थारू होली : जिन्दा होली से मरी होली तक
साक्षी भण्डारी (11वीं)
नानकमत्ता पब्लिक स्कूल
जैसे हर त्यौहार को मनाने का हर समुदाय का अपना एक तरीका होता है वैसे ही, होली का जश्न मनाने की थारू समुदाय में एक अलग ही परंपरा है जो बहुत प्रचलित तो नहीं है पर मज़ेदार ज़रूर है। थारू समुदाय में दो तरह की होली मनाई जाती हैं – “जिंदी होली” और “मरी होली”। यह शब्द जितने सुनने में अनोखे लगते हैं उससे ज्यादा उत्सुक कर देने वाला है इनके पीछे का रहस्य।
उधम सिंह नगर ज़िले के नानकमत्ता कस्बे के गांवों में रहने वाले थारू समुदाय के लोग 1 महीने पहले से होली मनाना शुरु कर देते हैं। इनके द्वारा मनाई जाने वाली होली को जिंदा होली कहते हैं। सबसे पहले, गांव के सभी आदमी गांव की सीमा पर गोबर के उपले रखकर जलाते हैं और अगले दिन से अमावस्या आने का इंतज़ार करते हैं। अमावस्या आने के दो-तीन दिन बाद गांव के सभी लोग एक दूसरे को रंग का टीका शगुन के तौर पर लगाकर नाचते हैं, गाते हैं और ढोल बजाते हैं। गांव के कुछ लोग सभी लोगों के घर जाकर गाने गाते हैं।
होली में गाए जाने वाले गाने, कुछ अलग होते हैं। वैसे ही थारू समुदाय के लोगों ने भी अपने गाने बनाए हैं जिनमें वह भगवानों, जीजा-साली और देवर-भाभी के रिश्ते की बात करते हैं। लोगों के घर जाकर गाना गाने के बाद उस घर के लोग उन्हें गुड़ की मिठाई खिलाकर उनका मुंह मीठा करते हैं और उनके साथ ही जुड़ जाते हैं। जब वह लोग गांव के दूसरे लोगों के घर जाते हैं तो घर के सदस्य उन्हें भेंट के रूप में कुछ पैसे देते हैं जो वह आपस में बांटते हैं या होली शुरू करने वाले पहले सदस्य को दे देते हैं। गांव के हर एक घर में जाने में कई दिन लगते हैं और गांव के लोग यह ध्यान रखते हैं कि होली की तारीख़ आने से पहले वह सभी के घरों में जाकर होली गाएं।
इसके बाद गांव के हर घर से एक-एक सदस्य अपने खेतों में लगी गेहूं की फ़सल से नई कलियां लाते हैं और पराल से बनाई गई होलिका के साथ जला देते हैं। होलिका में गोबर के उपले भी जलाए जाते हैं। जलाई गई गेहूं की नई कलियों को लोग शुभ मानते हैं। होलिका जलाने का यह काम गांव का प्रधान या उनका बेटा करता है और आखिर में वह वहां मौजूद सभी लोगों का मुंह मीठा करवाता है।
मूल होली के दिन कुछ लोग फिर से लोगों के घर-घर जाकर गाने गाते हैं, कुछ ढोलक बजाते हैं, कुछ छैयां बजाते हैं और सभी मिलकर खूब नाचते हैं। भले ही परिवारों के बीच आपसी संबंध ठीक ना हों मगर होली का यह जश्न पूरा गांव मिलकर मनाता है। तरह-तरह के पकवान भी बनते हैं और पकवान बनाने की यह प्रक्रिया हफ्तों पहले से ही शुरू हो जाती है। लोगों की छतों पर सिर्फ़ पापड़ ही सूखते मिलते हैं। सभी घरों के लोग घर पर आए गांव के लोगों को गुजिया, फल, ठंडाई और पापड़ खिलाते हैं। मूल होली के दिन अधिकतर लोगों के घर में मछली, मुर्गा खाने में बनता है और वह सभी अपने पड़ोस में उसे बांटते हैं।
पूरे दिन गांव के लोग एक दूसरे को खिलाकर और उनके साथ नाचकर होली मनाते हैं। शाम को प्रधान के घर में एक प्रोग्राम होता है। सभी गांव के लोगों को प्रधान के घर में उपस्थित होना होता है। प्रधान के घर जाने से पहले गांव के सभी लोग अपने घर से खाना खाकर जाते हैं। वहां सब होली खेलते हैं, नाचते हैं और एक दूसरे के साथ खुशियां बांटते हैं। प्रधान के घर में डीजे लगता है। थारू होली में डीजे पहले से तो नहीं था मगर आजकल डीजे ने ढोलक का स्थान ले लिया है। रात को प्रधान अपने घर आए सभी लोगों को चाय पिलाता है और मुंह मीठा करवाता है। कुछ इस तरह मनाई जाती है जिंदी होली। जिस क्षेत्र में यह होली मनाई जाती है उस क्षेत्र को लोग “पिछली मार“ कहते हैं।
जैसे ही जिंदी होली ख़त्म होती है उसके बाद शुरू होती है “मरी होली“ जो नानकमत्ता कस्बे के बगल वाले कस्बे, खटीमा, में रहने वाले थारू समुदाय के लोग मनाते हैं। इस जगह को लोग अगली मार कहते हैं। मरी होली की पूरी प्रक्रिया जिंदी होली की तरह होती है। वहां के थारू समुदाय के लोग भी होली धूमधाम से मनाते हैं जैसे कि नानकमत्ता में रहने वाले थारू समुदाय के लोग मनाते हैं। नानकमत्ता के लोग भी खटीमा जाते हैं और खटीमा के लोग भी नानकमत्ता आकर होली मनाते हैं। थारू समुदाय के लिए होली ऐसा त्यौहार है जो लोगों को एक दूसरे से जोड़ता है और आपसी संबंधों को मज़बूत करने में मदद करता है।
थारू समुदाय की होली मनाने की यह परंपरा उतनी ही रोचक है जितने होली के समय लोगों द्वारा पहने जाने वाले कपड़े जैसे – घघरिया (लड़कियों के कपड़े)। जैसे घघरिया में हर हिस्सा अलग रंग का होता है मगर फिर भी मिलकर वह एक सुंदर सा कपड़ा बनाते हैं, वैसे ही थारू होली एक ऐसा त्यौहार है जहां छोटी-छोटी हरकतें एक बड़े से जश्न को आकार देती हैं। इस जश्न में एक ऐसा सुरक्षित और रोचक माहौल बनता है जहां छोटे, बड़े, बूढ़े सभी अलग अलग होकर भी आपस में मिलते हैं और झूमते हैं।
नानकमत्ता पब्लिक स्कूल