दिया, जहां एक तरफ कहा जा रहा कि पैसा नहीं वहीं दूसरी तरफ इतना निर्माण कार्य? ज़ू के पास वाला शौचालय अचानक गायब होकर नया बनने को तैयार है।” नैनीताल में भारत के अन्य शहरों की तरह हो रहे अवैध निर्माणों का विरोध तो किया जाता है पर बॉलीवुड के मशहूर डायलॉग ‘पैसा और पॉवर वाले लोगों के सामने आम आदमी के विरोध की क्या बिसात।’
इस वर्ष का स्वच्छता दिवस पिछले हर मनाए गए स्वच्छता दिवसों से कामयाब तो रहा पर इससे एक सीख यह मिली कि समुदाय अभी एक नही हुआ है। नैनीताल के ही लोगों को यह जानकारी नही थी कि 18 सितंबर को उनके शहर में क्या मनाया जा रहा है। यह एक त्यौहार की तरह मनाया जाना था पर युवा शक्ति वहां नदारद थी। अभियान में वही लोग शामिल थे जो इसको सफल बनाने के लिए बनाए गए सोशल मीडिया के माध्यमों से जुड़े थे। बाकि लोग उन्हें सफाई करते वैसी ही नज़रों से देख रहे थे जैसे एक्सीडेंट से एक तड़पते राहगीर को देख कर भी अन्य राहगीर एक नज़र देख आगे बढ़ जाते हैं।
इस मौके पर भी कुछ लोग अपनी राजनीतिक रोटियां सेकते नज़र आए। स्वच्छता अपने लिए किया गया कार्य है और उसके लिए भी वाहवाही लूटने की कोशिश करने वाला व्यक्ति किस स्तर का है यह हम तुरंत अनुमान लगा सकते हैं।
सैलानी गन्दगी करते हैं पर उन्हें आने से रोकना गन्दगी खत्म करने का उपाय नही हो सकता। इन्हीं सैलानियों से शहर का रोज़गार चलता है। ताज़महल जब गन्दा हो रहा था तो उसे बन्द नही किया गया बल्कि सैलानियों को अंदर प्रवेश करने से पहले ही कुछ नियमों का पालन करवाया गया और उन पर नज़र रखने के लिए वालंटियर्स की तैनाती भी की गई।
आप प्रकृति के उपहार का आनंद लेने से किसी को रोक नही सकते पर उसकी सुंदरता बनाए रखने के लिए कुछ कड़े कदम जरूर उठा सकते हैं। योजनाओं के क्रियान्वयन पर सरकारी मिशनरियों को अपनी लेट लतीफी से जागना होगा। योजनाएं आती तो हैं पर उन्हें भी कुड़े के ढेर में ही डाल दिया जाता है।
निर्माण कार्य से होने वाला मलबा पूरे देश के लिए मुसीबत है। नैनीताल की झील भी इस मलबे को झेल रही है। कैलगरी में निर्माण कार्य के हर प्रकार मलबे का रिसाइकिल कर निस्तारण कर दिया जाता है। भारत के हर शहर को कैलगरी मॉडल से सीख लेनी होगी।
भारी बारिश होने पर सीवर लाइन उफान पर आ जाती है और सारी गंदगी झील में चले जाती है।
गर्मियों में नैनीताल की झील बदबू मारने लगती है और आने वाले समय में हम शायद ही उसे झेल पाएं। भारत और विश्व के सबसे स्वच्छ शहरों की कहानी।
भारत में पिछले कुछ सालों से इंदौरवासी स्वच्छता के क्षेत्र में अन्य भारतवासियों से बहुत आगे रहे हैं। इंदौर देश और दुनिया में अपनी स्वच्छता को लेकर खास पहचान बना चुका है। इंदौर के नागरिकों ने शहर को साफ और स्वच्छ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। नगर निगम ने कचरे को स्त्रोत पर ही सफलतापूर्वक अलगाव के लिए नागरिकों को संवेदनशील बनाया और खुले क्षेत्रों में कचरा डंप नही किया। इंदौर की स्वच्छता कहानी वास्तव में सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से हुआ परिवर्तन है।
