इन्द्रेश मैखुरी
फिर एक गर्भवती नवयुवती असमय ही प्राण गंवा बैठी. 17 अगस्त को गैरसैंण ब्लॉक के बछुवाबाण क्षेत्र के कंडारीखोड़ गाँव की 21 वर्षीय हीरा देवी को प्रसव पीड़ा के चलते उसके परिजन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, गैरसैंण ले गए.
अगली सुबह यानि 18 अगस्त को तड़के 03 बजे उक्त युवती ने बच्चे सहित दम तोड़ दिया. मौत का कारण हार्ट अटैक बताया गया. प्राप्त जानकारी के अनुसार उक्त युवती सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लाने से पहले एकदम स्वस्थ स्थिति में थी. गैरसैंण राजधानी संघर्ष समिति के संयोजक और स्थानीय निवासी नारायण सिंह बिष्ट उक्त युवती के इलाज में लापरवाही काआरोप लगाते हैं. इस मसले पर आज गैरसैंण में स्थानीय लोगों ने प्रदर्शन किया और दोषियों को सजा दिये जाने की मांग की.
उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवाओं की लचर स्थिति आम जन के लिए प्राण घातक सिद्ध हो रही है. बीते कुछ महीनों में, हर महीने या दूसरे महीने में, कहीं न कहीं से गर्भवती महिलाओं की मृत्यु की खबरें लगातार आ रही हैं. इनमें से अधिकांश की उम्र 20 से 25 वर्ष के बीच की ही थी.ऐसे ज़्यादातर मामलों में शादी को एक साल ही हुआ था. ये युवा महिलाएं, यौवन की दहलीज पर कदम रखते हुए,इस संसार के जीवन चक्र को आगे बढ़ाने के क्रम में अपना ही जीवन गंवा रही हैं. और वजह फकत इतनी कि इलाज की व्यवस्था या तो थी ही नहीं या समुचित नहीं थी.
इन पंक्तियों को लिखते हुए,सामने अखबार की खबर है,जिसके अनुसार टिहरी जिले के घनसाली ब्लॉक के बूढ़ाकेदार के अस्पताल में डाक्टर और नर्स की तैनाती न होने के चलते,परिजन गर्भवती महिला को 45 किलोमीटर दूर पिलखी ले जा रहे थे. 12 किलोमीटर दूर पहुँच कर महिला ने सड़क किनारे बच्चे को जन्म दिया. उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में सड़क किनारे बच्चे को जन्म देने के किस्से भी कुछ-कुछ अंतराल पर सुनाई देते रहते हैं.
बीते दिनों बड़े ज़ोर-शोर से मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने ऐलान किया कि वे गैरसैंण में भूमिधर हो गए हैं. मुख्यमंत्री ने इसे रिर्वस पलायन की दिशा में बढ़ा हुआ कदम और सत्ता की अदाओं पर लहालोट रहने वालों ने इसे मास्टरस्ट्रोक करार दिया. उसी गैरसैंण में जहां जमीन खरीदने को मुख्यमंत्री की उपलब्धि बताया जा रहा है,वहाँ इलाज की अपर्याप्त व्यवस्थाओं के चलते गर्भवती युवती और उसका बच्चा दोनों ही प्राण गंवा बैठे. जिस चमोली जिले में यह मुख्यमंत्री की भूमिधरी वाला गैरसैंण है,जरा वहाँ की स्वास्थ्य सुविधाओं के हाल भी जान लीजिये. जिले में चिकित्सकों के कुल स्वीकृत पदों में 168 पदों में से 88 नियमित और दो संविदा वाले डाक्टर हैं,बाकी सब रिक्त हैं. दो ट्रॉमा सेंटर हैं-
कर्णप्रयाग और गोपेश्वर में और दोनों खुद ही ट्रॉमा जैसे अवस्था में ही हैं. अल्ट्रासाउंड मशीन केवल गोपेश्वर में संचालित होती है,अन्य जगह जहां सरकारी अस्पतालों में अल्ट्रासाउंड मशीन है भी,वहाँ तकनीशियन न होने के चलते,वे धूल फांक रही हैं. पूरे चमोली जिले में केवल दो सर्जन हैं. पूरे जिले में कोई नियमित नेत्र चिकित्सक नहीं है. अंधता निवारण कार्यक्रम चलाने के लिए देहारादून से एक डाक्टर जाता है. पूरे जिले में मात्र एक गाइनोकोलॉजिस्ट हैं. गैरसैंण में जिस गर्भवती युवती और उसके बच्चे की मौत हुई,वह गाइनोकोलॉजिकल दिक्कत के चलते ही हुई. गाइनोकोलॉजिस्ट और सर्जन उपलब्ध होते तो शायद स्थिति दूसरी होती. महिला के हार्ट अटैक से मृत्यु होने की बात कही गयी तो यह भी जान लीजिये की हार्ट अटैक की बात तो कही जा सकती है पर उसका उपचार करने वाला डॉक्टर यानि कार्डियोलॉजिस्ट जिले भर में कोई नहीं है. कार्डियोलॉजिस्ट तो श्रीनगर(गढ़वाल) स्थित मेडिकल कॉलेज में भी नहीं है. सुनते हैं कि यह काम वहाँ फिजिशियन के हवाले है ; उपचार का भी और पढ़ाने का भी.
त्रिवेंद्र रावत जी कहते हैं कि उनके पास पैसा होगा तो वे गैरसैंण में मकान भी बनाएँगे. मकान बनायें या न बनायें,यह उनका निजी मसला है. लेकिन मुख्यमंत्री की हैसियत से जो उनका दायित्व है,अस्पतालों में डॉक्टरों का इंतजाम करना,वह जरूर पूरा करें. मुख्यमंत्री का पड़ोसी होने से किसी की जान नहीं बचेगी,परंतु मुख्यमंत्री अस्पताल में डॉक्टरों की समुचित व्यवस्था कर देंगे तो हीरा देवी जैसी युवतियाँ असमय काल-कवलित होने से बच जाएंगी.