प्रमोद साह
चीन की युद्ध नीति का यह पुराना वाक्य है। कि “असल योद्धा वह है , जो शस्त्र उठाए बगैर युद्ध जीत जाए “। भारत चीन सीमा विवाद और गलवान घाटी संघर्ष के बाद भारत में बेहद चर्चित #59 चीनी एप्पस को प्रतिबंधित किया जाना ,हमारे राष्ट्रीय स्वाभिमान के लिए एक जरूरी कदम है । जिसका स्वागत किया जाना चाहिए ।
स्वागत के साथ ही यदि हम भारत चीन व्यापार और आर्थिक गतिविधियों के पिछले कुछ समय के इतिहास पर दृष्टि डालें तो कुछ चौकानेवाले तथ्य नजर आते हैं । 2001 में भारत चीन का कुल व्यापार तीन अरब डॉलर का था जो इस वर्ष 2019 में #95अरब डॉलर पार कर चुका है ।
भारत का चीन के साथ लगभग #56 अरब डॉलर का ऋणत्मक ब्यापार है। जबकि 2013 में यह ब्यापार घाटा लगभग ₹32 अरब डालर था । इलेक्ट्रिकल्स , इलक्ट्रोनिक्स ,कम्युनिकेशन ,रबर , सोलर पैनल , फर्टिलाइजर ,दवा आदि सब प्रारंभिक क्षेत्रों में भारत की चीन पर निर्भरता अचानक बहुत बड गई है । ब्यापार घाटे को दुनिया देखती है ।इसलिए चीन ने हमारी अर्थव्यवस्था में छद्म रूप से भु घुसपैठ शुरू की है ।सबसे घातक है हमारे कथित आत्मनिर्भरता के बुनियादी ढांचे में चीन की घुसपैठ जिसे हम स्टार्अप के रूप में जानते हैं । यहां अंदरुनी रूप से 70% हमारी चीन पर निर्भरता है । भारत की सबसे बड़ी 30 नई कंपनियां जो एक बिलियन से अधिक का कारोबार करती है .! उनमें #18में चीन का वर्चस्व है ।
टेली कम्युनिकेशन सेक्टर में चीन की बडती चुनौतियों को देख 2010 में चीनी इक्विपमेंट पर #प्रतिबंध लगाया गया था ।तांकि भारतीय कंपनियां न बड सकें लेकिन 2014 आते ही यह प्रतिबंध खत्म हुआ और भारत के मोबाइल मार्केट में चीन ने कब्जा कर लिया आज दुनिया का नंबर दो मोबाइल मार्केट भारत पर चीन का 75% कब्जा है । इस सेक्टर में #2017-18 में से 7..2 बिलियन डालर यानि 50,हजार करोड़ रुपये का कारोबार हुआ ।
एफडीआई 2014 में चीन का भारत में निवेश 1.6 विलियन डालर था । जो आज #26बिलियन डॉलर हो गया है । यानी 5 साल में 16 गुना बड गया । देश में अडानी और अंबानी दो मजबूत घराने चीन के पैरोकार हैं । 2015 के बाद जियो रिलायंस कम्युनिकेशन ने भारत के अधिकांश टेलीकॉम कंपनियों को तबाह कर दिया ।वह 80% चीनी सामान पर आधारित है ।
रिलायंस कम्युनिकेशन की कुल 9.2 बिलियन डालर परिसंपत्ति से लगभग 7 बिलियन डॉलर में चीन का योगदान है । इसी प्रकार अडानी की ग्रीन एनर्जी 2.8 बिलियन डॉलर मैं 80% चीन के आयात कारोबार पर निर्भर है । साथ ही अडानी पोर्ट्स एंव स्पेशल इकोनामिक जोन में चीन के साथ अन्तर्राष्ट्रीय पार्टनरशिप है । इसके अतिरिक्त सिंगापुर और हांगकांग से जो निवेश भारत में आ रहा है उसमें भी बड़ा योगदान चीन का है । पिछले दिनों सिंगापुर से 504 मिलियन डॉलर की निवेश में चीन की भागीदारी है ।
हमारी तकनीक के विकास में चीन पर इतनी अधिक निर्भरता है । कि हमारे सैनिक महत्व के विद्युत घर ,मेट्रो और यहां तक कि परमाणु संयंत्रों के भी महत्वपूर्ण उपकरण चीन द्वारा निर्मित हैं । इस प्रकार हमने जिस गति से अपने व्यापार को पिछले कुछ समय में खोला है ।उससे चीन ने एक #गहरेजहर के रूप में हमारी अर्थव्यवस्था के भीतर प्रवेश कर लिया है ।
जहां हम सिर्फ चीनी सामान के बहिष्कार मात्र के नारों से उस जहर से मुक्त नहीं हो सकते ,हमें बड़े संतुलित विचारपूर्ण और दीर्घकालीन योजनाओं पर काम करना होगा । तांकि हमारी अर्थव्यवस्था से चीन का जहर कम हो सकें..। तकनीक हमें ना मिले या महंगी मिले , पर हमें चीन से हर हाल दूरी बनानी होगी ।
विचारणीय सच है