सार्वजनिक समारोहों में डिस्पोजल बर्तनों का इस्तेमाल कम किया जाए, इसके लिए नगर निगम ने बर्तन बैंक भी बनाया है। इसके चलते समारोहों से निकलने वाला कचरा कम हुआ है। इसी तरह थैला बैंक भी बनाया गया, जिससे आम लोग कागज और जूट के बने थैले का इस्तेमाल करते हैं।
कनाडा के कैलगरी शहर में एक रंगीन बिन प्रणाली पेश की गई है। इसमें काले, नीले और हरे रंग के अलग-अलग डिब्बे होते हैं। हरे रंग के डिब्बे खाद्य अपशिष्ट के लिए हैं। नीले कागज़ और पन्नी के लिए और काला डिब्बा घरेलू कचरे के लिए है। कचरे से खाद का निर्माण भी किया जाता है।
गंदगी करने पर भारी जुर्माना लगाया जाता है। वहां हर साल अप्रैल जून के बीच ‘स्प्रिंग क्लीन अप’ अभियान चलाया जाता है। जिसमें शहर की पूरी सड़कों को पूरी तरह साफ किया जाता है।
वर्ष 2007 में ‘टू गुड टू वेस्ट’ कार्यक्रम शुरू किया गया था जिसका उद्देश्य कुछ सामग्रियों को रिसाइकिल कर लैंडफिल में डाले जा रहे कचरे की मात्रा को कम करना था। सिंगापुर दुनिया के सबसे साफ देशों में से एक है। कहीं भी गंदगी फैलाने वाले पर न्यूनतम 15 हजार रुपए जुर्माना वसूला जाता है। सख्ती का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि साल 2017 में 32 हजार लोगों से 48 करोड़ रुपए जुर्माना वसूला गया। जबकि 2016 में 26 हजार लोग गंदगी करते पाए गए थे। बच्चों में स्वच्छता की आदत डालने के लिए दो साल पहले वहां की सरकार ने नियम बनाया कि बच्चों को क्लासरूम और स्कूल कैंपस खुद ही साफ करना होगा।
सिंगापुर के इसी मॉडल से प्रभावित होकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत में स्वच्छता मुहिम शुरू की थी। स्वच्छता के लिए प्रत्येक नागरिक को बनाया जाए जिम्मेदार गांधी जी ने एक बार कहा था कि स्वच्छता स्वतंत्रता से अधिक महत्वपूर्ण है। जब तक आप झाड़ू और बाल्टी अपने हाथों में नही लेते, आप अपने शहरों की सफाई नही कर सकते। दक्षिण अफ्रीका में गांधीजी खुद ही शौचालय की सफाई में जुट गए थे। आज फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और वाट्सएप पर समाज में सफ़ाई की बात करने वाला युवा कितने सार्वजनिक शौचालयों और मूत्रालयों की सफाई करते हैं यह आप उनसे पूछ सकते हैं।
गांधीजी कहते थे शौचालय को अपने ड्राइंग रूम की तरह ही साफ रखना जरूरी है। स्वच्छता के लिए सिर्फ एक दिन या नाम बदलती कुछ वर्षों की योजनाओं की आवश्यकता नही है। एक दिन तो फर्श चमकाने की तरह है घर में झाड़ू तो रोज़ ही लगाना होगा।
कैलगरी की तरह शायद हम भी हर कोने में सफाई करने के लिए वर्ष में एक दिन अपनी गाड़ियों को भी पार्किंग से हटाने लगें। सफ़ाई के लिए स्कूली बच्चों को जागरूक करना सबसे ज्यादा जरूरी है क्योंकि एक बच्चा घर जाने के बाद सफ़ाई करने के लिए चार अन्य लोगों को भी कह सकता है। सरकार को स्वच्छता और राजनीति को अलग रख ज़मीनी स्तर पर कार्य करने होंगे। सफ़ाई से सम्बंधित विभागों में और अधिक पारदर्शिता लहर की आवश्यकता है।
दूसरे देशों के मॉडल को जबरदस्ती अपने देश पर नही थोपना होगा। हर देश की संस्कृति और जनता अलग होती है। भारतीय हर काम अपने तरीके से करते हैं। अगर कचरा मुक्त देश चाहते हैं तो समुदाय में ही स्वच्छता की भावना को जगाना होगा।